कच्छी घोड़ी नृत्य राजस्थान के मारवाड़ और शेखावाटी अचंल में काफी लोकप्रिय है। विवाह-शादियों में अमूमन यह नृत्य किया जाता है। इसमें चार से पांच नर्तक अपनी कमर के निचले भाग में घोड़ी की आकृतियां बांधकर नृत्य करते हैं। कच्छी घोड़ी नृत्य में वाद्य के रूप में ढोल, झालर और बांकिए प्रयुक्त होते हैं। इस नृत्य में सरगड़ा, कुंभकार, ढोली, भांबी, बावरी आदि जातियों के कलाकारों को विशेष ख्याति मिली हुई है। राजस्थान के रामगढ़ शेखावाटी कस्बे के कच्छी घोड़ी नर्तक इसके लिए काफी लोकप्रिय हैं।
वस्तुत: यह नृत्य संगीत, नृत्यकला और हस्तकला का अनूठा संगम है। इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाली घोड़ियों के पुतले तैयार करना भी विशेष प्रकार का कलात्मक कार्य है। अमूमन ये पुतले दो टोकरियों को बांस के दो डंडों से जोड़कर उनके बीच में कुछ जगह छोड़कर बनाए जाते हैं ताकि नृतक उस पुतले को कमर से बांधकर नाच सकें। इन टोकरियों के पहले छोर पर घोड़ी का सिर और दूसरे सिरे पर पूंछ के रूप में सन घास से बने काले रेशों का गुच्छा बांधा जाता है। लकड़ी, बांस और खप्पचियों की उलट दिशा में कागज कुट्टी लगाकर उन्हें तार से बांधकर इन घोड़ियों को तैयार किया जाता है। इसके बाद घोड़ी के पुतलों को रंग-बिरंगे वस्त्रों से सजाया जाता है। चारों-पांचों नर्तक अपने हाथ में तलवार धारण किए होते हैं और उनके पांवों में घुंघरु सजे होते हैं। ढोल, ताशों और नगाड़ों के सामूहिक नाद के बीच जब नर्तक नृत्य शुरू करते हैं तो देखने वाले भी थिरक उठते हैं। कुछेक प्रसंगों में युद्ध के दृश्य को भी मंचित किया जाता है जो राजस्थानी वीर संस्कृति को प्रतिबिंबत करता है। यह राजस्थानी नृत्य पंजाब, सिंध और दक्षिण भारत के मैसूर तक विविध रूपों में लोकप्रिय है।
वैसे तो कच्छी घोड़ी नृत्य पश्चिमी राजस्थान में प्रचलित है पर शेखावाटी अंचल में इसका प्रचलन अधिक है। इसकी कई विशिष्टताओं को देखते हुए इसे भारत महोत्सव जैसे बड़े आयोजन में भी प्रस्तुति देने का अवसर दिया गया था। कुछेक जगहों पर कच्छी घोड़ी नृत्य के दौरान एक पात्र स्त्री वेश धारण करके घोड़ी का पुतला बांधकर नाचने वाले पुरुष पात्र के साथ दोहों के माध्यम से चुटीले संवाद करता है। इनका विषय रोचक और शृंगारपरक होता है। इन दोहों के साथ नर्तकों द्वारा की जाने वाली भाव-भंगिमाएं पूरे वातावरण को सरस बना देती हैं। इन दोनों पात्रों के संवाद अमूमन इसी प्रकार के होते हैं–
घोड़ी वाला - निजर करै तो नेह कर, नींतर नेह निवार।
सुण प्यारी छैलो कहै, उल्टा बाण मत मार॥
(घोड़ी वाला उस स्त्री वेश वाले पात्र से कहता है कि मेरी तरफ दृष्टि कर ही ली है तो मुझ पर प्रेम की वर्षा भी कर दीजिए। मैं स्नेहपूर्वक कह रहा हूं कि मुझे अपनी आंखों के बाणों से मत मारो।)
स्त्री - आछी कही रै साजना, म्हारै लागी अंग।
