कैलादेवी का मेला
करौली में कैलादेवी का मंदिर बना हुआ है। कैलादेवी को यादव राजवंश की कुलदेवी माना जाता है। यहां प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रों में मेला भरता है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग शामिल होते हैं। इस मेले में किया जाने वाला लांगुरिया नृत्य बड़ा प्रसिद्ध है।
शीलादेवी का मेला
शिलादेवी आमेर के कछवाहा राजवंश की कुलदेवी मानी जाती है। इनका मंदिर आमेर के किले में बना हुआ है। शिलादेवी का मेला चैत्र नवरात्रों में भरता है।
करणी माता का मेला
बीकानेर के देशनोक कस्बे में करणी माता का मंदिर बना हुआ है। करणी बीकानेर के राठौड़ वंश की कुलदेवी मानी जाती है। चारण भी उन्हें इष्टदेवी मानते हैं। करणी माता के मंदिर में चूहे बड़ी संख्या में मिलते है और इसी कारण इन्हें चूहों की देवी भी कहा जाता है। नवरात्रों में देशनोक में बड़ा मेला भरता है।
जीण माता का मेला
जीण माता का मंदिर सीकर के दक्षिण में रैवासा गांव के समीप की पहाड़ियों पर बना हुआ है। इन्हें चौहानों की कुलदेवी माना जाता है। चैत्र और अश्विन माह की नवरात्रियों में यहां बड़ा मेला भरता है।
आई माता का मेला
आई माता सीरवी समाज की कुलदेवी के रूप में पूजी जाने वाली आई माता का मंदिर जोधपुर के बिलाड़ा कस्बे में बना हुया है। आई माता के मंदिर को दरगाह एवं इनके थान को बढेर कहा जाता है। प्रत्येक महीने की शुक्ल दूज को इनकी विशेष पूजा होती है।