छंद मोतीदाम
जठै चढि भूप निसांण वजाय।
हलै गजराज मसत हकाय॥
हुवा मदमत छमास गहीर।
लगा तलडांण प्रमांण लहीर॥
जड़ै पग बैड़िय पांय जबून।
तजे अन घास विसास तरुन॥
पिय तड़घां नति नीर प्रवाह।
अकासिय सारसि बौलत वाह॥
रचै रज डंबर धूसर रंग।
चलावत पांखिय चोट सु चंग॥
सनीसर राहर केत समांण।
प्रभा गिर कज्जळ कै परमांण॥
इसा गजराज दराज अभंग।
धसै नभ चाचर जैण सुचंग॥
कढै मद भट्टिय जेम कढाव।
झरै जिम दोइ पटा झरणाव॥
भ्रमै जिण भंमर डंमर भीड़।
न आवत धावत मावत नीड़॥
दिपै तन सांमल ऊजळ दंत।
चलोवळ पोगर करत नचंत॥
गज भ्रत चौतरफां गरदाय।
वधोतरि वांणि कहै बिरदाय॥
बिलंद फिरासिय आरबि बोल।
धत्ता धत्त ऊचर जीव धकोल॥
धिरप्प सुनीठहि नीठ धजोय।
सुभाव कुंभाथळ थापळि सोय॥
अबै जल गंग न्हवाय अंगौछ।
सबै तन झाडिय पूंछि सलोछ॥
तठै घसि घोलिय आमल तेल।
चरच्चिय रंग उमंग उझेल॥
जंगाल रंगाल’र लाज बहज्ज।
बनांतस ढंकिय झूल गरज्ज॥
सरी सिर मंडिय कुंभसथान।
बधै गळ झालर नाद विधान॥
घलै गुण रेसम बीरस-घंट।
वहां सिर माव्हत आय उझंट॥
खुलै डग बैडिय नांखि खणंकै।
भभक्क चरख्खिय सोर भणंक॥
अनेक उपाव करै भ्रत उद्ध।
कढै अब ठांण सूं मैंगळ कुद्ध॥
अटा सुर मंदर सीस अरोह।
नरख्खत कौतिक लोक न रोह॥
पड़ै हटनाल वजार प्रचंड।
कढै जमदूत जता बल बंड॥
किता चव डंडिय मंडिय कंक।
किता अमवाडिय हौद कनंक॥
लगा रद बंगड सोवन लीक।
ठणंकत लंगर पावसु ठीक॥
अग-द्दग मोड़िव करै असवार।
सजे संक कूंत किता सटमार॥
सकं गजबाग बिहूं बळ रीस।
सको नहं मानत धूणत सीस॥
सजै न्रप राम तणा दल संग।
इसा गजराज अड़ैल अभंग॥