मंगलाचरण

दूहौ

पहलो नांम प्रमेस रो,
जिण जग मंडियो जोय।
नर मूरख समझे नहीं,
हरि करे सो होय॥

गाहा

आलीणौ हरि नांम
जांण अजांण जपे जो जीहा।
सास्तर वेद पुरांण,
सर्व मही तत् अक्खर सारं॥

छंद अनुस्टुप

केशवाः क्लेशनाशायः
दुख नाशाय माधवा।
नरहरि (नृहरि) पाप नाशाय,
मोक्ष दाता जनार्दन॥

रांम नांम बिना वांणी,
रांम नांम बिना कथा।
रांम नांम बिना सब्दाः,
सो सब्दा अक्यारथा॥
रांम नांम मयी वांणी,
रांम नांम मयी कथा।
राम नांम मय सब्दा,
सो सब्दा सुक्यारथा॥

छंद—उपजाति

गो कोटि दानं ग्रहणे च काशी,
मकरे प्रयागेऽयुत कल्पवासी।
यज्ञे च मेरू सम हेम दानं,
नहीं तुल्य गोविन्द नामं समानं॥

सरसत सनेह म्हैं जपौं,
गणपत लागां पाय।
ईसर ईस अराधवा,
सद बुध करौ सहाय॥

लागूं हूँ पहलां लुळै,
पीताम्बर गुरु पाय।
भेद महारस भागवत,
पायौ जेण पसाय॥

ग्रंथारंभ

जाड्य टळै मन मळ गळै,
निरमळ थायै देह।
भाग होय तो भागवत,
सांभळियै स्रवणेह॥

भगत-बछळ मो दे भगति,
भांज परा सह भ्रम्म।
मूझ तणा क्रम मेटवा,
कथौं तुहाळा क्रम्म॥

पीठ धरणिधर पाटली,
हर हो लेखण हार।
तऊ तोरा चरितां तणौ,
परम न लब्भै पार॥

तोरा हूँ पूरा तवी,
सकां केम समराथ।
चत्रभुज सह थारा चरित,
निगम न जांणै नाथ॥

कथां केम ईसर कहे,
खांण सकळ प्रत खेत।
वांणी स्रवण मन विषय सों,
नित्य अगोचर नेत॥

देव किसी उपमा देऊँ,
तें सिरज्या सह कोय।
तूझ सरीखौ तुं हि ज तूं,
अवर न दूजौ कोय॥

आभ विछूटां मांणसां,
है धर झेलण हार।
धरणीधर धर छंडतां,
असहां तू आधार॥

नारायण हूँ तुझ नमों,
इण कारण हरि अज्ज।
जिण दिन ओ जग-छंडणौ,
तिण दिन तो सूं कज्ज॥

ओ अवसर नहीं आवसै,
ईसर आखै ऐह।
पुण रे हरिरस प्राणिया,
जनम सफल कर जेह॥

अवध-नीर तन अंजळी,
टपकत सांस-उसांस।
हरि भजियां बिन जात है,
अवसर ईसर दास॥

हिया म छंडे हरि भगति,
रसणा म छंडे रांम॥
अंतर जांमी आपणौ,
ठाकर है सह ठांम॥

हरि हरि करतां हरष कर,
अरे जीव अणबूझ।
पारस लाधो ओ प्रगट,
तन मानव रो तूझ॥

नारायण न बिसारिये,
नित प्रत लीजे नांम।
जे लाभे मिनखा जनम,
कीजै उत्तम कांम॥

नारायण रो नांमडौ,
भूंछां ही भल व्हैण।
चोपड़ियौ चंगौ थियै,
जेहड़ौ तेहड़ौ खैंण॥

आतम आळस पहल तज,
ओळख आद विसन्न।
जेह मनोरथ मन करे,
सो पूरवै क्रिसन्न॥

हंस मांहळा मूढ़ रे!
कर हरि-सर विसरांम।
मर-मर धर पर फिर मती,
उर-धर गिर-धर नांम॥

जीह भणो भण जीह भण,
कंठ भणो भण कंठ।
मो मन लागौ महमहण,
हीर पटोळै गंठ॥

जीहा जप जगदीसवर,
धर अंतर मझ ध्यांन।
क्रम-बंधण नहँ बंधवै,
भय-भंजण भगवांन॥

नित हरि वीसरजै नहीं,
आतम मूढ़ अजांण।
काळ सबळ जग काटवा,
कस ऊभौ केवांण॥

प्रभु भजंतां प्राणिया!
कीजै ढील न काय।
भर बथ्थां अथ काढिये,
मंदिर जळते मांय॥

रांम जपंतां रे रिदा,
आळस म कर अजांण।
जो तूं गुण जांणै नहीं,
पूछे वेद पुरांण॥

ज्यां जागै त्यां रांम जप,
सूतो रांम संभार।
ऊठत बैठत आतमा,
चलतां रांम चितार॥

रहै विलूंबौ रांम रस,
अन रस गणै अलप्प।
अेह महा ध्रम आतमा,
अे तीरथ अे तप्प॥

नांम सुतीरथ नांम व्रत,
नांम सलंभो कांम।
एको अक्खर तत्त फळ,
जप जिभ्या श्री रांम॥

राम जपंतां राजश्री,
राम भणंतां रिध्ध।
रांम नांम संभारतां,
पांमीजे नव निध्ध॥

रूड़ी करसी रामंजी,
सह बातां श्री रंग।
भगतां पर भू-धर धणी,
चाढ़ण नीर सुचंग॥

भाग बड़ा तो रांम भज,
बगत बड़ी कछु देह।
अकल बड़ी उपकार कर,
देह धर्यां फळ अेह॥

रांम न भूले बापड़ा,
जे सिर छत्र पलोय।
कर जिह्वा लोचन स्रवण,
बियौ न आपै कोय॥

रांम भणो भण रांम भण,
अवरां रांम भणाय।
जा मुख रांम न उच्चरै,
ता मुख लोह जड़ाय॥

रांम नांम रसना रटो,
वासर बेर अवेर।
अटक्यां पछै न आवसी,
रांम तणी मुख रेर॥

दाखै ईसरदास यूं,
कटक न हांणी कीध।
रांम नांम रटतां थकां,
लंक विभीषण लीध॥

रांम नांम रटता रहौ,
आठूं पौर अखंड।
सुमिरण सम सौदा नहीं,
नर देखौ नवखण्ड॥

राम भणंतां रे रिदा,
कह केता गुण होय।
ठाकर मांनै जग नमै,
पिसण न गंजै कोय॥

रांम संजीवण मंत्र रट,
आमय लगे न अंग।
जो सुख चाहे जीव रौ,
सुमिर सुमिर श्री रंग॥

रसणा रटै तो रांम रट,
वैणां रांम विचार।
स्रवण रांम गुंण सांभळै,
नैणां राम निहार॥

रांम मात पितु महत गुरु,
रांम सखा सुख दात।
रांम सनेही बंधवा,
राम सहोदर भ्रात॥

रांम विसारै क्यूं रह्यौ,
रे मूरख मद अंध।
जिण दिन रांम न संभरै,
वो दिन अंधा धुंध॥

हरि विसारी तूं सुवै,
हरि जागै तो कज्ज।
अे अपराधी आतमा,
अवगुण अेह अलज्ज॥

बांणी हरि विसारके,
वांचै आंण कुवांण।
पत मत छंडै पापणी,
जार बिळूबी जांण॥

हरि-हरि कर परहर अवर,
हरि रौ नांम रतन्न।
पांचू पांडव तारिया,
कर दागियौ करन्न॥

अे रे नर परहर अवर,
हरि-हरि सुमिर हियाह।
संत सुदामा सारिखा,
क्रोड़ि धज्ज कियाह॥

सुमिर सुमिर तूं श्री हरि,
आळस म कर अजांण।
जिण पांणी सूं पिंड रचि,
पवन विळूध्यौ प्रांण॥

आळसवां अजांणवां,
दिल-खूटल सूं दूर।
साहब साचा साधकां,
है हाजरां हजूर॥

साच प्रियारा सांईयां,
सांई साच सहाय।
साचां अगन न जाळही,
साचां सरप न खाय॥

सांई सूं सब कुछ हुवै,
बंदै सूं कछु नांहि।
राई सूं परबत करै,
परबत राई समाहि॥

धारे तो साहब धणी,
करै विलंब न काय।
मार उपावै मेदनी,
मुहरत हेकण मांय॥

सांई तूं ज बडौ धणी,
तुज्झ सूं बडौ न कोय।
तूं जिन्नां सिर हत्थ दे,
सो जुग में बड होय॥

