परि हरियो सो संग, परि हरिये सो मीत।
साध की संगति नांहि, गुझी राखै मन मांही।
परि हरिये सो सैण, धरम हट की मन मांनी।
परि हरि पाखण्ड पाप तजि, अकलि पुरिष मुंही चरी।
छोडी कपट केसौ कहै, हरि सिवरै सा विधि करी॥