दक्खिण दिसि देस विद्रभ अति दीपत,

पुर दीपत अति कुंदनपुर।

राजस अेक भीखमक राजा,

सिरहर अहि-नर-असुर-सुर॥

पंच पुत्र ताइ, छठी सु पुत्री,

कुंवर रुकम कहि विमळ-कथ।

रूकम-बाहु अनइ रुकमाणी,

रुकमकेस नइ रुकमरथ॥

रामा-अवतार, नाम ताइ रुकमणि,

मानसरोवरि मेरु-गिरि।

बाळक-गति किरि हंस-चउ बाळक,

कनक-वेलि बिहुं पान किरि॥

अनि वरस वधइ, ताइ मास वधइ अे,

वधइ मास, ताइ पहर वधंति।

लखण बत्रीस बाळ-लीला-मइ,

राज-कुंवरि ढूलड़ी रमंति॥

संगि सखी सीळि कुळि वैसि समाणी,

पेखि कळी पदमणी परि।

राजति राज-कुंवरि राय-अंगणि,

उडियण वीरज अंबहरि॥

स्रोत
  • पोथी : क्रिसन-रुकमणी-री वेलि ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज राठौड़ ,
  • संपादक : नरोतमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : श्रीराम मेहरा एंड कंपनी, आगरा (उ.प्र.) ,
  • संस्करण : द्वितीय
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