एक पीळो सो दूहो कहै, तो चालूं थारै संग॥
(घोड़ी वाले युवक की बातों का जवाब देते हुए स्त्री पात्र कहती है कि तुमने ऐसी बात कही है जो मेरे अंतर्मन को छू गई है। अब पीले रंग का जिक्र करने वाला एक दोहा कहो तो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं।)
घोड़ी वाला - पीळा पाट पटांव का, पीळा हळदी का रंग।
पीळो सोनो सोळमो, चढ़ै गौरी के अंग॥
(युवती द्वारा पीले रंग के उल्लेख वाला दोहा कहने की शर्त को पूरा करते हुए वह कहता है कि बैठने के लिए पीले रंग का आसन है, हल्दी का रंग भी पीला होता है। पीला सोना यौवना के अंग-प्रत्यंग पर शोभायमान हो रहा है।)
स्त्री - आछी कहे रे साजना, म्हारै लागी अंग।
एक काळो सो दूहो कहै, तो चालूं थारै संग॥
(युवती घोड़ी वाले से अब काले रंग का उल्लेख करने वाला पद सुनाने पर साथ चलने की बात कहती है।)
घोड़ी वाला - काळा काग और कोयला काळा वन रा बाग।
काळा गोरी थारा केसवा, चिपकै वासग नाग॥
(उसकी इस मांग पर घोड़ी वाला दोहा सुनाते हुए कहता है कि कौआ और कोयल काले रंग के होते हैं, वहीं आपके केश भी काले हैं जिनकी वेणी वासुकि नाग की भांति लग रही है।)
स्त्री - आछी कही रै साजना, म्हारै लागी अंग।
एक धोळो सो दूहो कहै, तो चालूं थारै संग॥
(इसके बाद युवती घोड़ी वाले से धवल रंग के वर्णन वाला पद सुनाने को कहती है।)
घोड़ी वाला - धोळा गाय र वाछरू धोळो रूई कपास।
धोळा गोरी थारा दंतवा, चिमकै बारूई मास॥
(उसकी इस शर्त पर वह धवल वर्ण से जुड़ा दोहा कहता है कि गाय का बछड़ा सफेद रंग का होता है, कपास भी सफेद होती है। तुम्हारे दांत भी सफेद हैं जो हरदम चमकते रहते हैं।)
स्त्री - आछी कहै रै साजना, म्हारै लागी अंग।
एक रातो सो दूहो कहै, तो चालूं थारै संग॥
(युवती घोड़ी वाले से विविध रंगों के वर्णन वाले दोहे सुनाने की मांग के क्रम में इस बार लाल रंग के उल्लेख वाला पद सुनाने को कहती है।)
घोड़ी वाला - राता चूड़ा राती चूंदड़ी रातो रंग मजीठ।
रातां मेहंदी राचणा निरखूं बार पचीस॥
(घोड़ी वाला युवती को लाल रंग के वर्णन वाला दोहा सुनाते हुए कहता है कि हाथों के चूड़े, चुनरी और मंजिष्ठा का रंग लाल होता है। मेंहदी का रंग भी लाल होता है जो तुम्हारे हाथों पर लगने के बाद बड़ी सुंदर लग रही है।)
स्त्री - आछी कही रै साजना म्हारै लागी अंग।
एक फिरतोड़ौ दूहो कहै तो चलूं थारै संग॥
(इसके बाद युवती घोड़ी वाले से घूमने का वर्णन करने वाला दोहा सुनाने को कहती है।)
घोड़ी वाला - फिरै चाक कुम्हार फिरै घाणी री लाट।
फिरै गोरी को घाघरो कांई नाचण रौ ठाठ॥
(युवती की मांग को पूरा करते हुए घोड़ी वाला कहता है कि कुंभकार का चाक और कोल्हू का दंड हमेशा घूमता रहता है। तुम्हारे घाघरे का घेर भी घूम रहा है जिससे नाचने का आनंद बढ़ गया है।)
इस प्रकार कच्छी घोड़ी नृत्य के साथ-साथ हस्तकला और सरस पदों के सुंदर समन्वय वाला अनूठा लोक नृत्य है।