आळम मोरा ओगुणां,
साहब तुज्झ गुणांह।
बूंद बिरक्खा रेणु कण,
थाग न लाधै त्यांह॥

नारायण नारायणा,
तारण तरण अहीर।
हूँ चारण हरि गुण चवां,
सागर भरियौ क्षीर॥

नारायण नारायणा,
फेरा काटण फंद।
हूँ चारण हरि गुंण चवां,
सोनौ अनै सुगंध॥

नारायण रौ नांमड़ौ,
नहँ लीधौ निरणांह।
वां जमवारौ वोळियौ,
ज्यू जंगळ हिरणांह॥

नारायण रा नांम सूं
लोक मरत जो लाज।
बूडेला बुध बायरा,
जळ बिच छोड़ जहाज॥

नारायण रा नांम री,
मौड़ी पड़ी पिछांण।
केई दिन बाळापण गया,
कई दिन गया अजांण॥

नारायण रा नांम सूं,
प्रांणी करलै प्रीत।
औघट बणियां आतमा,
चत्रभुज आसी चीत॥

नारायण रा नांम सूं,
भरियौ रह भरपूर।
दामोदर नै दाखवै,
दम दम कर नहं दूर॥

नारायण रा नांम सूं,
प्रांणी वांणी पोय।
जम डांणी लागै नहीं,
हांणी मूळ न होय॥

वायु चलण लागै करण,
सूरज ससि रव लग्ग।
ईस जिकां सूं बाहरै,
जन को जांणै मग्ग॥

चंदा सो चलणा गया,
सूरज मंडण सोय।
जीव! हरिरस वांच रे,
हरि सों नातो होय॥

चत्रभुज चरणां धार चित्त,
अलख अजोनी आख।
गोकुळ, गिरधर ज्ञान गह,
रांम नांम मुख राख॥

बदरी, टीकम, परस बुध,
जग मोहन जैकार।
घण दाता आणंदघण,
श्रीपति स्रवणां धार॥

पुरुषोत्तम पूरण प्रभु,
राघव गिरधर रूप।
मुरलीधर मोहन मुकन्द
भजलै त्रिभुवन भूप॥

रांम, किसन, नारायणा,
सच्चिदानंद गोविन्द।
वासुदेव, विट्ठल, विभू,
नरहर गोकळ नन्द॥

पलक निमिष मत पांतरै,
दाखे दीन दयाळ।
धरणी धर हिरदै धरै,
गुण गाये गोपाळ॥

मनछा डाकण मांहरै,
राघव! काढ रिदाह।
जिण वन में केहरि वसै,
त्रासै म्रगला ताह॥

आठूं पहर आणंद सूं,
जप जीहा जगदीस।
केसव किसन कल्याण कह,
अलख अजोनी ईस॥

भगतपाळ भगवंत भज,
धूपत रसणाधार।
चित निस दिन हर हर उचर,
सांसो सांस संभार॥

आतम व्हेसी अेकलो,
छूटत तन संगाथ।
साखी तिण दिन संखधर,
सुरग तणै पथ साथ॥

केसव कहि कहि सुमरिये,
नहँ सोइये निरधार।
रात दिवस के सुमरणैं,
कबहुँक लगै पुकार॥

नांम समोवड़ को नहीं,
जप तप तीरथ जोग।
नांमे पातक छूटिहै,
नांमे नासे रोग॥

क्षुधा न भाजै पांणियां,
त्रषा न भाजै अंन।
मुगति नहीं हरि नांम बिन,
मांनव साचै मंन॥

कल्प, वेद, सास्तर कथै,
सिध साधक सह कोय।
अंन बिन तृपति न ऊपजै,
हरि बिन मुगति न होय॥

बिन अपराध विटंबतों,
रे रे त्रिभुवण राय।
कर कूड़ा सास्तर कथण,
कर कूड़ा क्रम काय॥

अेह पटंतर दाख अब,
भगतां-बच्छळ ब्रह्म!
कीधा अम्ह क तुम किया,
धुर हरि पाप धरंम॥

ताहरी इच्छा दीध तैं,
जीवां आदि जनंम।
तित कित हूता अम्ह तणा,
केसव किसा करंम॥

ओ परपंच अमाप रो,
तुं करता त्रिकम्म।
आपौ पै अळगौ रहै,
कैक भळावै क्रम्म॥

आदि तुझ थी ऊपना,
जग जीवण सह जीव।
ऊंच नीच घर अवतरण,
दे क्यूं वंस दईव॥

आपौं पै हूंता अनंत,
आप्यौ तैं अवतार।
पाप धरम क्यूं पीड़वा,
लाया जीवां लार॥

अखिल तुंहिज कै को अवर,
बोह नांमी बूझब्ब?
लखमीवर लेखां नहीं,
समवड प्रांणी स्रब्ब॥

आदि तणौं जोतां अरथ,
भागै न मूझ भरम्म।
पहला जीव परठ्ठिया,
किया क पहला करम्म॥

अकरम करम उपाय कर,
जागविया तैं जीव।
जगपत को जांणै नहीं,
गत थारी हयग्रीव॥

खांण च्यार खोहण धरा,
जाया जिण दिन जंत।
कीधा किण पाखै किसन,
उत्तम मद्धम अंत॥

कीधां कुंण पूंगै किसन,
बडां सांमहौ वाद।
आद न को तो बिण अनंत,
आतम करम न आद॥

क्रंम गत पूछूं तो कनै,
गोविंद हूंज गिंवार।
आड वसंती डेडरी,
पुंणै समंदां पार॥

वेद तणी वंसावळी,
कहो कि बांचण कांम।
मिटे रोग जांमण मरण,
निगम लियंतां नांम॥

दीह घणा मांझल दुनी,
रुळियौ पेखण रूप।
माधव हिवै प्रकास मो,
सिव ताहरो सरूप॥

अजामेळ जमदळ अगां,
विछुट्यो बिखमीवार।
कीधी नारायण कहै,
पुत्तर हेत पुकार॥

न दे साद क्यूं नाथ जी,
साद दिये जो संत।
आपण नांम उळावतां,
धेनु ई कांन धरंत॥

अैळै नारायण तणौ,
जे नर नांम लियंत।
ते जम डंडां परहरै,
राघव सरण रहंत॥

मन पाखै ही महमहण,
चविये जीह चरित्त।
आतम पियै अजांण ही,
अमर करै अमरत्त॥

अैको नाम अनंत रौ,
पालै पाप प्रचंड।
जव तिल जेतौ ज्वाळकण,
खोण दहै वन खंड॥

केम हुवो? ईसर कहे,
किण जायो करतार।
ब्रह्मा-विष्णु, विचार भ्रंम,
पाये निगम न पार॥

छन्द बेअक्खरी

देवी-स्तुति

रिध सिध दियण कोहळा रांणी,
बाला बीज-मंत्र ब्रह्मांणी।
वयण जुगत दे अविचळ वांणी
पुणां क्रीत जिम सारंग पांणी॥

अवतार नामावळि एवं अंग-न्यास

व्रषभ! कपिल! हैग्रीव! विसंभर!
दत्तात्रेय! हरि! हंस! दामोदर!
राय-वैकुंठ! धनंतर! रिक्षभ!
गरूड़ारूढ़! प्रभू! प्रसनी-ग्रभ॥

मच्छ! कच्छ! वाराह! महमहण!
नारसिंह! वामन! नारायण!
दुज्जरांम! रघुरांम! दिवाकर!
क्रिसन! बुध! कलकी! करुणाकर॥

बलि अवतार तुं ही बलि-बंधण,
भगत तणा धरिया दुख भंजण।
तवै ज हरि अवतार तुहारा,
सदगत लहै, छूटै संसारा॥

बदरीवासी, वासी, व्रंदावन,
परम निरंजन मुगत सुपावन।
जग अवतार नमो जगदीसर,
अनंत रूप धारण तन ईसर॥

चवतां चरित तुहारा चेतन,
जनम नहीं पुनरपि मानव जन।
अकल अजन्मा अलख अलेपम,
क्रम मम कटै तुज्झ कथतां क्रम॥

माहरा करम मेटवा माधव,
क्रम हूँ कथिस तुहारा केसव।
नांम तुहारौ हौं घणनांमी,
सांस-उसांस संभारिस सांमी॥

आठूं पहर अनंत उलाविस,
रात दिवस हरि हृदै रखाविस।
मांडै पूजा तूझ महण-मथ,
सकल सरीर करिस इम सुक्रियथ॥

गिलका सिला सिला गोमत्ती,
मंडा बे संगम मूरत्ती।
साळिगरांम सिला सुध सेविस,
अगर धूप चंदन उखेविस॥

अनंत उर आरती उतारिस,
सोळ प्रकार पूजा संभारिस।
भाव भगति करतौ जग भावन,
पतित सरीर करिस इम पावन॥

चरण पवित्र करिस इम चत्रभुज,
त्रिगुण नाथ नाचै आगल तुझ।
इन्द्रिय पवित्र करिस अपरंप्रम,
दमे ग्यांन तूझ दइतां दम॥

उदर पवित्र करिस अपरंपर,
चरणाम्रत तूझ धरी चक्रधर।
पावन हृदो करिस पुरुषोत्तम,
संचै नांम तूझ श्री संगम॥

मन इम पवित्र करिस प्रभु मोरो,
त्रिक्रम ध्यांन धरे उर तोरो।
कर बे पवित्र करिस सेवा कर,
जोड़े तो आगल जगत गुर॥

पवित्र खंभ बे करिस एण पर,
अंक दिराय संख चक्र ऊपर,
पवित्र कंध इम करिस महाप्रभ,
नमे तुझे चरणां पोहकर नभ॥

कंठ इम पवित्र करिस करुणाकर,
गायै तूझ चरित गोपीवर।
मुख इम पवित्र करिस अघ भंजण,
भ्रखै प्रसाद तूझ दुःख भंजण॥

रसणा पवित्र करिस इम राघव,
भणै तूझ गुण तारणदधि भव।
दसण पवित्र करिस दामोदर,
आणंद हसे तूझ गिरिवर धर॥

