महामंदिर जोधपुर शहर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण महाराजा मानसिंह ने 1812 ई. में करवाया था। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में दस से अधिक वर्ष लगे। जटिल नक्काशी और अद्भुत वास्तुकला से सज्जित यह मंदिर 84 खम्भों पर खड़ा है। यह नाथ सम्प्रदाय का सबसे बड़ा मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में संगमरगर के सिंहासन पर जलंधरनाथजी की मूर्ति लगी हुई है। यहाँ गर्भ गृह में 16 खंबे तथा 84 योगासन और नाथ योगियों के चित्र है। मंदिर की छत पर छोटे-छोटे शिखर है। लोक में प्रचलित किस्सों में यह कहा जाता है कि मानसिंह के समय महामंदिर को ठिकाने का दर्जा प्राप्त था और जो भी राजस्व प्राप्त होता था उसमें एक चौथाई हिस्सा महामंदिर में जमा होता था। यहाँ नाथ सम्प्रदाय के लिए विशेष न्याय प्राणाली थी।
मंदिर में एक बड़ा प्रांगण है, जिसका उपयोग धार्मिक आयोजनों के लिए किया जाता है। प्रांगण विभिन्न हिंदू देवी-देवताओं को समर्पित छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। लगभग चतुर्भुज की आकृति लिए इस मंदिर में कई महत्वपूर्ण शिलालेख भी मौजूद है। वहाँ लगे एक शिलालेख में यह उल्लेख है कि इस मंदिर में रक्षार्थ आने वाले हर व्यक्ति की रक्षा होती है। महामंदिर की दीवारों पर तोपों और बंदूकों के रखने के स्थान बनाये हुए मिलते हैं। यहीं एक प्रख्यात कुआं है, जिसके बारे में यह प्रचलित है कि वीभत्स ‘छप्पनिया अकाल’ के समय में भी यह सूखा नहीं था तथा जलापूर्ति का बड़ा स्त्रोत था।
मंदिर में विशाल प्रवेश द्वार बने हुए हैं। मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपरी झरोखों में गजब की कलाकारी देखी जा सकती है। यहाँ संगमरमर पर आकर्षक गरुड़ों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर की छत पर छोटे-छोटे शिखर है। मानसिंह ने यहाँ दो सुमहल भी बनवाए। इनमें से एक महल पर एक छतरी भी बनवाई। कहा जाता है कि उस छतरी पर आकर आयस देवनाथ मानसिंह को दर्शन देते थे। यह मंदिर अपने आकार और अपनी महत्ता के कारण ही महामंदिर कहलाया।
मंदिर सुबह पाँच बजे से लेकर दोपहर बारह बजे तक तथा शाम में चार बजे से नौ बजे तक खुला रहता है। मंदिर प्रवेश और भ्रमण के लिए कोई शुल्क नहीं है। महाशिवरात्रि के समय इस मंदिर की रौनक देखने योग्य होती है। जोधपुर में महामंदिर पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण स्थल है।