सिंध नवाब के दो बेटियां मूमना और बूबना थी। मूमना सीधी तो बूबना चंचल। रूप का भंडार। हंसती तो फूल खिल उठते। जवान होने पर नवाब ने मूमना से शादी के बारे में पूछा तो उसने विवाह न करने की बात कही। ऐसे में नवाब बूबना का वर तलाशने लगा। लोगों ने आसपास के नवाब, शहजादों और वजीरों के बेटों के नाम सुझाए पर नवाब को बूबना के जोड़ का कोई नहीं लगा। उसने बूबना का चित्र उकेरवाकर अपने लोगों को दिया और कहा कि सभी देशों-परदेशों में जाकर जोड़ का वर तलाशें। नवाब के लोग देश-देशान्तर में घूमते हुए अंत में थटाभखर पहुंचे और वहां के बादशाह मृगतमायची के भांजे जलाल को देखा। उन्हें जलाल भा गया और बूबना के जोड़ का लगा। उन्होंने जलाल को अकेले में बूबना की तस्वीर दिखाई तो वह भी उस पर मर मिटा।
 
 
नवाब के लोगों ने सिंध लौटकर जलाल के बारे में बताया। नवाब भी बड़ा खुश हुआ। उसने काजी को बूबना और जलाल की शादी तय करने के लिए थटाभखर भेजा। काजी ने मृगतमायची से जलाल की शादी के लिए निवेदन किया। बादशाह ने जब बूबना की तस्वीर देखी तो वह बोला कि इससे तो मैं शादी करूंगा। काजी घबरा गया। साठ साल का यह बूढ़ा अब शादी के बारे में सोच रहा है। उसने कहा कि बूबना हूर है जो जलाल के लिए ही बनी है। पर बादशाह जिद पर अड़ा रहा। काजी ने खूब मिन्नतें की पर बात नहीं बनी। हारकर काजी ने बादशाह के साथ बूबना और जलाल के साथ मूमना की शादी तय कर दी। जलाल को बड़ा अफसोस हुआ पर वह बेबस था।
 
 
तय समय पर बारात आई। जलाल दूल्हा बनकर हाथी पर आया, वहीं बादशाह ने अपनी तलवार बूबना से निकाह करने के लिए भेजी। ऐन वक्त पर काजी ने नवाब के सामने खुलासा किया कि बूबना की शादी बादशाह से और मूमना की शादी जलाल से होगी। नवाब को काजी पर गुस्सा आया पर अब कोई उपाय नहीं था। बूबना को यह बात मालूम हुई तो वह भी तिलमिला उठी क्योंकि उसने मन से जलाल को पति मान रखा था। बादशाह की तलवार के साथ निकाह पढ़ने से पहले बूबना ने दासी को भेजकर जलाल से उसकी तलवार मंगवाई और उसके साथ विवाह कर लिया।
निकाह के समय नवाब ने दुखी मन से बादशाह की तलवार के साथ बूबना और जलाल के साथ मूमना का निकाह करवाया। बेबस जलाल और बूबना अपनी किस्मत को कोसते रहे।
 
 
मूमना और बूबना शादी के बाद थटाभखर आईं। बूबना दुखी मन से बादशाह की बेगम कहलाई। जलाल भी दुखी था। मूमना जब उसकी उदासी का कारण पूछती तो वह बहाने बनाकर टाल देता। उसे बूबना का दीदार तक नहीं हो रहा था। उधर बूबना भी बैचेन थी। उसने एक दिन दासी नेत्रबांदी से जलाल के बारे में पूछा तो उसने बताया कि वे तो दिनभर दीदार के लिए झरोखे को ताकते रहते हैं और सूरज ढलने पर चले जाते हैं। उस दिन के बाद बूबना झरोखे में से जलाल को तलाशती रहती। एक दिन जलाल और बूबना की आंखें चार हुई। बूबना ने दासी नेत्रबांदी को मौका मिलते ही जलाल को महल में लाने को कहा। जब जलाल झरोखे के नीचे बूबना के आने की राह देख रहा था तभी दासी ने उसके पास जाकर होले से कहा कि वह रात को बाग में आकर बूबना से मिले।
 
