पुष्कर मेला

 

अजेमर के पुष्कर कस्बे में कार्तिक मास की पूर्णिमा को भरने वाला मेला राजस्थान ही नहीं, भारत के सबसे बड़े मेलों में गिना जाता है। यहां की चंद्राकार झील के किनारे ब्रह्म मंदिर बना हुआ है जिसे भारत का एकमात्र ब्रह्म मंदिर माना जाता है। पुष्कर झील का दीपदान प्रसिद्ध है और इस झील के तीज घाट एवं गऊ घाट को बड़ा पवित्र माना जाता है। पुष्कर में विशाल पशु मेला भी भरता है।

 

डिग्गी मेला

 

जयपुर के पास मालपुरा कस्बे में श्री कल्याण जी का प्राचीन मंदिर है जहां सावनी अमावस्या के दिन बड़ा मेला भरता है। इस मेले में हजारों लोग पैदल यात्रा करके शामिल होते हैं।

 

श्री महावीर जी मेला

 

सवाई माधोपुर के गंगापुर कस्बे के पास श्री महावीर जी का स्थान है जहां चैत्र शुक्ला त्रयोदशी से वैशाख कृष्ण प्रतिपदा तक एक लक्खी मेला भरता है। यह मेला रथयात्रा से शुरू होता है। श्री महावीर जी की मूर्ति होने के कारण जैन धर्मावलंबियों की यहां विशेष श्रद्धा है। इस मेले में जैनों के साथ क्षेत्र की अन्य जातियां मीणा, गुर्जर, अहीर और माली लोग भी इन्हें अपना आराध्य मानकर आते हैं। यह पूर्वी राजस्थान के विशाल मेलों में गिना जाता है।

 

रणथंभौर का गणेश मेला

 

यह मेला रणथंभौर के प्रसिद्ध किले में बने गणेश मंदिर में भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी को बड़ा मेला भरता है। गणेश की इस क्षेत्र में खास मान्यता है और यहां के लोग शादी का पहला आमंत्रण इन्हीं गणेशजी को भेजते हैं।

 

बेणेश्वर मेला

 

आदिवासियों का सबसे बड़ा मेला बेणेश्वर डूंगरपुर जिले की आसपुर तहसील के नवातपुरा में शिवरात्रि यानि माघ पूर्णिमा के दिन भरता है। बेणेश्वर नाम भगवान शिव के स्वयंभू लिंग पर रखा गया। इसी धाम के पास सोम और माही नदी के संगम पर लक्ष्मीनारायण का प्रसिद्ध मंदिर है जिसमें माघ शुक्ला एकादसी को बड़ा मेला भरता है। बेणेश्वर के मेले में इस क्षेत्र में रहने वाले भील आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते है।

 

कोलायत का मेला

 

बीकानेर शहर के दक्षिण में जैसलमेर मार्ग पर मुनि कपिलवस्तु का पवित्र स्थल है जहां कार्तिक पूर्णिमा को एक विशाल मेला भरता है। इस मेले में भारत के कोनों-कोनों से साधु, मुनि और संत आते हैं। यह स्थान कोलायत के नाम से जाना जाता है। यहां के मंदिर के पास एक विशाल सरोवर है जिसमें रात्रि के समय पत्तों पर दीप जलाकर छोड़े जाते हैं। यहां पशु मेला भी भरता है।

 

भर्तृहरि का मेला

 

अलवर से कुछ दूरी पर बाबा गोपीचन्द भर्तृहरि की समाधि है जहां साल में दो बार वैसाख और भाद्रपद माह में मेला भरता है। इन मेलों में नाथ और औघड़ साधु-संतों के साथ-साथ स्थानीय जातियों मीणा, गुर्जर, अहीर, जाट, बागड़ा आदि के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

 

चंद्रभागा मेला

 

झालावाड़ के निकट चंद्रभागा नदी के तट पर कार्तिक माह में यह मेला तीन दिनों तक आयोजित होता है। यह मेला शिव को समर्पित होता है। इस मेले में आए हुए लोग नदी में स्नान करके संगम में दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। इस दौरान यहां पशुमेला भी भरता है जिसमें राजस्थान के अलावा गुजरात और मध्यप्रदेश से भी पशुपालक क्रय-विक्रय के लिए आते हैं।

 

शिवाड़

 

यह मेला सवाई माधोपुर के इसरदा के पास की पहाड़ियों में भरता है। इस स्थान की मान्यता शिव के बारहवें शिवलिंग के रूप में है। इसे घूमेश्वर महादेव भी कहा जाता है। इस शिवालय के उत्तर में बने जलाशय के पानी को गंगा के समान पवित्र माना गया है।

 

बाणगंगा का मेला

 

यह मेला जयपुर जिले के बैराठ में बाणगंगा नदी के किनारे वैशाख पूर्णिमा को आयोजित होता है। लोकमान्यता है कि पांडव अर्जुन ने अपने विराटपूरी प्रवास के दौरान इस जलधारा को बाण से पैदा किया था।

 

बृजमेला

 

भरतपुर में होली के अवसर पर श्री कृष्ण को समर्पित यह आयोजन रासलीला के रूप में होता है। इसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं।

 

सीताबाड़ी मेला

 

बारां जिले के केलवाड़ा गांव में सीताबाड़ी का मेला लगता है। ऐसी मान्यता है कि सीता ने राम द्वारा त्यागे जाने के उपरांत यहीं समय गुजारा था। ऐसी भी धारणा है कि लक्ष्मण ने बाण चलाकर धरती से पानी निकाल दिया था। पानी के अनेक कुंड सूरज कुंड, सीता कुंड और भरत कुंड के नाम से जाने जाते हैं। इस स्थान पर ऋषि वाल्मीकि का स्थान है जहां लव और कुश के जन्म की लोकमान्यता है। यहां पशुमेला भी आयोजित होता है।

 

केसरिया नाथ जी का मेला

 

उदयपुर से गुजरात जाने वाले मार्ग पर ऋषभदेव जी का स्थान आता है जहां उनका भव्य मंदिर भी बना हुआ है। यहां जैन समुदाय के साथ भील भी इस स्थान में गहरी आस्था रखते हैं। 

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