निंद्रा अति आलस अधिकाई।
इह कलजुग ताम सकै भाई।
मूरख जन धन हींन अभागे।
कांमी डोलत तृष्णा लागे॥
स्रोत
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पोथी : जम्भसार ,भाग - 1-2
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सिरजक : साहबराम राहड़
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संपादक : स्वामी कृष्णानंद आचार्य
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प्रकाशक : स्वामी आत्मप्रकाश 'जिज्ञासु', श्री जगद्गुरु जंभेश्वर संस्कृत विद्यालय,मुकाम , तहसील - नोखा ,जिला - बीकानेर
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- संस्करण : द्वितीय