किसी समय में पूगळ में पिंगळ और नरवर में नल नामक राजाओं का शासन था। राजा पिंगळ के मारवणी नाम की बेटी और राजा नल के साल्हकुंवर या ढोला नाम का बेटा था। पूगळ देश में अकाल पड़ा तो राजा पिंगळ अपने परिवार के साथ राजा नल के यहां चला गया, जहां उसे यथोचित आतिथ्य दिया गया। कुछ समय बाद दोनों परिवार घुलमिल गए और पिंगळ राजा की रानी ढोला पर मुग्ध होकर उसे दामाद बनाने का फैसला कर लिया। उसने अपने पति से कहकर अपनी पुत्री मारवणी का विवाह ढोला के साथ करवा दिया। इस समय ढोला तीन वर्ष का और मारवणी केवल डेढ़ वर्ष की थी। कुछ महीनों बाद पूगळ में अच्छी बरसात हुई और राजा पिंगळ ने राजा नल से विदाई मांगी। पूगळ लौटते समय पिंगळ ने अपनी अबोध ब्याहता बेटी को पूगळ लाना उचित माना और उसे साथ ले आए।
आने के बाद अनेक साल बीत गए। राजा नल भी अतीत को भूलकर पूगळ को दूर मानकर ढोला का दूसरा विवाह मालवा शासक की राजकुमारी मालवाणी के साथ करवा चुका था। ढोला और मालवणी आनंद के साथ रहने लगे। दूसरी ओर मारवणी के बड़ी होने पर उसके पिता ने ढोला को अपनी ब्याहता को ले जाने के कई संदेश भेजे पर नरवर की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। इसका कारण यह था कि ढोला की दूसरी ब्याहता पत्नी मालवणी ढोला के पहले विवाह के बारे में जान चुकी थी और उसने पूगळ के मार्ग पर ऐसे प्रबंध कर रखे थे कि हरेक संदेशवाहक को मार्ग में मार दिया जाता था। यौवना हो चुकी मारवाणी को एक दिन सोते हुए स्वप्न में ढोला के दर्शन हुए तो वह विरहाकुल हो उठी। संयोग से उसी समय पूगळ में नरवर की तरफ से एक सौदागर घोड़े बेचने आया हुआ था। उसने ढोला के दूसरा विवाह करने की बात राजा पिंगळ से कही। राजा पिंगळ ने ढोला को बुलाने के लिए अपने पुरोहित को भेजने की बात सोची पर रानी के कहने पर इस काम के लिए ढाढ़ियों को चुना गया। मारवणी ने अपना संदेश ढाढ़ियों को बता दिया।
ढाढ़ियों ने नरवर जाने के रास्ते में मालवाणी द्वारा लगाए गए पहरेदारों को गीत-गायन से मोहित कर लिया और बिना कठिनाई के नरवर पहुंच गए। उन्होंने ढोला के महल के नीचे डेरा जमाया और रातभर मांड राग में करुण स्वर में मारवाणी का प्रेमसंदेश गया जिसे ढोला ने सुना। गाने को सुनकर ढोला में भी व्याकुलता जाग उठी और उसने सुबह होते ही ढाढ़ियों को महल में बुला लिया। उनसे पूरा वृतांत समझा और उचित ईनाम देकर विदा किया। ढाढ़ियों से मारवणी के बारे में जानकर ढोला के चित्त में उत्कंठा और व्यग्रता बढ़ गई। मालवणी ने अपने पति के मन के भाव जान लिए थे। ढोला ने मारवणी को लाने की इच्छा जताई तो मालवणी ने उससे अनुनय करके उसे ग्रीष्म और वर्षा-ऋतु तक रोक लिया। एक दिन अवसर मिलते ही शरद ऋतु की अर्द्धरात्रि को मालवणी को सोता हुआ छोड़कर पूगळ देश के लिए रवाना हो गया। सोती हुई मालवणी को ऊंट की बलबलाहट सुनी तो वह उठ गई। उसने अपने पति को बुलाने के लिए अपने पालतू तोते को पीछे भेजा। तोते ने चंदेरी और बूंदी के मध्य एक तालाब पर ढोला को कहा कि आपके वियोग में मालवणी की मृत्यु हो गई है। ढोला उसका झूठ समझ गया और उसने उत्तर दिया कि वह जाकर उसकी अन्त्येष्टि कर दे। तोता वहां से लौट गया। मालवणी निराश हो गई।
ढोला पूगळ के मार्ग पर चलता गया। तीसरा पहर होने तक उसने अरावली पहाड़ पार कर लिया। मार्ग में उसे ऊमर-सूमरा का एक चारण मिला जो ऊमर की तरफ से मारवणी के साथ विवाह का प्रस्ताव लेकर पूगळ गया था पर वहां से निराश होकर लौट रहा था। उसने ढोला को भ्रमित करने के इरादे से कहा कि अब तो मारवणी बूढ़ी हो चुकी है, वहां जाकर क्या मिलेगा ? यह सुनकर ढोला को चिंता हो गई। वह थोड़ा आगे बढ़ा तो उसे विसू नामक दूसरा चारण मिला जिसने मारवणी का सच्चा हाल बताकर ढोला की चिंता का निवारण कर दिया। अंतत: ढोला पूगळ पहुंच गया जहां उसका खूब स्वागत हुआ। मारवणी के हर्ष का कोई पार नहीं था। ढोला भी उसकी सुंदरता पर मुग्ध हो गया और ससुराल में पंद्रह दिन आनंदपूर्वक रूका। विदाई के बाद वह दहेज, धन आदि के साथ मारवणी को लेकर नरवर के लिए रवाना हुआ। मार्ग में रात्रि को सोते समय मारवणी को पीवणे सांप ने डस लिया। ढोला ने उसे मृत देखा तो वह विलाप करते हुए उसकी चिता के साथ जलने की तैयारी करने लगा। जब वह चिता में बैठ गया तो मार्ग से गुजरने वाले योगी-योगिन ने उसका दुख देखकर मारवणी को जीवित कर दिया।
इसके बाद ढोला आगे बढ़ गया। दुष्ट ऊमर-सूमरा को भी ढोला की यात्रा के बारे में जानकारी थी। वह मारवणी को पाने की लालसा लिए रास्ते में जाल बिछाए तैयार था। उसने ढोला को आतिथ्य के बहाने रोक लिया और रात्रि संगीत के लिए गायक-गायिकाएं बुला रखे थे। इस सभा में पूगळ की ओर की एक ढाढ़ी गायिका ने गाते समय संकेत से मारवणी को ऊमर-सूमरा का षड्यंत्र समझा दिया। अवसर पाकर ढोला और मारवणी ऊंट पर बैठकर वहां से निकल भागे। ऊमर ने उनका पीछा किया पर वे हाथ नहीं आए। ढोला मारवणी के साथ सकुशल नरवर पहुंच गया। वहां उनका बड़ा स्वागत हुआ और वे आनंदपूर्वक रहने लगे।