मानव जीवन में प्रेम सर्वोपरि है। प्रेम मानव जीवन से जुड़ी ऐसी भावनात्मक क्रिया है जिसमें निश्छलता और निष्कपटता का होना पहली शर्त होती है। प्रेम को चिरस्थायी रखने के लिए प्रिय के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करने की भावना दोनों हृदयों में जलते रहना जरूरी है। एकपक्षीय प्रेम कई बार घातक भी होता है। प्रेम प्रधान कथाओं में नायक-नायिका की देहायष्टि के सौन्दर्य-चित्रण प्रवत्ति मिलती है। इन कथाओं में अनेक उपमानों का प्रयोग करते हुए नायक-नायिका के नख-शिख का वर्णन हृदय को तरंगित करने लायक होता है। इन प्रेमकथाओं में आंखों के मिलते ही नायक-नायिका के पहले दृष्टि प्रेम का वृतांत मिलता है। राजस्थानी लोकजीवन में विपुल मात्रा में प्रेम-कथाएं प्रचलन में रही हैं। ऐसी राजस्थानी प्रेम कथाओं में निहालदे-सुल्तान, मूमल-महेन्द्रा, ढोला-मारू, बींजा-सोरठ, बगसीराम प्रोहित नै हीरा, आभल-खींवजी, उमादे भटियाणी, गुलाब-कंवर, नागजी-नागवंती, पन्ना-विरमदे, मयाराम दर्जी की वात, रत्ना-हम्मीर, बीजड़-बीजोगण, सुपीयारदे, ससी-पन्ना, जेठवा-ऊजली आदि उल्लेखयोग्य हैं।
राजस्थानी प्रेम-कथाओं में सरस कथानक के साथ-साथ अनेक विशेषताएं मिलती हैं। कथानक रूढ़ियों के सहारे कथा संचालित होती है। इन प्रेमकथाओं में ‘बाल्यावस्था का प्रेम’ (बाळपणे री प्रीत) को प्रमुखता से चित्रित किया गया है। प्रीत में पगे प्रेमी खुद को प्रीतपगी महसूसते हुए अपना जीवन जीना चाहते हैं पर सामाजिक जीवन से जुड़े बंधन और रीतियां उनके प्रेमालाप में बाधा पैदा करने के हरेक मार्ग पर तैयार रहती हैं। सांसारिक रूकावटें उनके जीवन में बाधाएं आती रहती थीं पर वे लोक-लाज को छोड़कर धारा के खिलाफ चलते रहे। इन प्रेमकथाओं में विरह-भावना को भी स्थान मिला है। इनमें प्रेमी-प्रेमिका के मध्य संदेश-प्रेषण, मृदु-उपालंभ, मान-मनुहार, विरह-काल में हृदय पर प्राकृतिक दशाओं से होने वाले प्रभावों का लेखा-जोखा मिलता है। प्रेमकथाओं में संयोग वर्णन काफी सरस है और सुनने या पढ़ने वाले के हृदय को तरंगित कर देता है। इस संयोग-वर्णन में एक खास प्रकार की मर्यादा भी रखी गई है। राजस्थानी प्रेमकथाएं सुखांत और दुखांत दोनों रूपों में मिलती हैं। इन प्रेमियों ने न जातीय-बंधन को माना हैं और न ही सामाजिक रीतियों को जरूरत से ज्यादा महत्व दिया है। इन कथाओं में प्रेम को जन्म-जन्मांतरों का बंधन माना गया है। समाज की अनेक परिस्थितियों और घटनाओं के बीच में प्रेम के अजर-अमर और शाश्वत पुष्प को प्रस्फुटित किया गया है। राजस्थानी प्रेम-कथाओं में प्रेमियों का सशक्त, सहज और मानवीय पक्ष उजागर किया गया है। इन कथाओं में जातीय, राष्ट्रीय, सामाजिक, धार्मिक एवं पारिवारिक बंधनों का इंद्रजाल नहीं है।
राजस्थानी प्रेम-कथाओं में प्रेम तत्व के निरूपण के साथ-साथ भाषागत सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। वर्णन की दृष्टि से इनकी भाषा इतनी सुगठित और सरस है कि सुनते या पढ़ते समय प्रसंग से जुड़े दृश्य आँखों के सामने जीवंत हो उठते हैं। गद्य के साथ-साथ पद्य का अनूठा मेल (चंपू शैली) इन कथाओं की पठनीयता में वृद्धि कर देता है। कथानक और विशिष्ट शैली के कारण ये कथाएं सदियों से लोक के कंठ का हार बनी हुई हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही हैं।