कच्छ देश के गांव वेकरे में वेदो नामक चारण रहता था जो काफी धनवान था। बेटी सैणी साक्षात देवी रूपा। वह शेर और हिरण आदि का शिकार करती रहती। इसी कच्छ के भांचड़ी गांव में सिंढाय़च बीजाणंद रहता था। वह घोड़ों को बेचने का काम करने के साथ सुरीला गायक भी था। उसके सुरों से मंत्रमुग्ध होकर वन के हिरण तक पास चले आते और बीजाणंद उनके गले में सोने की मालाएं डाल देता। राग थमते ही हिरण जंगल में भाग जाते। अगले दिन जैसे ही वह गायन शुरू करता तो वही हिरण आ जाते। बीजाणंद अपनी मालाएं उनके गले से निकाल लेता। ऐसा अद्भुत था बीजाणंद।
एक बार वीजाणंद अपने काछी घोड़े बेचने निकला। रास्ते में छयणप के तालाब किनारे रूका। अगले दिन सैणी अपनी सखियों के साथ तालाब पर आई। उसने वराह का शिकार करके ऊंट पर लाद रखा था। उसके साथ पांच-छह सहयोगी थे। तालाब के किनारे डेरा देखकर उसने पूछताछ की। उसे मालूम हुआ कि यह डेरा तो बीजाणंद का है। उसके मन में मिलने की उत्कंठा जगी और वह डेरे में आई। बीजाणंद ने उसका स्वागत किया और मान-सम्मान दिया। सैणी ने उससे गायन सुनने की इच्छा जताई। बीजाणंद ने अपने जंतर पर त्रिडोरिया चढ़ाया और आलाप शुरू किया। शक्ति स्वरूपा सैणी ने बीजाणंद से राग मल्हार भी गाने को कहा। उसने राग मल्हार गाया तो झमाझम मेह बरसने लगा। सैणी बीजाणंद के गायन से मुग्ध हो गई और उससे ईनाम मांगने को कहा। बीजाणंद ने उससे वचन लिया कि मेरी मांग पूरी करनी पड़ेगी। सैणी ने वचन दिया तो वीजाणंद ने उससे विवाह की इच्छा प्रकट की। सैणी ने उससे धन आदि मांगने को कहा पर बीजाणंद विवाह करने पर अड़ा रहा। उसकी जिद देखकर सैणी ने भी एक वचन मांगा और बीजाणंद को एक ही मेजबान से सवा करोड़ के गहने छ: माह के भीतर लाने को कहा। यह शर्त पूरी करने पर विवाह हो सकेगा। इस पर बीजाणंद ने हामी भरी और सैणी की शर्त पूरी करने के लिए वहां से रवाना हो गया।
वह ईडर, वागड़, चांपानेर, कच्छ सब जगह घूमा पर इतना धन उसे कहीं भी नहीं मिला। निराश होकर वह गिरनार के राजा मंगळीक के पास गया तो उसने बीजाणंद को समझाया कि इतना धन किसी के पास नहीं है। बीजाणंद ने इसका समाधान पूछा तो राजा ने कहा कि समुद्र के बीच रहने वाले राजा भोजराज के पास यह धन मिल सकता है पर वहां जाने का मार्ग बहुत कठिन है और पहुंचने में ही डेढ़ महीने लगते हैं। बीजाणंद को चिंतित देखकर मंगळीक ने उसे दीव पहुंचाकर समुद्री जहाज में बैठा दिया। सवा महीने बाद वह जहाज भोजराज के राज्य में पहुंचा।
बीजाणंद ने रुकने का आसरा ढूंढा और फिर भोजराज के दरबार में पहुंचा। वहां भोजराज का प्रधानमंत्री मिला। उसने बीजाणंद को उचित सम्मान दिया और कहा कि तुम्हारा काफी नाम सुना था। बीजाणंद ने राजा से मुलाकात की इच्छा जताई तो प्रधानमंत्री ने इसमें महीना लगने की बात कही। पर बीजाणंद को एक-एक घड़ी वर्ष के समान लग रही थी। राजा के महल के दस द्वारों पर दस पहरेदार तैनात थे। बीजाणंद ने नट का वेश धारण करके प्रधानमंत्री की मदद से सभी दरवाजे पार कर लिए और राजा तक पहुंच गया। बिना अनुमति महल में आने से राजा क्रुद्ध हो गया और उसे मारने को लपका। तभी बीजाणंद ने अपना परिचय दिया। राजा भोजराज ने उससे आने का कारण पूछा तो उसने पूरा वृतांत सुनाया।
इसके बाद राजा, रानियों और प्रधानमंत्री ने उसे अतिथि बनाकर चार-पांच दिन रखा। विदाई के समय राजा ने उसे नौ करोड़ के गहने भेंट किए। बीजाणंद वहां से रवाना हुआ। यह सब होते-होते छ: माह बीत गए। अवधि पूरी होते ही सैणी ने लोगों को इकट्ठा किया और कहा कि समय पूरा हो चुका है पर बीजाणंद नहीं आया है। मैं अब हिमालय में गलने के लिए जा रही हूं। सात दिन बाद बीजाणंद पहुंचा तो उसे सैणी नहीं मिली। उसे पूरा वृतांत मालूम हुआ तो उसने गहने वृक्ष पर टांगे और खुद भी हिमालय में गलने के लिए रवाना हो गया।
सैणी ने हिमालय जाकर बीजाणंद जैसा बर्फ का पुतला बनाया और उसके सात फेरे लगाकर बर्फ में गलने के लिए बैठ गई। थोड़े समय बाद बीजाणंद भी वहां पहुंच गया और सैणी को पुकारने लगा। उसके पास पहुंचकर बीजाणंद ने कहा कि मैंने तुम्हारी शर्त पूरी कर दी है, अब यहां से चलो। इस पर सैणी बोली कि अब वह चलने में अक्षम है क्योंकि वह कमर तक गल चुकी है। अब मैं तुम्हारे किसी काम की नहीं हूं। तुम यहां से चले जाओ और सुखी जीवन बिताओ। बीजाणंद रोने लगा। सैणी ने उससे गायन सुनने की अंतिम इच्छा प्रकट की।
बीजाणंद ने जंतर बजाकर आलाप शुरू किया तो सारा हिमालय थम सा गया। उसका गायन चलता रहा और सैणी की देह गलती गई। जैसे ही सैणी ने प्राण त्यागे तो बीजाणंद भी अपना जंतर तोड़कर उसकी देह के पास गलने के लिए बैठ गया। दोनों प्रेमियों की अस्थियां एक-दूसरे में विलीन हो गईं।