 
जलाल झटपट वहां से चल दिया और महल में जाकर स्नान करके सुंदर वस्त्र पहनकर इत्र छिड़ककर तैयार हो गया। वह रात ढलने का बेसब्री से इंतजार करने लगा। अंधेरा होते ही इधर-उधर ताकता हुआ बाहर निकला। उसके दोस्त तनामना ने उसे चुपचाप बाहर निकलते देखा तो उसे टोका और इश्क जैसे बखेड़े में नहीं पड़ने की सलाह दी। पर जलाल उसे अनसुना करके चला गया और बाग में जाकर जूही के पीछे छुप गया। उधर नेत्रबांदी चार दासियों के साथ फूल तोड़ने के लिए आई। उसने जलाल को फूलों की टोकरी में छिपाया और महल के द्वार तक ले आई। वहां पहरेदार तैनात था। नेत्रबांदी द्वारपाल को चकमा देकर टोकरा महल में ले आई। जब जलाल को बूबना का दीदार हुआ तो दोनों सुधबुध खो बैठे। उन्होंने तीन दिन और तीन रातें एक साथ गुजारी।
 
 
कहते हैं कि इश्क और मुश्क किसी से छिप नहीं सकते। ऐसे में जलाल-बूबना के इश्क की चर्चा फैलने लगी। बादशाह की दूसरी बेगमों ने उसे इस बारे में बताया। शुरू में उसने अनसुनी की पर लगातार चर्चा से वह तंग आ गया और एक रात अचानक बूबना के महल में जा पहुंचा। उसे आते देख नेत्रबांदी ने जलाल को कोने में रखे फूलों के ढेर में छिपा दिया। बादशाह ने महल में आकर चारों तरफ जलाल को तलाशा पर वह नजर नहीं आया। उधर जलाल की सांसें घबराहट के कारण तेज चलने लगी जिसके कारण फूलों का ढेर हिलने लगा। भेद खुलने के डर से नेत्रबांदी ने जलाल को एक दोहा सुनकर सचेत कर दिया। बादशाह तसल्ली करके महल से चला गया।
 
 
इसके बाद जलाल तो बूबना के महल में ही रम गया। उसे अनेक दिनों से दरबार से नदारद देख बादशाह ने उसके मित्र तनामना से उसके बारे में पूछा। उसने बादशाह से झूठमूठ कहा कि आप जैसे मामा के होते हुए जलाल को क्या फिक्र होगी, वह तो महलों में खा-पी रहा है, जवान है सो आनंद कर रहा है। अपनी बड़ाई सुनकर बादशाह खुश हो गया।
 
 
यूं महीनों बीत गए तो जलाल से बूबना से अपने घर जाने की इजाजत मांगी। आधी रात को वह बूबना के महल से निकलकर अपने महल में पहुंचा। इसके बाद हर रात वह बूबना से मिलने जाता। बादशाह के अलावा सभी यह जानते थे। एक दिन मृगतमायची शिकार के लिए जाने लगा  तो उसने जलाल को भी साथ चलने को कहा। दोनों सैनिकों के साथ जंगल में पहुंचे। शिकार करते-करते रात हो गई तो डेरे लगाकर वहीं रुक गए। बूढ़ा बादशाह और साथ आए लोग तुरंत सो गए। रात की चांदनी पूरे शबाब पर थी। ऐसे में जलाल को बूबना की याद आई। उसने बादशाह का अरबी घोड़ा लिया और चुपके से निकलकर बूबना के महल में जा पहुंचा। कुछ समय बिताया और बादशाह के जागने से पहले शिकार के डेरे आ गया। दौड़ने के कारण घोड़े की सांसे तेज चल रही थी। बादशाह जब जागा तो उसे शक तो हुआ पर वह बोला कुछ नहीं।
 