अधर पवित्र करिस अहिवारण,
मुळके प्रेम भगति मधु-मारण।
वांणी पवित्र करिस सीतावर,
नित तुझ क्रीत प्रकासे नरहर॥

नासा पवित्र करिस इम निरमळ,
प्रभु घूंटै तो चरण-परिमळ।
नयण निपाप करिस नारायण,
पेखि रूप तो भगत-परायण॥

स्रवण निपाप करिस इम स्वांमी,
गुण तूझ कथा सुणै घण नांमी।
भ्रकुटी पवित्र करिस विसंभर
धर गोपी चंदण धरणी धर॥

मस्तक पवित्र करिस मुरसूदन,
बंदे तूझे चरण जग वंदन।
वेणि निपाप करिस लखमीवर,
मस्तक चाढ़ै तुलसी मंजर॥

तुचा पवित्र करिस दसरथ-तण,
चरची लेप करी हरि चंदण।
काय निपाप करिस इम केसव,
दंडवत करे तूझ दईतां-दव॥

रोम रोम तव नांम रखाविस,
इम करतां प्रभु चरणां आविस।
मनसा वाचा क्रमणा मांही,
नरहर तो बिण राखिस नांही॥

विषय संसार तणा विसारिस,
श्री रंग गुण थारा संभारिस।
म्हैं म्हारी इन्द्रियाँ सह माधा,
बलि-उद्धार विसै तो बाधा॥

नांम नाव हूं चढ़ियौ जग-न्रप,
रखै हिवै डोलै रावण दिप।
करो क्रपा तो सेवा कीजै,
लिवरावो तो नांम लिरीजै॥

पखै रजा कोई चलण न पांमै,
भगत-वछल पड़ियौ जग-भांमै।
राज-तणी इच्छा रघुराया,
अखिल चराचर जीव उपाया॥

राज तणी अग्या सिर राखिस
भीतर तूझ तणा गुण भाखिस।
घण दिन रो बिछट्यौ घण नांमी,
साथ तुम्हारौ त्रि-भुवन सांमी॥

भमतो राख हमें जग-भावन,
प्रेम-भगति दे त्रिभुवन-पावन।
क्रिसन राख मों हूं तो करतो,
धरणी धर मन ममता धरतों॥

तूझ विसै मति दे धू-तारण,
कूप संसार काढ़ सब कारण।
फेरा घणा भवोभव फिरतो,
माधव राख जनमतो मरतो॥

पाप करंतो मो मन पापी,
ताहरै नांम जाय सह तापी।
नारायण तो सम कोइ नांही,
चौदह भुवन हुकम चे मांही॥

ओ संसार असार अनांमी,
सार उबार लीजिये स्वामी।
त्रि-भुवन नाथ नहीं तोय तोलै
बांह ग्रहो अब 'ईसर'बोले॥

छन्द मोतीदांम

भ्रमाय विचारत रुद्र ब्रहम्म,
न पावत तोराय पार निगम्म।
प्रमेसर तोराय पार प्रलोय,
कुरांण पुरांण न जाणत कोय॥

अधोक्षज अक्खर तुझ अवेव,
दिनंकर चंदन जांणै देव।
त्रणै गुंण तूझ न जांणै तंत,
अहीस सबद्द न जांणत अंत॥

वडा तत तूझ लहै न विचार,
पुरन्दर तूझ न पावत पार।
भला मुनि तूझ न जांणै भेद,
विचित्रय तूझ न जांणै वेद॥

दामोदर तूझ दसे दिगपाळ,
किता इक पार न जांणै काळ।
अभै अणपार अगम्म अलेख,
लखम्मी तूझ न जांणै लेख॥

महातत! तूझ न जांणै माह,
कियो तुझ केण आयो तूं काहं।
अलीलोय लील करंत आदेस,
आदेस, आदेस, आदेस, आदेस॥

अलाह अथाह अग्राह अजीत,
अमात अतात अजात अतीत।
अरत्त अपीत असेत अनेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

अनंक न संक न धंक न धीस,
निवास न, बास न, आस न ईस।
निराळ निकाळ त्रिकाळ न देस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

क्रपाळ गोपाळ भूपाळ क्रिसन्न,
वडाळ श्रंगाळ छत्राळ विसन्न।
म्रणाळ भुजाळ विसाळ मुनेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

अमाप अपार अछेह अनोप,
अथाह अप्रम्म अलेख अलोप।
विराग न राग न वप्प न वेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

अनाथ अगम्म अनेह अगेह,
दातार अपार अणंकल देह।
जरा जम जीत अजीत जोगेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

निमूळ निसाख निरंजण नाथ,
सरज्जण भुवण तीन सम्राथ।
मुनिगण सेवक सूर महेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

रहै रत ध्यांन अठ्यासी रिक्ख,
लहै न पार ब्रहम्मा लक्ख।
सहस्र मुखां जस भाखत सेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

करै सनकादिक च्यारूं क्रीत,
पढै नित नारद धारत प्रीत।
रहै नित सेव खगेस सुरेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

अधो मुख ताप तपै मुनि ईस,
रजो तम रंच धरै नहीं रीस।
ध्रुवं रवि चन्द सुध्यान धरेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

पबै कुळ आठह सात समंद,
उचारत नाम अहोनिस इंद।
मुखां नित टेरत ब्रह्म महेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

गौरीपुत्र जाप जपंत गणेस,
सदा द्रढ़ ध्यांन धरे सिध सेस।
वंदै मुनि चारण देव विसेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

कथै सुर नांम तैतीस करोड़
जपै नर-नारि उभै कर जोड़।
पयंपत वासि पताळ पुरेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

हुवा रिषि खोज अठ्यासी हजार
वंदे जस वेद छ: सास्त्र विचार।
धियावत किन्नर यक्ष धनेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

विचारिय वाणिय खाणिय च्यार,
वंदै जग जीव विचार विचार।
लहै नहीं पार कहा लवलेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

उभै रवि चन्द किया तें उजेस,
रम्यौ अकळंक सदा तूं रमेस।
दधि घण थागण कोण दरेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

सपत्त पंयाळ न सात समंद,
दिसा दिगपाळ न चंद दिनंद।
सुमेर न सेस पहिलोय सोज
हुतोज हुतोज हुतोज हुतोज॥

प्रथी-पुड़ डाळ न आभ प्रचंड,
म लोकायलोक महा ब्रह्मंड।
अजं सिव आदिय पांण अलोज,
हुतोज, हुतोज, हुतोज, हुतोज॥

वंदे चत्र वेद बिरंची वखांण,
प्रकासै व्यास अठारै पुरांण।
खत्री दुज वैस गया सूद्र खोज
हुतोज, हुतोज, हुतोज, हुतोज॥

सत्रूपा नार स्वयम्भू भूप,
रहस्स विचार सदीठो रूप।
मांगे वर पुत्र हुवो हरि मौज,
हुतोज हुतोज हुतोज हुतोज॥

गोलाक्रत चक्र न वक्र गणीत,
अगोचर नांम सदा तूं अजीत।
अकामिय अंग असंग अेकोज,
हुतोज, हुतोज, हुतोज, हुतोज॥

जमी असमांण न आंण न जांण,
प्रलोक भूलोक न खांण न पांण।
कुरांण पुरांण बखांण न कोज,
हुतोज, हुतोज, हुतोज, हुतोज॥

न जम्म न दम्म न जीव न जंत,
अक्रम न क्रम न आदि न अंत।
नरेस नसेस सुरेस न कोज,
हुतोज हुतोज हुतोज हुतोज॥

मेटे मुर लोक पैठो जळ मांह,
तठै इक अंड निपायौ तांह।
किया धर अंबर वार अेकोज,
हुतोज हुतोज हुतोज हुतोज॥

नवे ग्रह थापण थीर सुनांम
धरे केई लोक अलौकिक धांम।
महादत मोक्ष समापण मौज
हुतोज हुतोज हुतोज हुतोज॥

अनंत पराक्रम तूझ अनंत,
नहीं तुझ आदि नहीं तो अंत।
नहीं तुव रूप नहीं तुव रेख,
नहीं तुव वप्प नहीं तुव वेष॥

नहीं तुव जोत नहीं तुव जांण,
नहीं तुव पिंड नहीं तुव प्रांण।
नहीं तुव सार नहीं तुव सुद्ध,
नहीं तुव बाल नहीं तुव बुद्ध॥

नहीं तुव जोग नहीं तुव जाप,
नहीं तुव पुण्य नहीं तुव पाप।
नहीं तुव भिन्न नहीं तुव भास,
नहीं तुव वन्न नहीं तुव वास॥

नहीं तुव नैण नहीं तुव नास,
नहीं तुव श्रम नहीं तुव सांस।
नहीं तुव ठौड़ नहीं तुव ठांम,
नहीं तुव गोठ नहीं तुव गांम॥

नहीं तुव दीह नहीं तुव रात,
नहीं तुव जात नहीं तुव भ्रात।
नहीं तुव गूंज नहीं तुव ग्यांन,
नहीं तुव द्विज नहीं तुव दांन॥

नहीं तुय विप्र नहीं तुव वैस,
नहीं तुय खत्रिय सूद्र न खैस।
नहीं तुय दैत नहीं तुव देव,
नहीं तुय भेद नहीं तुव भेव॥

