सतगुरु बड़ उसताज, वैद हम पूरा पाया।
सिष मिलतां ही बार, रोग सुणि दारू ल्याया।
पछ बतायौ पूरी, रैणि दिन राम ही ध्यावौ।
नाना विध का भरम, दूसरा सब छिटकावौ।
चेतन ईं साधन कियां, कटयौ सहज में रोग।
सुरति उलटि ऊंची चढ़ी, ले सुषमणी को भोग॥