 
महल में आने के बाद उसने जलाल को गढ़ गिरनार के राजा के साथ चल रहे झगड़े को निपटाने के लिए भेज दिया। जलाल फौज के साथ वहां दो महीनों तक घेरा डाले रहा पर पार नहीं पड़ी। इतने दिनों का वियोग बूबना से सहन नहीं हुआ और वह रात के समय दासी के साथ गाड़ी पर सवार होकर जलाल के डेरे जा पहुंची। दोनों ने एक-दूसरे से मिलकर मन की मुराद पूरी की। फिर बूबना लौट गई। इधर भेदियों ने गिरनार राजा तक भी यह बात पहुंचा दी कि जलाल को बादशाह ने बूबना से दूर रखने के लिए ही यहां भेज रखा है, लड़ने की लिए नहीं। गिरनार के लोग निश्चिंत हो गए और अपना कामकाज करने लगे। आषाढ़ में जब अच्छी बरसात हुई तो गिरनार की आधी फौज फसल बोने में लग गई। ऐसे में मौका देखकर जलाल ने हमला किया और गिरनार के राजा को मारकर जीत हासिल कर ली। जलाल ने बादशाह तक जीत का संदेश भेजा तो वह खुश हुआ और उसे देश लौटने का आदेश दिया।
 
 
वापस आने पर उसका खूब स्वागत हुआ। बेगमों ने बादशाह के कान भरने शुरू कर दिये कि जलाल आते ही बूबना से मिलने जाएगा। बादशाह को भी पहले से शक था। उसने बूबना को तालाब के बीच बने महल में भिजवाकर दरवाजों पर पहरा लगवा दिया। जलाल को यह मालूम हुआ तो वह बूबना से मिलने का तरीका खोजने लगा। एक पहर रात्रि बीतने के बाद जलाल जलमहल के पास पहुंचा और वहां के पहरेदार से माफी मांगते हुए बूबना से मिलने की इजाजत मांगी। पहरेदार ने जलाल को जाने दिया। वह पानी में कूद पड़ा। दूसरी तरफ बूबना जलाल को लाने के लिए नाव लेकर सामने पहुंच गई। दोनों भरपूर मिले।
 
 
इस मिलन की चर्चा सब जगह पहुंची। तंग आकर बादशाह ने कहा कि जलाल मर जाए तो पीछा छूटे। यह सुनकर बादशाह की बड़ी बेगम ने कहा कि जलाल के मरने का उपाय मेरे पास है जिससे आपकी बदनामी भी नहीं होगी और काम भी हो जाएगा। जलाल और बूबना एक-दूसरे से खूब प्यार करते हैं, एक के मरने की खबर सुनते ही दूसरा स्वत: प्राण त्याग देगा। बड़ी बेगम के कहने पर मृगतमायची जलाल को अपने साथ शिकार पर ले गया। पहले से तय षड्यंत्र के अनुरूप जंगल से आदमी भेजकर महल में जलाल के शिकार के दौरान घोड़े से गिरकर मरने की झूठी खबर फैला दी। पूरे महल में रुदन शुरू हो गया। बूबना तो सुनते ही ‘हाय जलाल’ का विलाप करते हुए मर गई। बादशाह के भेजे आदमियों ने जंगल में खबर की कि जलाल के मरने का समाचार सुनते ही बूबना मर गई। उसके मरने की खबर सुनते ही जलाल पछाड़ खाकर गिर पड़ा और उसके भी प्राण-पंखेरू उड़ गए। दोनों की मौत के बाद बादशाह को सच्ची मोहब्बत का अर्थ समझ में आया और उसने दोनों को एक ही कब्र में दफनाने का आदेश दिया। उनको दफनाते समय बादशाह ने घुटने टेककर खुदा से माफी मांगते हुए कहा कि मैं इन दोनों के बीच में आने का गुनहगार हूं। इस पाप के लिए परवरदीगार मुझे मुआफ़ी दे।
 
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