जिण मुख में हरि नाँव, कर्म का जोर न लागे।
भूतप्रेत छलछिद्र, जम दूरा से भागे।
विषे व्याध सब जाय, रोग ब्यापे नहीं कोई।
चोरासी को काट, जीत जन निर्मल होई॥
देव करे प्रणाम, विष्णु ब्रह्म शिव चावे।
जन सुखिया निज नाम, ब्रह्म के माहि मिलावे।