जोधपुर से लगभग 110 कि.मी. दूर सूकड़ी नदी के मुहाने पर बसा सोजत का क़िला मारवाड़ का लगभग सीमांत दुर्ग है। आक्रमण का मुकाबला करने के लिए मारवाड़ की सेना का एक दल यहाँ तैनात रहता था। चूँकि इस क़िले की अवस्थिति मारवाड़ और मेवाड़ के मध्य थी; इसके सबब युद्ध और आपसी संघर्ष के समय सोजत क़िले का अपना एक महत्त्व रहा। यह एक सुदृढ़ परकोटे के भीतर बसा हुआ था। राव मालदेव ने इस सुदृढ़ परकोटे का निर्माण करवाया तथा। जनसाधारण में यह मान्यता है कि सोजत पर पहले परमारों का राज था। मारवाड़ राज्य के इतिहास अनुसार वि. संवत् 1111 में पुनः सेजल माता के नाम पर इसे बसाया गया था। इससे इसका नाम सोजत पड़ा। सोजत मूलतः ‘लघुगिरि’ दुर्ग की श्रेणी का एक खण्डित अवस्था का क़िला है।

सोजत पर अलग-अलग समय में सौंधल, सोलंकी, मेवाड़ के सिसोदिया, सोनगरा चौहान, राठौड़ तथा मुगल बादशाहों का अधिकार रहा। वाया मुहंता नैणसी हमें सोजत के बारे में यह तमाम जानकरियां मिलती है। यहाँ मानव सभ्यता के शुरुआती दौर के अवशेष मिले हैं; जिनमें आदिम मानव के उपयोगी ताम्र उपकरण हथियार प्रमुख हैं। जोधपुर राज्य की ख्यात में राव मालदेव को सोजत के किले का निर्माता माना गया है। 1512 में राव जोधा ने मेवाड़ से सोजत वापस ले लिया। जोधा के पुत्र नीम्बा को सोजत में नियुक्त किया।

मान्यता यह है कि 1460 ई. में सोजत के वर्तमान दुर्ग का निर्माण करवाया। तदोपरांत रावगांगा ने सोजत पर अधिकार कर लिया। सोजत पर जोधपुर के राव चन्द्रसेन का भी अधिकार रहा। बादशाह अकबर ने चन्द्रसेन से छीनकर राव मालदेव के पुत्र राम को सोजत सौंप दिया। रामेलाव तालाब भी चन्द्रसेन ने बनवाया। क़िले के प्रमुख भवनों में दरीखाना, तबेला, सूरजपोल, जनानी ड्‌योढ़ी आदि आकर्षक हैं। यहाँ के कुछ दरवाजे बहुत ख्यात हैं, जिनमें जोधपुरी दरवाजा, राज दरवाजा, जैतारण दरवाजा, नागौरी दरवाजा, चावंड पोल, राम पोल तथा जालौरी दरवाजा आदि शामिल हैं।

जुड़्योड़ा विसै