भारतीय लोक-जीवन में व्रत और अनुष्ठान का विशेष स्थान रहा है। इन लोकाचारों के साथ अनेक कथाएं जुड़ी हुई हैं। लोक जीवन में व्रत कथाओं का विशिष्ट स्थान है। ये अत्यंत रोचक और शिक्षाप्रद होती हैं। इनमें चरित्र को ऊँचा उठाने का गुण होता है। लोक में इनको सुनने से पुण्य मिलने की मान्यता है। महिलायें जब व्रत रखती हैं तो उससे जुड़ी कथा सुनकर ही व्रत खोलती हैं। कथा सुने बगैर व्रत पूरा नहीं माना जाता है। भारत के दूसरे प्रान्तों की भांति राजस्थान में भी महिला व्रतों की बड़ी संख्या है। महिलाएं व्रतों का पूरा ध्यान रखती हैं। ये व्रत पारिवारिक जीवन के खास अंग हैं। इनमें परिवार की सुख-संपन्नता की कामना निहित रहती है। व्रत एक प्रकार से परिवार के मंगल के लिए महिलाओं की तपस्या का रूप धारण किए हुए हैं। व्रत कथाएं आनंद के साथ पूरी होती हैं। राजस्थानी व्रत कथाओं के अंत में सभी के लिए मंगलकामना रहती है जो इनके ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ होने का संकेत है। महिलाएं इन कथाओं को एक प्रवाह में कहती हैं। एक कथा को चाहे कोई एक बार कहे या सौ बार कहे, उसमें एक शब्द का भी अंतर नहीं आता। इन कथाओं को व्रत कथा कहा जाता है और इनमें लोकभाषा का स्वाभाविक रूप पाया जाता है।