रामपुरिया परिवार की हवेलियाँ बीकानेर की प्रसिद्ध हवेलियाँ हैं। ये सभी हवेलियाँ एक ही परिवार की हैं और अपने विशिष्ट स्थापत्य कला के कारण विख्यात है। लाल पत्थर से बनी ये हवेलियाँ और नक़्क़ाशीयुक्त इनकी दीवारें बहुत कुछ बताती हैं। इस परिवार की मुख्यतः तीन हवेलियाँ हैं, जिनका नीचे सिलसिलेवार ब्यौरा दिया गया है—
(1) भँवरलाल जी रामपुरिया की हवेली
यह हवेली बहुत विशिष्ट है। हवेली का बाहरी चेहरा लाल पत्थर से बना है जिस पर शानदार झरोखे, दिल लुभाती जालियाँ और उन पर की गई शानदार नक़्क़ाशी देखते ही बनती है। हवेली की सबसे चर्चित जगह इसका विशाल आँगन है, फर्श पर लाल पत्थर बिछे हैं। आँगन के चारों तरफ बरामदे और कमरे हैं। पूरी हवेली में तक़रीबन 25 कमरे हैं। हवेली के बरामदे में स्थित दीवानखाना मुगल आर्ट, बुलबुल, सुनहरी कार्य, आईनों आदि से सजा हुआ है। इन वस्तुओं को उस्ता कलाकार असगर उस्ता द्वारा गोल्डन वर्क से सजाया गया है। फिलवक्त इस हवेली को होटल में तब्दील कर दी गई है।
(2) हीरालाल रामपुरिया की हवेली
इसका निर्माण हीरालाल रामपुरिया ने करवाया था। यह हवेली अपनी विशालता के लिये प्रसिद्ध है। इसमें तमाम धार्मिक चित्र बने हुए हैं। आंगन टुलमेरा के लाल पत्थरों से बना हुआ है। हवेली की प्राचीनता और उसकी स्थापत्य कला बीकानेर का आकर्षण केंद्र है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ रखी कुर्सियाँ बर्मा लायी हुई हैं, जिनका वजन बहुत कम है। यहाँ एक दीवानखाना है, जो रतनलाल के अधिकार में रहा है, यह दीवानखाना एक छोटे अजायबघर की शक्ल में है।
(3) माणकचन्द रामपुरिया की हवेली
माणकचन्द रामपुरिया की हवेली का निर्माण हीरालाल रामपुरिया ने करीब 100 वर्ष पहले करवाया था। इस हवेली का एक बड़ा भाग महफिलख़ाना कहलाता है। यह करीब 20 फीट चौडा, 150 फीट लम्बा है। पूरे महफिलख़ाना में भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र टंगे हैं, जिनमें प्राकृतिक दृश्य, कलात्मक आकृतियाँ आदि शामिल है। यहाँ मुख्य द्वार के आस-पास कुछ झरोखे भी बने हैं। इस महफिलख़ाने की कला पारंपरिक, मुग़लकालीन और ब्रिटिश ज़माने का मिश्रण है।