एक व्यक्ति इतना कंजूस था कि उसके कंजूसपने की तुलना किसी के साथ नहीं की जा सकती थी और ना ही उसकी कंजूसी का वर्णन शब्दों में किया जाना संभव था। दिन भर धन कमाने के लिए दौड़-भाग करता रहता। और तो और रात को भी नींद में ‘धन-धन’ बड़बड़ाता रहता। सपने में भी उसे सोने-चांदी के पहाड़ दिखते। यहां तक कि नदियों, झरनों और ताल-तलैयों में भी उसे पानी की जगह सोना-चांदी दिखता।


एक बार उसे नींद में सोने का बहुत बड़ा पहाड़ दिखा। वह उठकर घर के कमरे में गया, वहां से गैंती और फावड़ा उठाया और घर का दरवाजा धीरे से खोलकर चुपके से निकल गया। रास्ते भर वह बस्ती के लोगों से छुपते-छुपाते नींद में ही एक दिशा में चलता गया। चलते-चलते वह एक जगह लड़खड़ाकर गिर पड़ा जिससे गैंती और फावड़ा भी नीचे गिर गए। उसके भारी शरीर के तले उसका दायां हाथ दब गया। दर्द के मारे उसकी नींद खुल गई और वह चौंककर उठ बैठा। उसे पहाड़ और सोना कहीं नजर नहीं आया।


असल में वह अपने घर में बिस्तर से नीचे गिरा हुआ था। फावड़ा और गैंती उसके बगल में पड़े थे। गैंती की चोट माथे पर लगने के कारण वहां से खून निकल रहा था। साथ ही उसका दायां हाथ भी टूट चुका था। उसके रोने-कराहने की आवाज सुनकर घरवाले जाग गए और उसे संभालकर पलंग पर सुलाया। उसके ईलाज के लिए वैद्य बुलाया गया।


पीड़ा से कराहता हुआ भी वह अपनी लोभी आदत के चलते बड़बड़ा रहा था कि सपना आधा सच और आधा झूठ हो कैसे हो गया।


कंजूस ने सोने के लालच में हाथ तुड़वाया और ऊपर से माथा भी फुड़वाया, इतना सपना तो सच था पर सोने का पहाड़ होने का सपना झूठ था। वह कराहते हुए पछता रहा था कि सपना आधा सच और आधा झूठ कैसे हुआ!
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