गोगाजी का मेला
राजस्थान के पांच पीरों में गिने जाने वाले लोकदेवता गोगाजी का मेला हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में भाद्रपद माह में भरता है। गोगाजी ने महमूद गजनवी के हमले के समय आम लोगों व पशुधन की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। गोगामेड़ी में बने मंदिर में गोगाजी की समाधि बनी हुई है। यहां भाद्रपद माह में राजस्थान के अलावा हरियाणा, उत्तरप्रदेश, पंजाब, दिल्ली आदि राज्यों से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। गोगाजी को सांपों का देवता भी माना जाता है। उन्हें ‘जाहरपीर’ की उपाधि भी उनकी वीरता के कारण गजनवी ने दी थी। इसी स्थान पर नाथ संप्रदाय के गुरु गौरखनाथ का धूणा भी बना हुआ है।
बाबा रामदेवजी का मेला
राजस्थान, मालवा, हरियाणा और गुजरात में सभी संप्रदायों में आस्था के साथ पूजे जाने वाले ‘रामसा पीर’ के नाम से ख्यात लोकदेवता बाबा रामदेवजी का मेला जैसलमेर के रामदेवरा में भाद्रपद में भरता है। इसे रुणेचा नाम से भी जाना जाता है। बाबा रामदेवजी ने आजीवन समाज सुधार का कार्य किया और 15 वीं शताब्दी में इस स्थान पर समाधि ली ली थी। यहां बने सरोवर ‘रामसर’ में श्रद्धालु स्नान करते हैं। बाबा रामदेव के जीवन से जुड़े चमत्कारों को ‘परचा’ के रूप में गाया जाता है। इनके जागरण को ‘जम्मा’ कहा जाता है जिसमें गायक जाति ‘कामड़’ इनसे जुड़े भजनों को गाती है।
तेजाजी का मेला
राजस्थान के मध्यकाल में हुए गौरक्षक, परोपकारी एवं वचनपालकों के रूप लोकदेवता तेजाजी का नाम भी बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है। तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खरनाल में धौलिया जाट वर्ग में हुआ था। पनेर (अजमेर) में उनका ससुराल था। वे अपनी पत्नी को लाने के लिए वहां गए हुए थे तो वहां के पशुपालकों की गायें लुटेरों से बचाते समय वे घायल हो गए थे और इसी दौरान सांप के काटने से उनकी मृत्यु हो गई थी। तेजाजी का मेला नागौर के पर्बतसर में भाद्रपद की दशमी को विशाल मेला भरता है। हाड़ौती संभाग में भी तेजाजी के मेले भरते हैं। सांप-बिच्छु के काटने पर तेजाजी के भोपे झाड़ा लगाकर इलाज करते हैं। पर्बतसर के मेले के दौरान बड़ा पशुमेला भी भरता है। राजस्थान के किसान फसल बुवाई के समय तेजाजी का स्मरण करते हैं।
देवजी का मेला
राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की गुर्जर जाति के प्रमुख लोकदेवता के रूप में पूजे जाने वाले भगवान देवनरायणजी भोज बगड़वत की पत्नी सेढू के पुत्र थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने परिवार के शत्रुओं से बदला लिया था। इनके जीवन से जुड़ी अनेक गाथाएं लोकप्रचलित हैं। ‘देवजी की फड़’ भी काफी लोकप्रिय है। इनका बड़ा मेला भीलवाड़ा के आसींद में भाद्रपद की छठी-सप्तमी को भरता है। टोंक के दांता गांव और मध्यप्रदेश के उज्जैन के पास भी इनके स्थान बने हुए हैं। देवजी का पूजविधान सरल है और प्रसाद के रूप में नीम तथा बील की पत्तियां दी जाती हैं।
पाबूजी का मेला
पाबूजी राठौड़ वंस में जन्मे राजस्थान के प्रमुख लोकदेवताओं में पूजे जाते हैं। इनका जन्म जोधपुर जिले के फलौदी के निकट के गांव कोलूमण्ड में हुआ था। इनके पिता धांधल जी और माता का नाम कमलादे था। पाबूजी की सगाई अमरकोट के शासक सूरजमल सोढा की पुत्री सूपयारदे के साथ हुई थी। विवाह के समय ये रस्में बीच में छोड़कर देवलदे चारणी की गायों को लुटेरों से छुड़वाने के लिए अपने बहनोई जींदराव खींची के साथ युद्ध लड़ा। इस युद्ध में पाबूजी वीरगति को प्राप्त हुए थे। उनकी अर्धविवाहिता पत्नी उनकी देह के साथ सती हुई। पाबूजी राजस्थान के लोकजीवन में लक्ष्मण के अवतार माने जाते हैं। उन्हें ऊंटों का देवता भी माना जाता है। इनका मेला कोलूमण्ड में चैत्र अमावस्या को भरता है।
वीर कल्लाजी का मेला
लोकदेवता कल्लाजी राठौड़ का जन्म मेड़ता में संवत 1601 में हुआ था। कल्लाजी ने युद्ध में वीरगति हासिल की थी। मेवाड़ क्षेत्र के भील इन्हें विशेष रूप से पूजते हैं। इनका मुख्य स्थल रनेला में है।
मल्लीनाथ जी का मेला
पशिचमी राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र में जन्मे राठौड़ वंशी रावल मल्लीनाथ के पिता का नाम रावल सलखा व माता जाणीदे था। इन्होंने निर्गुण पंथ का मार्ग प्रस्शत किया था। इनके नाम पर बाड़मेर क्षेत्र का नाम ‘मालाणी’ किया गया था। इनके विशेष पूजन के लिए तिलवाड़ा में चैत्र कृषणा एकादशी से लेकर चैत्र शुक्ला एकादशी तक आयोजित किया जाता है।