नहीं तुय नांम नहीं तुव नेम,
नहीं तुय अंतर प्रेम अप्रेम।
नहीं तूं धूप नहीं तूं छांह,
नहीं तुव नार नहीं तू नाह॥

नहीं तुय वित्त नहीं तुय वांण,
नहीं तुय खेत नहीं तुय खांण।
नहीं तुय दीरघ सूक्षम देह,
नहीं तुय नारि,पुरुष सनेह॥

नहीं तुय क्रम्म नहीं तुय कांम,
नहीं तुय ध्रम्म नहीं तुय धांम।
नहीं तुय मूळ नहीं तुय डाळ,
नहीं तुय पत्र नहीं तुय पाळ॥

नहीं तुय साधक तंत न तंत्र,
नहीं तुय जंत्र नहीं तुय मंत्र।
नहीं तुय साख समंध संसार,
नहीं तुय जांण पिछांण जुहार॥

प्रथी अपतेज अनील अकास,
नहीं तुव सून्य असून्य निवास।
प्रमेसर प्रांण पुरुष प्रधांन,
गरम्भ-जगत्त वेदान्त गियांन॥

नहीं तुज्झ मात नहीं तुज्झ बाप,
आपै ज आप उपन्नौ आप।
मनेच्छाय बीज चलावण मूळ,
थयो चर अच्चर सुक्षम थूळ॥

विराट समान निपावे व्रक्ख,
दुहुं फळ जेण किया सुख दुक्ख।
निपाविय रूप उभे नर-नार,
वधारिय जग्ग तणों विस्तार॥

धरे इक पाप धरे इक ध्रम्म,
करे इक जीव करे इक क्रम्म।
सरज्जिय आप त्रिधा संसार,
हुवो मज्झ आप ही रम्मणहार॥

घड़ै सह आपज हूंता घाट,
वणांविय विस्व कियौ वैराट।
किता तैं बार ब्रहम्मा कीध,
लीला अवतार किता तैं लीध॥

विसन्न! वणाविय केतिक वार,
ब्रह्मम्माय हाथ दियो व्यवहार।
उपाविय इच्छा आप अलक्ख,
लिया अवतार चौरासी लक्ख॥

हुवो दिग- मूढ़, ब्रहम्माय देख,
अजप्पाय दाखव रूप अलेख।
सनक्क सनातन गात सुरीत,
चिताविय ब्रह्माय हंस चरित्त॥

सूतो बड़ पांन समाधि समंद,
मया सब मेटिय बाल मुकंद।
उपन्नाय दाणव दोय अजीत,
भगे सब देव हुवा भयभीत॥

पुकारत आय तो पास परम्म,
उबार विसन्न कहै सुर अम्म।
प्रमेसर सांभळ देव पुकार,
विढ़वा सज्ज हुवो तिण वार॥

बिहाँ सूं हेका लीधी बाथ,
नरोवर मांय कियो जुध नाथ।
बध्या मधुकैटभ सा बळ बुद्ध,
जीत्या तैं दाणव बाहु-जुद्ध॥

दईतां आगळ देव दातार,
बिछोड़े देव किता तैं वार।
करेवा देव तणां वड कांम,
रह्यौ बिच दैत महा जळ रांम॥

महा गिड़ पैस महा जळ मज्झ
किता जुद्ध कीध प्रथम्मी कज्ज।
प्रथमिय जातिय रेस पंयाळ,
दाढां बिच राखी दीनदयाळ॥

रखी धर वार किता तें रांम,
सजे हिरणाक्ष बखे संगरांम।
अंकासे वार किता तें आव,
विधूंसिय त्रिपुर अम्रत वाव॥

वेदांरिय वार करी कई वार,
सुधि लिय कीध दईत संहार।
विमोहिय रूप अगाध वणाय,
जटाधर बचाय दैत जळाय॥

किता तें बार बिखै कळपंत,
बांधी ले श्रंग प्रथी बळवंत।
हलाविय केतिय वार हमल्ल,
मथे महराणव हेकल मल्ल॥

किता तें बार लिया किरसन्न,
रिणायर रोळिय चवदै रतन्न।
मथै तें बार किता महरांण,
सुरां ले दीध अम्रत सुजांण॥

दळै तें केता वार दईत,
इन्द्रासण दीधो सक्र अजीत।
हणे नख वार किता हरणक्ख,
भवानिय भैरव दीधा भक्ख॥

पाळै पखवार किता प्रहलाद,
सुणंतां सेवक आरत साद।
दिया तें वार किता वरदांन
थपे ध्रु-राज अवीचळ थांन॥

पुकारत सन्त सुणे प्रतपाळ,
दौड़े उठ आतुर दीन-दयाळ।
राखैं तें बार किता गजराज,
महाबळि ग्राह हण्यो महाराज॥

दाबे बळि वामन लीधो दांन,
उभै कर पैंड जमीं असमांन।
बांधे तें बार किता बळिराव 
बिगोयी दाणव केता बाव॥

भेदे तें बार किताक भूगोल
करंती आंणी गंग किलोळ।
किता तें बार सुरां सुख कीध,
दया करि देव त्रिविस्टप दीध॥

हुवे असुरांण तणा हळकार
पुणे जमदग्गन मुक्ख पुकार।
आयो केई बार फरस्सु उठार,
सहस्रयबाहु स सैन संहार॥

खत्री वंस बार किता तें खेस,
रेणा ले दीधी विप्रां रेस।
जीत्यौ तैं बार किता बळ जंग,
रखावण तात जनेताय रंग॥

धरे नर देह अजोध्या धांम,
राजा दसरथ्थ तणै घर रांम।
बिहूं रघुवीर सौमित्र बुलाय,
सजे जग विसवामित्र सहाय॥

सुबाहु मारीच ताड़िका संघार,
महा रिख कीध निसंक मुरार।
जनंक तणौ बलि जोयो ज्याग,
भांगे धनु भीम भला सिय भाग॥

कियो त्रय-खण्ड भूतेस कोदंड,
बेटो दसरथ्थ तणौ बळबंड।
आयो रिख कोण स्रवंत अंगार
तजे बळ चाप कियो दुज तार॥

व्हियौ वर ब्याव उछाव विसेस,
धायै जहं देव दिनेस धनेस।
कैकई मंथर कुमंत्र किधेव,
वन सिया राम अनंत सिधेव॥

महा दिय मान करै गुह मीत,
तारे सह कीर कुटुम्ब सहीत।
विरूप करी सूपणखां वन्न,
तदै खरदूख वछोड़िय तन्न॥

हरी महम्माय धरयौ छळ हाव,
मिळ हणवंत महाबळ माव।
जगाविय आग मिळै कपि जोध,
बिंधै सत ताड़ पमै कपि बोध॥

उपाड़ बिगाड़ै समदां ओड़
करे सोइ जोजन दुंद करोड़।
कियो कपि मीत सुग्रीव सुकाज,
रहच्चे बालि दियो कपि राज॥

धरी दधि पाज पहाड़ां धार,
पदम्म अठार उतारिय पार।
पड़यौ जद आय विभीषण पाय,
लियो जद राघव कंठ लगाय॥

उगार विभीषण कीध अभीत,
दीधी तें लंक अलीध अदीत।
जीते तें बार किता इन्द्रजीत,
संहार दईतां वाळी सीत॥

लियो तें बार किता गढ़ लंक,
संहारे कुंभ मनाड़े संक।
दळे तें बार किता दहकंध,
बांध्यो दधि देवां छोडण बंध॥

बिखो तें ब्रज्ज पड़ंती बार,
धरे गिरि बार किता गिरधार।
बजाड़िय बार किता इक बंस,
किता तूं फेराय जीत्यो कंस॥

राजा उग्रसेण समापे राज,
करे जदुवंस तणा सिध काज।
किता बेर पांडव ऊपर कीध,
लाखाग्रह हूंत बचाविय लीघ॥

दुसासण क्रन्न गंगेव दुजोण,
खँपे कुरुखेत अढ़ार अखोण।
किता तें सेवक सारण काज
रचे हथणापुर पंडव राज॥

ज्वाळा चख जाळिय काळ जवन्न,
कियो मुचकंद निमित्त किसन्न।
बाणासुर छेद भुजा बळवन्त,
करी जग जीत लखम्मिय कंतं॥

धरे तुम बार किता हरि ध्यांन
ग्रहावण लोक अनोअन ग्यांन।
किता तें फेरा जीत किलंग,
जुगोजुग कीध दइतां जंग॥

गुवाळ समेत राखी तें गाय,
महा दुःख हूंत छुडाविय माय।
जळंताय उत्तराय ग्रम्भ मंझार
अनंत परीक्षत संत उबार॥

निरम्भै कीन्ह अभिमन्यु नारि
मेळावी गोप न्रकासुर मारि।
जीवाड़ी नार तणी जयदेव,
ग्रहे चक्र राखी पत गंगेव॥

पंचाळी सांभळी दीन पुकार,
वधारी लाज बिख्खमी वार।
संपूरै थांन इकोन सहस्स
रमापति तोर अभूत रहस्स॥

बिछोड़ै रुद्र कपाळ ब्रहम्म,
कियौ सुकदेव अतीत-करम्म।
उगारै स्राप थकां अंबरीख
सदा किय सेवग आप सरीख॥

असंख्य तूझ तणा अवतार,
ब्रहम्मा रुद्र लहे न विचार।
नमो सनकादिक स्यांम-सरीर,
नमो वय-पंच-व्रखै चत्र-वीर॥

