एक चोर था। पेशे में इतना प्रवीण कि आसमान के तारे तोड़ लाए और किसी को भनक भी न लगने दे। एक रात्रि वह दूर के ठिकाने से चार बेहतरीन घोड़ियां चुराकर लाया। उसके गांव के लोग यह नहीं जानते थे कि वह चोरी करता है। वे उसे पशुओं का व्यापारी मानते थे। गांव आने के बाद वह लोगों से बोला कि इस बार मेले में खूब तेजी थी, सो घोड़ियां बड़ी महंगी मिली। लोगों ने भी उसकी बात पर भरोसा कर लिया। 

उसने दो दिन घोड़ियों को अपने बाड़े में बांधे रखा। उसने तीसरे दिन घोड़ियों को बेचने का मानस बनाया और मुंह-अंधेरे ही बाड़े में गया। पर रात को ही उससे बड़ा कोई चोरी में उस्ताद उन घोड़ियों को चुरा ले गया था। उसे खूब अफसोस हुआ। वह चुपचाप जाकर घर में जाकर सो गया। 

सुबह होने के बाद जब वह बाहर निकला तो लोगों ने पूछा कि घोड़ियां बेच दी क्या? वह मुंह पर जबरन मुस्कुराहट लाते हुए बोला कि हां, बेच दी।

लोगों ने फिर पूछा – “किस भाव बेची? क्या नफा हुआ? कहीं नुकसान तो नहीं हुआ होगा?”
लोगों की सभी बातों का जवाब देते हुए वह बोला – “जिस भाव खरीदी थी उसी भाव से बेच दी। ना नफा हुआ और ना नुकसान। उसी भाव में घोड़ियां बेच दी। मूल पूंजी नहीं डूबी, वही खैरियत है।”
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