ऊब छठ
श्रावण मास की कृष्णा षष्टमी में कुंवारी कन्याओं द्वारा ‘ऊब छठ’ का व्रत किया जाता है। वे रात्रि को चंद्रमा के दर्शन के बाद भोजन ग्रहण करती हैं।
हरियाली तीज
राजस्थान में तीज-त्यौहारों का आरंभ छोटी या हरियाली तीज से होता है। श्रावण शुक्ल तीज को यह पर्व मनाया जाता है जिसमें मुख्यतया बालिकाएं और नवविवाहिताएं शामिल होती हैं। इस त्यौहार के पहले दिन महिलाएं खूब शृंगार करती हैं। इस पर्व का प्रमुख प्रतीक सुहाग पिटारी व नवग्रह है। इस दिन जयपुर में तीज की सवारी निकलती है और बड़ा मेला भरता है।
हरियाली अमावस्या
श्रावण कृष्णा अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्यौहार पीठोरी व्रत भी कहलाता है। इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं।
कजली तीज
भाद्रपद माह की कृष्णा तृतीय को बूंदी क्षेत्र में कजली तीज का त्यौहार मनाया जाता है। इसे बड़ी तीज, सात्यूडी तीज भी कहा जाता है।
रक्षाबंधन
श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन बहिनें अपने भाइयों को राखियां बांधती हैं और वह बदले में अपनी बहनों को उपहार देता है।
कृष्ण जन्माष्टमी
यह त्यौहार भाद्रपद कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग व्रत भी रखते हैं।
गोगा नवमी
यह लोक पर्व भाद्रपद कृष्ण नवमी के दिन लोकदेवता गोगाजी के जन्म के रूप में मनाया जाता है। इस दिन राजस्थान के मरु भाग में लोग खीर का प्रसाद भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं और गोगाजी की पूजा में नारियल अर्पित करते हैं।
गणेश चतुर्थी
यह त्यौहार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन रणथंभोर किले में बने गणेश मंदिर और जयपुर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रहती है। इस दिन मेला भी भरता है। गणेश चतुर्थी के दिन मुखौटे लगाकर अनेक स्वांग भी रचे जाते हैं। ऐसे स्वांग वाले लोगों को ‘होकड़ा’ कहा जाता है।
जलझूलनी (देवझूलनी) एकादशी
भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन जलझूलनी या देवझूलनी एकादशी त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों आदि में स्थित देवताओं की मूर्तियों को जलाशय या नदी आदि के पास ले जाकर स्नान करवाके झूला झुलवाया जाता है। यह रस्म पूरी करने के बाद इन मूर्तियों को पुन: मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है। इस त्यौहार को विष्णु परिवर्तनोत्सव भी कहा जाता है।
श्राद्ध पक्ष
अपने पूर्वजों के स्मरण के रूप में यह संस्कारनुमा पर्व आश्विन माह की अमावस्या से लेकर श्राद्धपक्ष तक मनाया जाता है। इन दिनों में अपने पूर्वजों को समर्पित करते हुए पक्षियों को उनका प्रतीक मानकर भोजन करवाया जाता है।
नवरात्रा
आश्विन माह प्रतिपदा से लेकर चैत्र शुक्ला प्रतिपदा तक नवरात्रों के पखवाड़े को पूजा की भांति माना जाता है। इस पर्व पर दुर्गा माता की पूजा की जाती है। मध्य युग में बलि प्रथा भी चलन में थी जिसमें भैंसों की बलि के साथ कुछेक अन्य पशुओं की बलि दी जाती रही। पर आजकल यह त्यौहार सामान्य तरीके से मनाया जाता है।
दशहरा
आश्विन माह की शुक्ला दसवीं के दिन मनाया जाता दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। लोकमान्यता है कि इसी दिन भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी। पुराने समय में इस दिन शस्त्र पूजन की परंपरा भी राजस्थान में प्रचलित थी। इस दिन शमी (खेजड़ी) के वृक्ष का पूजन किया जाता है। राजस्थान में कोटा शहर में आयोजित होने वाला दशहरा मेला बेहद विख्यात है। इस दिन लीलटाँस पक्षी का दर्शन बेहद शुभ माना जाता है।
करवा चौथ
कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत केवल विवाहित स्त्रियां पति की दीर्घायु के लिए रखती है। इस दिन महिलाएं चंद्रमा का उदय होने पर अर्ध्य देकर भोजन ग्रहण करती हैं।
दीपावली
हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। लोकमान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीराम रावण पर विजय पाकर मार्ग तय करते हुए अयोध्या पहुंचे थे। दीपावली से एक दिन पूर्व घर के बाहर एक दीप जलाकर पूरी रात्रि प्रज्ज्वलित रखा जाता है। जैन मतावलंबी इस दिन महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस मनाते हैं।
गोवर्धन पूजा
दीपावली का अगला दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है।
देवउठनी एकादशी (देवउठणी इग्यारस)
