एक गरीब बुढ़िया थी। उसकी आजीविका चरखे की कताई से चलती थी पर इससे पार नहीं पड़ती थी। एक दिन उसने सुना कि जो राम का व्रत करते हैं, उन पर रामजी कृपा करते हैं। उसके घर में खाने को कुछ नहीं था तो उसने राम का नाम लेकर व्रत रख लिया। उसकी आस्था देखकर रामजी ने लक्ष्मण से कहा कि यह बुढ़िया मेरे सत पर भूखी है, इसकी परीक्षा लेते हैं। वे दोनों भेष बदलकर बुढ़िया के पास पहुंचे और उसे एक टोकरी में गोंद के लड्डू दिए। बुढ़िया ने लड्डू खाकर अपना व्रत खोला। कुछ दिनों बाद राम और लक्ष्मण बुढ़िया के पास पहुंचे। उन्होंने व्रत के बारे में पूछा तो बुढ़िया ने कहा कि अब मेरे पास गोंद के लड्डू हैं, व्रत कि क्या जरूरत है। यह सुनकर लक्ष्मण ने बुढ़िया से कहा कि अब वे लड्डू भी नहीं रहने वाले और तुम भूखी मरोगी। इस पर वह घबरा गई और उसने लड्डू सुरक्षित रखने का उपाय पूछा। उस पर दया करते हुए लक्ष्मण ने उपाय बताया कि वह अगर साल में एक बार भी रामजी का व्रत रख लेगी तो उसके पास कभी भोजन की कमी नहीं रहेगी। लक्ष्मण की यह बात मानकर बुढ़िया ने साल में एक बार राम का व्रत रखना शुरू किया तो उसके बाद कभी भी दरिद्रता नहीं आई।
हे रामजी, जिस प्रकार बुढ़िया पर दया दिखाई, उसी प्रकार हम पर भी कृपा करना।