छंद त्रिभंगी
अँजनी ग्रभ आयौ सुमन सुहायौ, गुनि गुन गायौ ग्यान गती।
पावन सुत पूरौ दूषन दूरौ, समहर सूरौ जन्म जती।
करनी सुभकारी धर जस धारी, भव भयहारी भीम भुजा।
ले लाल लंगोटी काछ कछोटी, धारन मोटी लाल धजा॥
सुग्रीव सहाई द्रढ़ सुखदाई, प्रभु रघुराई संग पुर्यौ।
बाली से बंका दे रन डंका, किस्कंदा में जंग जुर्यौ।
अंगद दल अन्दर कूधर कन्दर, बन्दर जुत्थन में बिचर्यौ।
सम्पाति निसंका धरी न संका, पुनि लंका में कूदि पर्यौ॥
छवि सोधन इच्छन सहज सुलच्छन, मिल्यौ वभिच्छन बोध कर्यौ।
धर पावन धोकन आय असोकन, हिये सिये को सोक हर्यौ।
मुंदरी ढिग मेली ईख अकेली, कंचन वेली सरस करी।
काया कुमलानी जाहर जानी, है सहनानी हाथ हरी॥
वन वाग विध्वंसक भो फल भक्षक, राक्षस रक्षक मार रुप्यौ।
जयकार जमायौ अक्षर आयौ, कुल रावन क्षयकार कुप्यौ।
दसमुख सुत मारयौ दन्त विदारयौ, वीर हकार्यौ कटक बली।
बपु पास बंधानो सर न संधानो, जाहर जानो ज्वाल जली॥
जब लंका जारी परज पुकारी, देख सुरारी दाह दह्यौ।
सीता सुध लायौ स्याम सुनायौ, काम कमायौ वाह कह्यौ।
चुप सेतु बंधाई करी चढ़ाई, सेना आई पार सुखी।
गढ लंका घेर्यौ खल बल गर्यौ, पुर दल पेर्यौ दार दुखी॥
सुर भये सुखारे दैत दुखारे, राक्षस हारे रार रची।
ललकार लगाई सार संभाई, वार बजाई मार मची।
दसकंधर दाट्यौ कुल कुल काट्यौ, फिर मुख फाट्यौ हीय हर्यौ।
सुत भट संहारे मुगदर मारे, विहस बकारे जीय जर्यौ॥
घिर चर लंकापुर कंपत थर थर, घर घर असुरन कीर पली।
संकट के साथी प्रबल प्रमाथी, विकट भयानक वीर बली।
लिछमन के लागी अंग अभागी, सक्ति सुभागी स्याय करी।
द्रोणागिर लायौ उर धर दायौ, धीर सजीवन आंन धरी॥
जय जय छित छायौ मृतक जिवायौ, कंठ लगायौ काकु सती।
रंग राज रिझायौ हिय हुलसायौ, मोद न मायौ डर असथी।
गुन केते गाऊँ चित सकुचाऊँ, पार न पाऊँ ताक तक्यौ।
रघुवर के संगी हे बजरंगी, छन्द त्रिभंगी छाक छक्यौ॥