नमो मही-साह वराह समत्थ,
नमो हरणाक्ख हण्यो निज हत्थ।
नमो मच्छ संग्र-मंडांण मुकन्द,
नमो कलिरास दईत निकन्द॥

नमो हय ग्रीव निगम्म सहेत,
नमो खळ मार हयानन श्वेत।
नमो विधि वेद समप्पण विद्ध,
नमो सुर काज करे हर सिद्ध॥

नमो तन हंस त्रिलोकी तात,
नमो विधि ग्यांन सुणावण वात।
नमो प्रहलाद उबारण प्रम्म,
नमो म्रग-काछब मारण म्रम्म॥

नमो कमठा धर रूप सुकाय,
नमो मंदराचळ पीठ भ्रमाय।
नमो हरि आप धनंतर होय,
नमो सब रोग निवारण सोय॥

नमो ध्रम-देह विसंभर धार,
नमो मही-व्यापिय सोय मुरार।
नमो बलि-बंधण रूप बावन्न,
नमो भर तीन पगां त्रि-भुवन्न॥

नमो त्रय-रूप दत्तात्रेय देव,
नमो जप तप्प सध्यांन अजेव।
नमो जग-आदि पुरस जगीस,
नमो अवतार असंखै ईस॥

नमो नर-नारण जोग निवास,
नमो दुःख हूंत उगारण दास।
नमो गज-तारण मारण ग्राह,
नमो व्रज काज-सुधारण वाह॥

नमो धर ध्यांन हरि निरधार,
नमो मनसा ध्रुव पूर मुरार।
नमो पुनि भू-पति प्रथ्थु पुनीत,
नमो अवनी अघ मेट अनीत॥

नमो रुसि तापस रूप रिष्षंभ,
नमो अवतार उदार असंभ।
नमो कपिलेसर ट्रस्टि करूर,
नमो सुत सग्र जळावण सूर॥

नमो रिख जामदगन्न सुरीस,
नमो किय बार निछत्रि इक्कीस।
नमो रण रावण-मारण रांम,
नमो किय सिध्ध विभीषण कांम॥

नमो कन्ह रूप निकंदण कंस,
नमो ब्रजराज नमो जदु वंस।
नमो प्रम-संत गऊ-प्रतिपाळ,
नमो दुष्टां-दळ दीन-दयाळ॥

नमो भव बुद्ध भये भगवांन,
नमो ग्रह जीव दया उर ग्यांन।
नमो विद व्यास निगम्म वखांण,
नमो पह कीध अठार पुरांण॥

नमो इळ मेटण पाप अपार,
नमो वरतावण सत जुग बार।
नमो निकळंकिय नाथ नरेह,
नमो कळि काळग नास-करेह॥

नमो अवतार अनंत अपार,
नमो पढ़ सेस लहै नहँ पार।
नमो अतुळीबळ तात अनंग,
नमो निरवांण नमो निरलंग॥

नमो पति सूरज कोटि प्रकास,
नमो वनमाळी लील विलास।
नमो लख कंद्रप लावण तन्न,
नमो मनमोहन रूप मदन्न॥

बदन्न हुलासित नेत्र विसाळ,
मयूर किरीट अखे गळमाळ।
वसन्न सुपीत वपु धनवांन,
कळीत मक्राक्रत कुंडळ कांन॥

उभै कर दूंण आवध्ध असंख,
सारंग पदम्म गदा चक्र संख।
नमो पंच ब्रन्न परम्म पुनीत,
सितासित पीत सुरत्त हरीत॥

सोहं सब भूत वियापत स्रब्ब,
दुवादस आंगळ गात दिपव्व।
जदुकुल-नायक सामिय जग्ग,
पदम्म पताक अलंकृत पग्ग॥

पगां रिय रेणु धरे सिर प्रम्म,
धियावै पग्ग अहोनिस ध्रम्म।
पूजै पद-पंकज कमला-पांणि,
उदक्क चढ़ावै गंगा आंणि॥

पखाळत तीरथ अड़सठ पग्ग,
इंद्रादिक देव करंत ओळग्ग।
तळां सत पाय नवे निध तम्म,
महासिध साधक जांणत भ्रम्म॥

महातम जांणै ब्रह्म महेश
सदा पग आगळ लोटत सेस।
गुणां असतूति करंत गणेस
पगां रुसि लाग करे नित पेस॥

पगां हणुमंत करंत प्रणांम,
सदा पग वंदत कारतक सांम ।
पगां तळ मंडत सीस प्रयाग,
बसे पत्र आगळ ग्यांन विराग॥

पियै पग रस्स ब्रह्माराय पूत,
अम्रत सौरंभ घुंटै अवधूत।
पूजै पग विम्मळ वेद पुरांण,
अळीयळ नाथ लिये अघ्रांण॥

लखम्मिय पग्ग धरे उर लेह,
बुधी सिध्धि पग्ग तळे रह बेह।
रमै पद-छांह मधूकर रिक्ख,
तके पग नाग सरीखो तक्ख॥

पगां भंणि सिंधू सात पंयाळ,
मेलै पग आगळ मोतियमाळ।
सोहे पग छांह सातूं रिसि सांम
रंजै पग छांह जसा बळरांम॥

जपै पग गौतम गर्ग जमन्न,
कपील कणाद कहै करमन्न।
पतंजलि व्यास जुड़ै नित पांण,
वदै पग रा खट-भास वखांण॥

सेवै पग जन्नक सन्नक सूर,
अरजुण उद्धव ओ अकरूर!
जपै पग कोटि छप्पन जादव,
वंदै सुकदेव जिसा वैस्नव्व॥

पगां दुहं राह करंत प्रणाम,
सेवे पद कंज संन्यासी सयांण।
प्रणम्मै पग्ग परम्म पवीत,
सावित्री गौरि गायत्री सीत॥

सेवै पग गंध्रव चारण सिद्ध,
वंदै पग रा जस वंस विसुध्ध।
जुहारै पग्ग जिसा जयदेव,
सेवक्क अनेक करै पग सेव॥

हियै पग छांह सदा हटहाट,
सुरंभत पग्ग पहाड़ संधांर।
चहै पग छांह बिबुद्ध समाज,
रहे पग छांह बड़ा बळराज॥

चरच्चत पाँव सुसीतळ चंद,
दिपै पग सेव करै दुड़ियंद।
तळै पग छांह नवै ग्रह तांम,
पगां दिगपाळ करंत प्रणाम॥

वडा पग जांण वंदे दरवेस,
देखै पग देव करंत आदेस।
ओळग्गत पांव धरम्म अलक्ख,
चहै पग गोरख आतुर चक्ख॥

अळूझत पांव विरक्त अमांण,
सेवे पग राउर दास सुजांण।
पगां सब वंदत जोड़त पांण,
भुवंन चवदे वंदे पग भांण॥

वडा जोगीन्द्र वंछै पग वास,
तुहाळाय पग्ग न मेल्हूं तास।
परंमल कंमल सद्रस पग्ग,
निधांन, परंम निवारण न्रग्ग॥

इसा पग तूझ तणा उदार,
सेवंतां पाप टळै संसार।
म ठेल म ठेल पगां सूं मूझ,
त्रिविक्रम नाथ अनाथांय तूझ॥

अहिल्या रेस दियो तें अंग,
सरीर कुबज्या कीध सुचंग।
दीधी नह-कूबर पूरब देह,
न भांग्यौ नागण-नाग सनेह॥

महा गज ग्राह छुडावण मंत,
सनातन पाळक केवल संत।
भगतांय भूधर भांजण भीड़,
प्रजाळहु देव! अम्हीणी पीड़॥

त्रिविध्ध त्रिजग्ग त्रिविक्रम तार,
चतुर्भुज आतम चेतन सार।
बळीभद्र बंधव गोकुळ बाळ
खिमावंत साधां दुस्ट खैगाळ॥

तवै हरि नाम अहो निसतंम,
जरांतक ताह न व्यापै जंम।
भजै तुव नांम टळै मन भ्रंम,
कथै तुव नांम कटै सब क्रंम॥

रटै तोय नांम मिटै दुःख रोर,
जरामय पाप न लागत जोर।
जपै तोय नांम प्रतिदिन जीह
संसार तिकां न सतावै सीह॥

सदा तोय नांम रटै श्री रंग,
भखै नहं ताहि संसार भुजंग।
रखै तोय नांम तणी अति रीझ,
वळे धख त्यांह न मारै वीज॥

रटै तोय नांम व्रंदावन राव,
तिकां पिंड कोय न लागै ताव।
करै हरि हेत तुम्हीणी क्रीत,
चिंता त्यां मूळ न व्यापै चीत॥

वदै तोय नांम लख्खंमण वीर,
नरां पिंड घात हुवै नहँ नीर।
दाखै तुज्झ नांम सु अक्खर दोय,
नैड़ौ त्यांह रै पिंड-रोग न होय॥

जको हरि पाय लग्गो रहे जाहि,
तिलो भर मोह न लोपत ताहि।
रत्ता तोय नांम जिके रहमांण,
जिकां नहं थायै आवा जांण॥

चत्रभुज नांम धरै हित चित्त,
नवे निध सिध्ध मिलै त्यां नित्त।
रता तोय नांम जिके घण रूप,
कदै न पड़ै नर सो भव कूप॥

