महत्त्व
वैशाख सुदी तृतीया को अक्षय तृतीय (आखातीज) का त्यौहार मनाया जाता है। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में किसान वर्ग इसे लोकपर्व की भांति मनाता है। इस दिन किसान हल लेकर खेत में जाकर जुताई अवश्य करते हैं। सभी के घरों में बाजरे का खिचड़ा बनता है। इस दिन को बेहद शुभ मानते हुए बड़े पैमाने पर विवाह समारोह भी आयोजित होते हैं। इस दिन किए गए हवन, यज्ञ, जप-तप, दान-पुण्य आदि का अक्षय फल प्राप्त होता है। इसी कारण इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा जाता है। यह दिन हिन्दू धर्म में बेहद महत्त्व रखता है क्योंकि इसी दिन अक्षय तृतीया, नर-नारायण जयंती, हयग्रीव जयंती के साथ कई बार परशुराम जयंती का भी संयोग बैठता है।
व्रत विधि
इस दिन व्रतधारी सुबह जल्दी स्नान करके अपने पापों को क्षमा करके पुण्य देने की प्रार्थना करता है। इसके बाद दान-पुण्य किया जाता है। किसानों के घर बाजरे का खिचड़ा और गेहूं व गुड़ से बनी लापसी बनाई जाती है। राजस्थान में अक्षय तृतीया को किसान-वर्ग का सबसे बड़ा लोकपर्व माना जाता है।
व्रत कथा
एक बार युधिष्ठर ने श्रीकृष्ण से कहा – ‘हे ईश्वर! कृपा करके अक्षय तृतीया की कथा सुनाएं।’ इसके बाद श्रीकृष्ण ने कथा सुनाते हुए कहा – ‘हे राजन! इस तिथि के दिन जो भी दोपहर से पहले स्नान, जप, तप, हवन, स्वाध्याय, पितरों का तर्पण और दान-पुण्य करता है, उसे अक्षय फल प्राप्त होता है। इसे युगांतरकारी तृतीया भी कहा जाता है क्योंकि इसी तिथि से सतयुग और त्रैतायुग की शुरुआत हुई थी।
हे युधिष्ठर! पुराने समय में एक गरीब परंतु सत्यवादी, व्रतधारी, धार्मिक स्वभाव वाला पूजा-पाठी वैश्य हुआ करता था। उस पर बड़े कुटुंब का पेट पालने की जिम्मेदारी थी जिसके चलते वह सदैव चिंतित रहा करता था। एक बार उसने किसी से अक्षय-तृतीया के दिन का महात्मय सुना तो वह उस तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर गंगा-स्नान कर आया। उसके बाद घर आकर गरीबों को अन्न और वस्त्रों आदि का दान किया। घर की खस्ता माली हालत के चलते उसकी पत्नी ने उसे दान करने से रोका पर वह दान-पुण्य करता रहा। कुटुंब की माली हालत और वृद्धावस्था के बावजूद उसने धर्म-कर्म करने का काम नहीं छोड़ा। इसी पुण्य का लाभ उसे मिला और उसका अगला जन्म कुशावती नगर में एक राजपूत के घर में हुआ। पूर्वजन्म के पुण्यों के प्रताप के चलते वह बड़ा यशस्वी राजा बना। इतना वैभवशाली होने के बाद भी उसने कभी भी धर्म-कर्म का मार्ग नहीं छोड़ा। उसे दुगुना यश मिलता रहा। यह सब अक्षय-तृतीया का पुण्य-प्रताप था।’