कार्तिक शुक्ला एकादशी को देवोत्थान एकादशी (देवउठणी ग्यारस) का पर्व मनाया जाता है। लोक में ऐसी धारणा है कि इस दिन भगवान विष्णु के साथ अन्य देव भी सुप्तावस्था से बाहर आते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा
राजस्थान में कार्तिक पूर्णिमा के दिन कोलायत (बीकानेर), चंद्रभागा नदी (झालावाड़), पुष्कर (अजमेर) के सरोवरों में हजारों लोग स्नान करते हैं। कार्तिक पूर्णिमा का दीपदान भी बड़ा प्रसिद्ध है।
गवरी पूजन
अगस्त-सितंबर में भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदा को मेवाड़ क्षेत्र में भील समुदाय के लोग गवरी पूजन के बाद एक विस्तृत धार्मिक अनुष्ठान चलता है जो चालीस दिनों तक चलता है। इसकी समाप्ति आश्विन माह की शुक्ल नवमी के दिन होती है।
मकर संक्राति
14 जनवरी (पौष-माघ) को मकर संक्राति का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन मकर राशि में सूर्य का प्रवेश होने के कारण हिन्दू समुदाय इसे बड़ा दिन मानते हैं। इस दिन सूर्य की पूजा करके नदियों और जलाशयों में स्नान किया जाता है। जयपुर में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। पतंगबाजी भी मकर संक्राति के दिन की विशेषता है।
बसंत पंचमी
माघ शुक्ल (जनवरी-फरवरी) को बसंत-पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन कामदेव व रती की पूजा की जाती है। ब्रज क्षेत्र में इस दिन भगवान कृष्ण की लीलाओं व झांकियों की सजावट होती है। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन भी किया जाता है।
होली
राजस्थान में होली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। ब्रज क्षेत्र के निकट होने के कारण भरतपुर व अलवर में होली का त्यौहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है और यहां बम नृत्य का आयोजन होता है। भिनाय क्षेत्र की होली भी काफी प्रसिद्ध है जहां लोग दो गुटों में बंटकर एक-दूसरे पर कोड़े से प्रहार करते हैं। महावीरजी की लट्ठमार होली भी बड़ी प्रसिद्ध है। यहां मीणा, गुर्जर, यादव आदि जातियों के लोग एकत्रित होकर कड़ाहों में रंग भरकर महिलाओं के साथ होली खेलते हैं। पानी डालने पर महिलाएं हाथों में लट्ठ लेकर पुरुषों पर प्रहार करती हैं। बाड़मेर शहर की होली भी बड़ी खास है जिसमें इलोजी की सवारी निकलती है। इसमें भांति-भांति के प्रहसन किए जाते हैं जिससे बड़ा मनोरंजन होता है।
शीतला अष्टमी
चैत्र कृष्ण अष्टमी को शीतला अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। इसे ‘बास्योड़ा’ भी कहते हैं। इस दिन शीतला माता की पूजा होती है। इस दिन लोग एक दिन पहले बनाए हुए भोजन का भोग शीतला माता को लगाते हैं। यह माता चेचक आदि रोगों की देवी भी मानी जाती हैं।
गणगौर
गणगौर राजस्थान के सबसे लोकप्रिय पर्व है। शिव और पार्वती को समर्पित यह त्यौहार चैत्र मास की शुक्ल तृतीया के दिन मनाया जाता है। महिलाएं गणगौर से पंद्रह दिन पूर्व ही शिव और गौरी की पूजा करने लगती हैं। कुंवारी कन्याएं और विवाहिताएं इन दिनों व्रत रखती हैं। मारवाड़ क्षेत्र में बेंतमार धींगा गवर वैशाख वदी तृतीया की मनाई जाती है जिसमें स्त्रियां रात भर नाचती हैं और स्वांग रचती हैं। गणगौर के अंतिम तीन दिनों में उत्सव पराकाष्ठा पर पहुंच जाता है। ईसर एवं गौरी की मूर्तियों को सजाकर तालाब, कुएं या नदी के तट पर लाकर विसर्जित कर दी जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग एकत्र होते हैं।
अक्षय तृतीया (आखातीज)
यह त्यौहार राजस्थानी लोकजीवन का विशिष्ट पर्व है। यह वैशाख मास की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन बाजरे का खिचड़ा बनाकर उसे भोजन में ग्रहण किया जाता है। इस दिन ‘अबूझ सावा’ होता है और बड़े पैमाने पर विवाह सम्पन्न होते हैं। पुराने समय में आखातीज के दिन राजस्थान में बालविवाह भी होते थे पर अब लोगों में काफी जागृति आई है और इन पर रोक लगी है।
निर्जला एकादशी
ज्येष्ठ माह की शुक्ल एकादशी के दिन निर्जला एकादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है और छबील लगाकर लोगों को शर्बत-पानी पिलाया जाता है।
राधाष्टमी
भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन को राधा का जन्मोत्सव माना जाता है। राधाष्टमी के दिन अजमेर के सलेमाबाद की निम्बार्क पीठ में बड़ा मेला भरता है।
शरद पूर्णिमा
आश्विन मास की पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है। मारवाड़ क्षेत्र में इस दिन महलों आदि को श्वेत रंग की वस्तुओं से सजाया जाता है। इस पर्व पर रात्रि में खीर बनाकर उसे खुले बर्तन में चंद्रमा की रोशनी में छोड़ा जाता है और बाद में उसे ग्रहण किया जाता है।