भणै गुंण तोर लच्छि भरतार,
लगै नहँ त्यां मन पाप लगार।
मुकंद तूं आय बसे जिहि मुक्ख
संसार समंद तरै वह सुख्ख॥

मुरार तूं आय बसे जिहि मंन,
दहै नहिं ताहि संसार-दवंन।
जपै हरि तोरा जाप जिकांह,
टलै भव बंधण पाप तिकांह॥

ओळख्खत रांम ज आप ही आप,
बिखै तन पंच सकै न बियाप।
भजे तुज्झ नांम जकै भगवांन,
खपै ताहि पाप त्रसा खय मांन॥

प्रगट्टैय ग्यांन तोरा ज्यां प्रंम,
भगत्ति बधै मन छूटै,भ्रंम।
आखंतां नांम टळै दुःख ओघ,
उपज्जै आणंद चित्त अमोघ॥

न मेल्हूँ तूझ तणौ हरि नांम,
विसन्न भगत तणां-विसरांम।
परम निवास निवारण पाप,
जोगेसर भद्र अजप्पा जाप॥

दातार मुगत्ति दिनंकर देव,
सारूप सालोक सामीप सावेव।
सदानंद दाता नांम सहस्स,
रघूपति उच्चित अम्रत रस्स॥

भगति-अधीन मुगत्ति-भंडार
अगोचर वेद ब्रहम्म अपार।
निरंजन नाथ! नमो निरवांण,
किसन्न महाघण रूप कल्यांण॥

स्रब्ब गुण देव अतीत संसार,
विभू! अति-गुंज परम्म विचार।
धरम्म करम्म वरम्म सुधांम,
रहीत-सबद्द सु केवल रांम॥

अमीत कला बिंदु-नाद उदास,
नमामिय भूत सरब्ब निवास।
प्रकृति अतीत पुरुष पुरांण,
अखंडित ज्ञान परम्म अघ्रांण॥

प्रथव्विय कारण तारण प्रभ्भ,
सबै जग जीव वियापक स्रब्ब।
उपत्ति-खपत्ति-प्रकृत्ति-असंग,
सरोज-सुलोचन ध्रुव श्री रंग॥

पितामह ईस ब्रहम्माय पित्त,
कथे विधि विविध विध सुक्रीत।
श्री रंग अनंत करै पग सेव,
भगत्ति मुगत्ति दिये त्यां भेव॥

सथापण ध्रम्म प्रकासण स्रब्ब,
गोपाळ असूर उतारण ग्रब्ब।
अनाथ-सनाथ अनूप-अछेह,
दयालु-मुरत्ति विवरजित देह॥

बिना वपु-रूप अनंत विथार,
अमूळ विरख्ख सु विस्वाधार।
प्रच्छन्न, प्रतक्स, प्रधान, पुरख्ख,
अगोचर एक अनेक अलख्ख॥

अखील तपोनिध त्रीगुण ईस,
अतीत जराम्रत जोग अधीस।
विसब्बं विमोह विसन्न विज्ञांन,
रतीपति तात प्रक्रति राजांन॥

गोविन्द भगत्त निवारण ग्रभ्भ,
परम अम्रत-पद प्रद परम्भ ।
सदा अन मद्द जोगाणंद सद्ध,
वयं तन बालन जोबन वृद्ध॥

ग्रहे विण पांण अपाय गवन्न,
अलेखत रूप सबे अनयन्न।
मुनेस महेसर अंतर मंज्झ,
प्रसिद्ध महाबळ तेजसु पुंज॥

अखां उपमा नख कोटि अरक्क,
सम्राथ सरज्जण भांजण सक्र।
इक क्षण मांझ भंजे घर आभ,
निपाव अध क्षण पद्दम-नाभ॥

उथाप सथाप ब्रहम्माय इन्द्र,
चत्रभुज! भांज घड़े रवि चन्द्र।
भुवन्न त्रणे नर देव भुयंग,
प्रमेसर! तोराय कीट पतंग॥

निरंजण नाथ! नमो नकळंक,
कळंकिय टाळण साध कळंक।
नमो बहु नामिय माधव बुद्ध,
सेवक्क साधार सदा शिव सुद्ध॥

नमो सब सारण कारण स्यांम,
उबारण गोकुळ इन्द्र उणांम।
नमो जग वंदण जीवण-नंद,
महा विस नाग उतारण मद्द॥

नमो मुर मेघ मरद्दंण मल्ल,
संखासुर काळ वक्रासुर सल्ल।
नमो कंस केसि-विधूंसंण कन्न,
रुकम्मणि प्रांण पुरुस रतन्न॥

नमो प्रमहंस सरोवर प्रेम,
निरम्मळ गोकुळनाथ निगेम।
नमो भगतां वस गो भरतार,
विसन्न व्रन्दावन लील-विहार॥

नमो अच्युतानंद गोविंद अज्ज,
नमो बरषा हुंत राखण ब्रज्ज।
नमो सुध सागर-साइय सेस,
नमो ब्रज ईस नमो नट वेस॥

नमोय गोविंद नमोय गोपाळ,
नमो गिरधारिय गोप गुवाळ।
नमो बळदेव नमो ब्रज बाळ,
नमो दुःख भंजण दीन-दयाळ॥

नमो नंद नंद नमो नंदनेस,
नमो ब्रज-चंद नमो ब्रज देस।
नमो जदुनाथ बळिभद्र जोड़,
रिणासर नाम नमो रणछोड़॥

नमो पुरुषोत्तम त्रीक्रम्म प्रम्म,
नचावण गोपिय नाच अगम्म।
नमो अविगत्त भगत अछेह,
नमो सत्तरूहण भरत सनेह॥

नमो दुज-पंख तणा सर धज्ज,
गुणेह अतीत लखण्ण अग्रज्ज ।
नमो प्रभु सायर बांधण पाज,
नमो रिपु रावण रोळण राज॥

नमो कुंभेण तणा भुज काळ,
नमो खळ राकस कुळ खैंगाळ।
नमो रवि-वंस तणा रवि रांम,
विधूंसण लंक बड़ा वरियांम॥

नमो द्विज रांम दामोदर देव,
नमो गुरु द्रोण करण गंगेव।
नमो वपु बांमन दीरघ वीख
भिखंग पुरंदर भांजण भीख॥

नमो नरसींह लखम्मिय नाह,
विसंभर वीठल आदि वराह।
नमो मच्छ माधव कच्छ करम्म,
पतीत उद्धारण देव परम्म॥

नमो गुरु आदि प्रसन्निय ग्रभ्भ
राघव कपिल केसव रिसभ्भ।
नमो गुरु नारद ब्रह्म-गियांन,
नारायण जोगिय जोग निधांन॥

नमो सिद्ध संकर भांजण सूळ,
मुरार मुकंद महातत मूळ।
नमो नित नांम अम्रत निखात,
त्रिविध अतीत प्रळै गत तात॥

नमो सुख साधु समंद मयंक,
नमो नकळंक नमो निरसंक।
नमो सिसुपाळ विहंडण नूर
जरासंध देवण रेस जरूर॥

नमो कुळ साधक सेव्य सुरेस,
नवे कुळ नाग पिंयाळ नरेस।
नमो सब व्यापक अंग-अनंग,
नमो निसि वासर रेण निहंग॥

नमो हयग्रीव निगम्म निखात,
बडा कवि ब्रह्म बदे बड ख्यात।
नमो प्रभु रूप प्रताप प्रतक्ख,
नमो वर-लच्छी परम विरक्ख॥

नमो अवधूत उदास अलक्ख,
नमो गुरुदत्त गिनांन गोरक्ख।
नमो विगनांन गिनांन विसंभ,
थमावण आभ धरा विण थंभ॥

नमो धरणीधर धारण धीर,
नमो भव तारण भंजण भीर।
नमो हरि देव नमो हरि रांम,
नमो हरि रूप नमो हरि नांम॥

नमो हरि रस्स नमो हरि-हंस,
नमो हरि-कान्ह नमो अरि-कंस।
नमो अविगत्त नमो अकळीस,
नमो अपरम्म नमो सब ईस॥

नमो ॐ रूप नमो ओम्कार,
नमो अजरामर सेस आधार।
नमो अवतार सकाज अधीस,
नमो जग-ताज नमो जगदीस॥

नमो अण आमय जोत अखण्ड,
नमो वपु कोटि वसे ब्रह्मण्ड।
नमो अंग आणंद रूप अतीत
नमो अवधूत अक्रम्म अजीत॥

नमो निरलेप नमो निरकार,
नमो निरदोस नमो निरधार।
निरगुण नांम नमो तुव नाथ,
सगूण सरूप नमो समराथ॥

नमो प्रहळाद तणा प्रतिपाळ,
नमो ससि सूरज जोत सिंगाळ।
नमो करुणाकर रूप कंठीर,
नमो वर लक्ष्मी तणा रघुवीर॥

नमो नर स्यंदन हाकण हार,
सबै दळं कारव कर्ण संहार।
नमो कृत काळ तणा दसकंध,
नमो बहु देव छुडावण बंध॥

नमो हरि लीलाय उत्तम नांम,
सोऽहं अवतार नमो सियरांम।
विसन्न नमो तुझ आदि विभूति,
को जाणेव तूझ तणी करतूति॥

