कणे भार सौ कोटि, रतन लख कोटि रैणायर।
मूड सहस मोतीण, सरवर ओपति जां सायर।
गऊ सहस लख गांन, हसति लख कोटिक हैवर।
पण जेतै प्रिंथ मांहि, अछै धरती विचि अंबर।
अनम्मै पंन ताहो अधिक, ‘नंद’ पयंयै नारायण।
त्रैलोक नाथ नाम ताहरा, मूल न तूलै महमहण॥