मनोविनोद मानव की स्वाभाविक जरूरत है और वह मानसिक थकान को दूर करने के लिए अनुरंजनात्मक माध्यमों की सदैव तलाश में रहता है। आदिम युग में जब मनोरंजन के साधन सीमित थे तब वाणी के विकास के साथ-साथ लोककथाओं की उत्पति हुई। अलिखित रूप और मौखिक परंपरा से विविध विषयक कथाएं पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहीं। इनमें से मनोरंजनात्मक लोककथाओं का लोकजीवन में खास महत्व है। राजस्थानी लोककथाओं के कथानकों में विषयगत विविधताओं के दर्शन किए जा सकते हैं। इन्हें विषय के आधार पर वीर कथाओं, प्रेम कथाओं, पौराणिक कथाओं, लोक देवी-देवताओं की कथाओं, व्रत कथाओं और हास्य कथाओं आदि में वर्गीकृत किया जा सकता है।
 
 
कलेवर की दृष्टि से हास्य कथाएं राजस्थानी की अन्य लोककथाओं से आकार में छोटी होती हैं। लोकजीवन में अनगिनत हास्य-कथाएं प्रचलित हैं। छोटा कथानक होने के कारण लोग आपस में बात करते समय इन लघु हास्य-कथाओं का कथानक उदाहरण रूप में काम में लेते हैं। इससे वार्तालाप की सरसता बढ़ जाती है और ठहाके फूट पड़ते हैं।  
 
 
राजस्थानी लोककथाओं में हास्य-कथाओं का विशेष स्थान है। इन हास्य-कथाओं में काना कौवा, तेली लंगड़ा और पांगली पनिहारन, दांतला राजा, चांचली रानी आदि प्रमुख हैं। हास्य कथाओं का कथानक जन-जन की जिह्वा पर सदियों से विराजमान रहा है और इन्हें एक पीढ़ी अपने से अगली पीढ़ी को सौंपती आई है। इन कथाओं में जाति लक्षक हास्य कथाएं भी हैं जिनमें समाज की हरेक जाति को उसकी लोकजीवन में बनी मोटा-मोटी छवि के अनुरूप चित्रित करके प्रहसन किया जाता रहा है। सभी जाति-वर्गों के लोग एक जगह बैठते समय इन कथाओं का उदाहरण देकर एक-दूसरे का मजाक उड़ाते हैं पर इन कथाओं में जातिगत गुणों का संकेत करने पर लक्षित जाति वाला श्रोता वर्ग बुरा नहीं मानते। अपितु इनके माध्यम से लक्षित जाति वाला वर्ग अपनी कमियों को सुधारने के लिए तत्पर होता है।
 
वस्तुत: इन कथाओं से मानव अपने जीवन में आने वाले दैनिक तनाव को दूर करने का प्रयास करता है। इन हास्य कथाओं के आधार पर अनेक कहावतें भी बनी हैं। राजस्थानी हास्य कथाओं में लोकजीवन में प्रचलित लोक परम्पराओं की झांकी भी देखने को मिलती है। ऐसी राजस्थानी हास्य कथाओं में थानियों-मानियों, जाट और काजी, बंजड़ का जानवर, गुड़-मीठड़ी आदि गिनी जा सकती हैं।
 
 
इन हास्य कहानियों से मानव मन की चिंताएं और तनाव दूर हो जाता है और वह अगले दिन के श्रम कार्य के लिए तैयार हो जाता है। राजस्थानी लोककथाओं में हास्य-कथाओं का लोकजीवन का अनुरंजन करने में बड़ा योगदान रहा है।   
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