बूझे कुण नाथ तोरा बोह बंग,
सकत्ति न सिव मूरत्ति न लिंग।
करंताय काळाय-वाळाय क्रीत,
चत्रभुज रूड़ाय मानोय चीत॥

पयंपेय ईसर जोड़िय पांण,
कृपाळ करो हिव मूझ कल्यांण।
दीठा मैंय तूझ तणा दीदार,
संसारय बाहर मांय-संसार॥

पदारथ लाधोय तू ज परब्ब,
सूत्रां जिम ताणाय वाणाय स्रब्ब।
पुरांणाय प्रम्म बंचाणाय पत्र,
जग्गपत्ति तूं हिज तूं ज जगत्त॥

जुगत्तिय जातिय पांतिय जांण,
प्रच्छन्न हुवो तउ दीठोय प्रांण।
दिठो प्रभ आतम आपोय दाख,
भुवन्न नहीं जिण ठोड़ स भाख॥

छतो थइ माधव घूंघट छोड़,
ठयो तू ठावो ठाविय ठोड़।
मुणां कुण जाग असी जग मूर,
नहीं जिण मांह तुहारोय नूर॥

जळ स्थळ थावर जंगम जोय,
कहाँ हरि तूझ पखै नहिं कोय।
मकोड़िय कीट पतंग म्रणाळ,
भिखंग तुंहीज तुंहीज भुवाळ॥

सबै भरपूर रह्यौ घण स्यांम
रमै घट मांझ सदा तूं रांम।
हरि तू बणाविय बाजिय हद्द
बाजीगर तूंज बड़ोय बिहद्द॥

अनोअन आतम रांम अळूझ,
गोविन्द तुहारोय लाधोय गूझ।
मुकंद म पेठ पड़द्दाय मांय,
ठावो हों कीध सबे हिय ठांय॥

सबै असथांन हों देखत सांइ,
मिनखांय देवांय नागांय मांइ।
इंडज स्वेदज्ज जरा उद्भज्ज,
माया स्रब तूझ म भूलब मुज्झ॥

क्रतांत तूं क्रत क्रीड़ा तुय कांम,
रमाड़ म पग्ग लाधो हिव रांम।
म राख पड़द्दोय आडोय मूझ,
जहाँ निरखों तहां देखांय तूझ॥

विधोविध दीठोय मांय विभूत,
धुताई छोड परी सब धूत।
सुरत्त तूं ही ज तूं ही ज सबद्द,
मरद्दांय मादांय मांहि मरद्द॥

प्रभु तूंझ पांणिय तूंझ पवंन,
गरज्जत भूमि पंयाळ गगंन।
इळा त्रय तूंझ उड़ियण अभ्भ,
पुणंगांय मेघांय मांय परम्भ॥

रमे तुंहि रांम जुवा धरि रंग,
तूं ही ज समुद्र तू ही ज तरंग।
अनोअन मांहि तुम्हारोय अंस,
हिवे म छिपाय छतो थई हंस॥

जांण्यो हिव ओझळ छोड़ जीवंन,
पेखां तुव साखाय डाळाय पंन।
अजांण रे आगळ रे तूं अजांण,
जांणिताय पास न का छिप जांण॥

लगाड़ गळे जनि अंतर लाय,
वहे जिम वाय तके मत वाय।
वसी कर स्त्रब तुहाराय वेस,
नहीं तुव जेथ स दाखव नेस॥

लख्यो हिव रूप पड़द्दो न लाय,
मुरार परत्तक्ख बाहर मांय।
ठगाराय ठाकर हेकट थीय,
पड़द्दोय नांख परो हिव पीय॥

जोयो मैं रांम विभासिय जेम,
तनां घट भीतर दीठोय तेम।
गळि गयो भ्रंम छूटि मन गंठ,
करो हिव बात लगाड़िय कंठ॥

त्रिणों नहिं पेखां आडोय तूझ,
मुखांमुख सेव करावोय मूझ।
त्रि-भंगिय हेक हुवा हम तम्म,
प्रपोटाय अंब तणौ पर प्रम्म॥

हुवा हवे साहब सेवक हेक,
ओळक्खिय अंतर एक अनेक।
थियो हरि हेक जुवो किम थाय,
मिळि गयो पांणिय पांणिय मांय॥

समांणोय तूंझ मंहि घनस्याम,
रघूवर म्हांरोय आतम रांम।
म्हांरोय ठाकर बैठोय मांहि,
पूजावत आपुय आपुज पाहि॥

समाणोय सांमिय मांय सरीर,
गोविंद गदाधर ग्यांन गहीर।
प्रगट्टिय अंतर पुरुष प्रांण,
आदेस करै सह आपहि आंण॥

कहे जिम कंथ करौं वह कांम,
रिदा मझ लाधोय आतम रांम।
नजीक ज लाधोय मोरोय नाथ,
सांमी हिव तूझ न छांडांय साथ॥

संपन्नाय तूझ मंहि सुख सात,
बंछै तुंही सांम करौं वह बात।
सेवक्क पयंपेय तूझ संमोह,
विसंन रखे हिव थाय विछोह॥

वदै इम ईसर स्रब्ब-वियाप,
जुवो जनि थाय अजप्पाय जाप।
अजप्पाय जाप तणों तूं अधीस,
अजंप्पाय मोराय आतम ईस॥

गाजे ग्रह भीतर बेसीय गूंज,
पूजाराय पांच चढ़ावत पूज।
सबै मंह तंम तंमां थिय सब्ब,
उपज्जत जेम सु अंबुद अंब्ब॥

ओळक्खिय हूं तुंय आपोय आप,
बूझां हिव तूझ बियां नहि बाप।
जाण्यो तउ पार न जांणय जांण,
बिसंन तुहाराय लाख बिनांण॥

दिठा तउ गत्त न बूझांय देव,
अनंत तुहाराय कोटि अवेव।
लख्यो तउ पार लहां न अलक्ख,
नवे खंड मंझ दिखाड़िय नक्ख॥

तुनां भरपूर आदि मध अंत,
सनक्क सनातन जांणत संत।
तुं ही स्रब काल तुं ही स्रब देस,
निगंम अनंत करै निरदेस॥

जांण्यौ तव रूप कह्यो नहँ जाय,
मिळी जिम मूक सिता मुख मांय।
पमे कुण तोराय पार प्रचंड,
बसे प्रति रोम विसै ब्रह्मंड॥

दधी लहरी सब हेक न दोय,
हरि तिम तूझ विसै जग होय।
मुकंद लहे कुण तोराय म्रम्म,
अणु मंह देखव कोटि अलम्म॥

मुंणी मैं ख्यात म्हांरिय मत्त,
गोविन्द न जांणुय तोरी गत्त।
भणां भगवान करां गुंण भेंट,
महाग्रभ वास तणा दुःख मेट॥

दाखै कवि सेवक ईसरदास
प्रमेसर टाळिये जंम रौ पांस,
आखै हिव ईसर तेज अंबार,
प्रभु मोय छोड़ब जंम प्रहार॥

मांग्यौ मैं स्रब्ब दियौ तैं मूझ,
तुहारिय गत्त मांगां कंन तूझ।
मांगूं मंन वाच करंम मुरार,
नारायण जांमण म्रत निवार॥

'हरि रस' रो रस लेत हमेस,
लगे नंहि काळ भयं लवलेस।
जपै कवि 'ईसर' बे कर जोड़
कथंताय पाप टळै दुःख क्रोड़॥

इकौ रसणाह लहौं किम् अंत,
पारां नहँ पावत सेस पुणंत।
न जांणांय तोराय पार नरेस,
आदेस आदेस आदेस आदेस॥

छप्पय

आदि पुरुस आदेस, मात विण तात सपन्नो,
धात जात धन बिना, आप आपेज उपन्नो।
रूप रेख बहु रंग, ध्यांन जोगेसर ध्यावे,
अमर क्रोड़ तेतीस, प्रभु तुव पार न पावे।
इळ रचण त्रिगुण सिव सक्ति अज, अलख निरंजन आप हुव,
घण घणा घाट भांजण घड़ण, आदि पुरुस आदेस तुव॥

अलख पुरुस आदेस, आदि जिण जगत उपाया,
अलख पुरुस आदेस, विसद वैकुंठ वसाया।
अलख पुरुस आदेस, धरातळ अंबर धरिया,
अलख पुरुस आदेस, सेवतां सेवक तरिया।
आदेस करां इण नांम ने, जो जोनी-संकट हरै,
आदेस अहोनिस अलख ने, कर जोड़ै 'ईसर' करै॥

अलख पुरुस आदेस, अमर नर नाग उपावण,
संत भगत साधार, चार ही खांण चलावण।
धर अंबर ढंकियण, वेद ब्रह्मा विस्तारण,
त्रिभुवन तारणतरण, सरण असरण साधारण।
घण घणा घाट भांजण घड़ण, विस्व-ईस सांभळ वयण,
'ईसरौ' कहै असरणसरण, नमो नमो नारायण॥

राखै ज्यूं-त्यूं रहे, जहां निरमै तहां जावै,
हुकम तणे वस हुवै, जके सिरि गिरा जणावै।
कांम लोभ मद क्रोध, मोह बड़ सब जग मांही,
तूं ही मार जीवाड़, परम तंतर तुव पांही।
ध्यांन कर नजर तों सूं धरै, सो निवांण जग-निस्तरै,
राजाधिराज तोरी रजा, 'ईसर' रा सिर ऊपरै॥

