अजमेर का उर्स
राजस्थान ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में भी अजमेर का उर्स का विशेष स्थान है। यहां प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मुइनूद्दीन हसन चिश्ती की पवित्र दरगाह बनी हुई है। ख्वाजा चिश्ती चौहान शासन के समय फारस के संजर से आकर अजमेर की आनासागर झील के किनारे रहने लगे थे। वे आजीवन गरीबों की सहायता करते रहे और सूफी मत की शिक्षाएं देते रहे। उनकी दरगाह पर सभी धर्मों के लोग आते हैं और चादर चढ़ाते हैं। हिजरी संवत के छठे महीने के पहले छह दिनों में उर्स का मेला भरता है। छठे दिन जन्नती दरवाजा खोल जाता है जिसमें से सात बार निकलने से जन्नत में स्थान मिलने की मान्यता है। दरगाह के बुलंद दरवाजे के पार रखी दो बड़ी देगों में तैयार प्रसाद को जायरीनों में वितरित किया जाता है।
गलियाकोट का उर्स
डूंगरपुर जिले के सागवाड़ा कस्बे के पास गलियकोट नामक स्थान पर माही नदी के तट पर यह उर्स मोहर्रम के 28 वें दिन भरता है। इस उर्स में दाऊदी बोहरा मुस्लिम भाग लेते हैं। यहां इस संप्रदाय के संत सैयद फाखरूद्दीन की दरगाह बनी हुई है। उर्स के समय यहां मजलिस का आयोजन होता है।
नरहड़ के पीर
शेखावाटी क्षेत्र के झुंझुनू जिले के नरहड़ में शक्कर पीर की दरगाह बनी हुई है। ये प्रसिद्ध सूफी संत सलीम चिश्ती के शिष्य थे। यहां संतान प्राप्ति के लिए और पागलपन जैसे रोगों को दूर करने की मान्यता लेकर यात्री आते हैं। यहां भाद्रपद के महीने में मेला भरता है।