रचना रची सु कौन, कौन यहु जगत बनाई।
ऊंचा टीबा रेत, देखि मन करै कचाई।
पानी दूर पताल, सुन्यूं ताहु मै खारो।
फोग सरकना जवा, भुरट को नाज सवारो।
ग्रीषम ऋतु छाया दुर्लभ, काल पड़्या जावै कहीं।
अब बालकराम ऐसे कहै बांगड़ में रहिये नहीं॥