सिंहासण धर सोह, करत वींजण समीर कर,
पुहप भार अढ़ार, पूज चढ़वै विधि-विध पर।
छांह करत घन छत्र, करत संकर कीरत्ति,
उतारत निसि अहर, अरक ससियर आरत्ति।
धुनि करत वेद मंगळ धवळ, ग्रह तुम्मर गावंत गुण,
मानवी तूझ रे महमहण, करी सेव रीझवै कवण॥

ब्रह्म वेद उच्चरै, वींण तुम्मर बजावे,
रंभा अवसर रचै, गीत सरसत्ति गावे।
व्यास कीरति विस्तरै, सक्र सिर चंमर ढाळे,
सिव आळोचन करै, पांव गंगा सु पखाळै।
ससि सोळ कळा अम्रत स्रवै, सूरज ज्योति सुभ धरै,
एकत्र नाथ सुर निसि अहो, कमला तुव आरति करै॥

नमो निरंजन नाथ, पार कुण तोरा पम्मै,
निगम कहे गम नांहि, देह जोगेसर दम्मै।
नाथ नवे कुळ नाग, चरण रज सीस चढ़ावै,
गौरि गंगा गायत्रि, गुंणां सुभ तोरा गावै।
सह धांम प्राग तीरथ सबै, चंद रवि पूजै चरण,
कर जोड़ दास 'ईसर' कहै, नमो नमो नारायण॥

सेस अनंत सिव-सक्ति, ग्यांन कर निस दिन गावै,
अनंत वेद अज इन्द्र, कीरत्ति तोरि कहावै।
अनंत कोटि अवधूत, महा तपसी वन मांही,
भजे अनंत ससि भांण, पार जस कोउ न पाही।
दिगपाळ देव दांनव अनंत, सुगुण कथत तोरा सबै,
किंण भांति बिया प्राक्रत कवि, चत्रभुज तोरा गुण चवै॥

वासुदेव पर ब्रह्म, परम आतम परमेश्वर,
अकळ ईस अणपार, जगत जीवण जोगेसर।
निरालम्ब निरलेप, अखिल ईस्वर अविनासी,
स्थावर जंगम स्थूळ, निखिल जग मांय निवासी।
दारिद्र-पाप-राक्षस-दमण, पारस संगम लोह परि,
निज नांम नमो नारायणा, हंसराज सिरताज हरि॥

असरण सरण अभंग, परम मोरार पनंगह,
संकर पवन सकत्ति, अवर ध्रम आदि अनंगह।
मंगळ, बुध्ध, मयंक, तरणि-तनु, सुक्र, गुरु तित,
राहु, केतु रवि-अरुण, नवे ग्रह सान्ति करे नित।
पूरण पुनीत श्री रांम पद, विघन हरण त्रय लोक वर,
परिणाम हेतु 'ईसर' पुणै, ततह नांम भवसिन्धु तर॥

अमर मेर आधार, मेर वसुधा आधारं,
धरा सेस आधार, सेस कोरम साधारं।
कोरम जल आधार, नीर सु अनल अधारे,
अनल सक्ति आधार, सक्ति करतार सधारे।
करतार सदा निरधार ही, कवि म राच दूजे करंम,
आपेज करंता आप फळ, आपे विलसे यह मरंम॥

निराकार निरलेप, अगम जांणै स्रुति सिव अज,
अनंत बार अवतार, करे भू-सुर भगतां कज।
जयति जयति जग जीव, विरद राखण बद्रीपत,
अगम सुगम कर अमर, संत सहायक छळ-खळ हत।
गत प्राक्रम तोरा को गिणै, नांमै नर नारी सहै,
ग्रभवास पास आवे नहीं, कर जोड़ी 'ईसर' कहै॥

त्रीकम पुरुसोतंम, रूप हे महा मनोहर,
हरि वांमन हयग्रीव, धनुस-धारण परसुधर।
नकळंक गोपीनाथ, पतित पावन प्रमोद घण,
माधव साळिगरांम, अनंत नांम नारायण।
त्रय लोक नाथ तारण-तरण, साहब बळभद्र संभरै,
धर ध्यांन 'ईसरा' संखधर, रांम नांम मुख उच्चरै॥

कीध नहीं केदार, प्राग जमुना नहीं पायो,
सेतुबंध रांमेस, भटकतो भूमि न आयो।
गया न न्हायौ गंग, दांन कुरुक्षेत्र न दीधो,
जुहार्यो न जगदीस, करम भव बंधन कीधो।
तप पाय सुभग मांनव तणो, परम न अंतर पाइयो,
'इसरो' कहे रे आतमा, गोविंद गुण नहँ गाइयो॥

मात उदर नव मास,  रुदत ऊंधै सिर रहियौ,
तब पायो नर तंन, संकटां बहु विध सहियौ।
पसु जेम रह पेट, सोण मळ मूत्र सुखायौ,
भज्यौ नहीं भगवांन, गाँठ सुख मूळ गंवायौ।
जगदीस भजन जांण्यौ नहीं, धायो घर-धंधौ करै,
धर ध्यांन 'ईसरा' संख धर, अजो रांम मुख उच्चरै॥

रांम नांम परताप, हणु द्रोणगिर लायौ,
रांम नांम परताप, इन्द्र इन्द्रासण पायौ।
रांम नांम परताप, ध्रुव अणटळ हुइ रहियौ,
रांम नांम परताप, पांडु कुळ नकळंक कहियौ।
सोइ रांम नांम रटतां रसण, अनंत भगत जन उद्धरै,
धर ध्यांन 'ईसरा’ संखधर, अजौं रांम मुख उच्चरै॥

प्रगट नांम परताप, वास बैकुंठ वसायौ,
प्रगट नांम परताप, दूज जम त्रास दिखायो।
प्रगट नांम परताप, चंड भागै चौरासी,
प्रगट नांम परताप, उरै नहँ रहे उदासी।
रांम रो नांम प्रांणी रटै, तासों जळ पाथर तरै,
धर ध्यांन 'ईसरा' संखधर, अजौं नांम मुख उच्चरै॥

कसा करव हों महल, महल गिरमेर कहावै,
कसा गाऊँ हों गुण, गुण ज्यां तुम्मर गावै।
मेल्हां की धन माल, सिरीजी चरणां आगे,
कसा पखाळां पाव, पवित्र नख गंगा लागे।
की पुहप चढावां सिर परै, पारिजात व्रख तुझ घरै,
राजाधिराज की रीझवां, कवि संकर सेवा करै॥

मणां तेल तिल मांय, वास जिम पुहप विराजत,
रंग मजीठ सु रहत, सबद अरथादिक साजत।
वेळा सायर वसत, दारु मंह अगन दिखावत,
हविस मध्य-पय होय, ईख मधुरस उपजावत।
वळि दाहकता पावक विसै, साधु जन सोहै सहण,
'इसरो' भणै त्यूं ही अवस, मो मन वसियौ महमहण॥

नमो नांम नींगमण, नमो नर सुर निपजावण,
नमो करण गो गयण, नमो थांभा विण थंभण।
नमा वेद विस्तरण, नमो हव्य-द्रव्य हुतासण,
नमो भुवन भोगवण, नमो निसचर नीझांवण।
'इसरो' भणै असरण-सरण, विहंड कंस सांभळ वयण,
जग जाड्य जीव-जांमण मरण, छोड छोड गज छोडवण॥

दूहा

'हरिरस' हररस हेक है,
अनरस अनरस मांण।
बिन हरिरस हरि भगति बिन,
जनम व्रथा नर जांण॥

सरब रसायण में सरस,
'हरिरस' समो न कोय।
एक घड़ी घट में रहे,
सब घट कंचन होय॥

सकल 'हरिरस' सोध के,
वांणी अरथ विचार।
स्रोवण फळ पावे सदा,
सूझे जो तत् सार॥

हरिरस सूं सुध-बुध हुवै,
कस्ट न व्यापै कोय।
हरिरस सूं सद्गति सदा,
लहे सकल नर लोय॥

वार्‌यौ फेर्‌यौ नांम पर,
करां ज राई लूंण।
जिना चलावैं पंथ सिर,
तिना भुलावै कूंण॥

अलख भरोसै ऊकळै,
आधंण ईसरदास ।
ऊकळता में ऊरसी,
बन्दा रख विस्वास॥

नारायण भजलो नरां,
अंतर जांमी एक।
जो सांई संवळौ हुवै,
(तो) अंवळा हुवौ अनेक॥

अवगुण म्हारा बापजी,
बगस गरीब नवाज।
जे कुळ पूत कपूत व्है,
तोहि पिता कुळ लाज॥

तनक भनक 'हरि रस' तणी,
कंठ प्रांण सुनि कांन।
महा पाप सह मोचही,
आवे जनम न आंन॥

कवि 'ईसर' 'हरिरस' कियो,
छंद तीन सौ साठ।
महा दुस्ट पावै मुगत,
पो नित कीजै पाठ॥

स्रोत
  • पोथी : हरिरस ,
  • सिरजक : ईसरदास ,
  • संपादक : जसवंत सिंह ,
  • प्रकाशक : डिंगल साहित्य शोध-संस्थान, (नई दिल्ली) ,
  • संस्करण : 1
जुड़्योड़ा विसै