रज तम गुन दोऊं अधिकांही।

इहै रीत नृप द्वापर मांही।

कलजुग हींशा दुख मलीनां।

सोक मोह भय जुत सब दीनां॥

स्रोत
  • पोथी : जम्भसार ,भाग - 1-2 ,
  • सिरजक : साहबराम राहड़ ,
  • संपादक : स्वामी कृष्णानंद आचार्य ,
  • प्रकाशक : स्वामी आत्मप्रकाश 'जिज्ञासु', श्री जगद्गुरु जंभेश्वर संस्कृत विद्यालय,मुकाम , तहसील - नोखा ,जिला - बीकानेर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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