ईखे पित-मात अेरिसा अवयव,

विमळ विचार करइ वीवाह।

सुंदर, सूर, सीळ-कुळ करि सुध,

नाह क्रिसन सरि सूझइ नाह॥

प्रभणंति पुत्र इम मात-पिता प्रति,

अम्हां वासना इसी वसी।

ग्याति किसी राजवियां ग्वाळां,

किसी जाति, कुळ-पांति किसी ?

सु जु करइ अहीरां सरिस सगाई,

ओळांडे राज-कुळ इता।

व्रिद्ध-पणइ मति काइ वेसासउ,

पांतरिया माता-पिता॥

पित-मात पयंपइ, पूत ! पांतरि,

सुर नर नाग करइ जसु सेव।

लिखमी समी रुकमणी लाडी,

वासुदेव सम सुत-वसुदेव॥

मावीत्र-म्रजाद मेटि बोलइ मुखि,

सु-वर न-को सिसुपाल सरि।

अति अंबु-कोपि कुंवर ऊफणियउ,

वरसाळू वाहळा वरि॥

गुरु-गेहि गयउ गुरु-चूक जाणि गुरु,

नाम लियउ दमघोख नर।

हेक वडउ हित हुवइ पुरोहित !

वरइ सुसा सिसुपाळ वर॥

विप्र विलंब कीध जेणि आइस वसि,

वात विचारि भली-बुरी।

पहिलुं-इ जाइ लगन लेइ पहुतउ,

प्रोहित चंदेवरी-पुरी॥

स्रोत
  • पोथी : क्रिसन-रुकमणी-री वेलि ,
  • सिरजक : पृथ्वीराज राठौड़ ,
  • संपादक : नरोतमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : श्रीराम मेहरा एंड कंपनी, आगरा (उ.प्र.) ,
  • संस्करण : द्वितीय
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