शेखावाटी ख्याल (सीकर, झुंझुनू, चुरू) की परंपरा लगभग दो सौ वर्ष पुरानी है। शेखावाटी शैली के ख्यालों का प्रवर्तक फतेहपुर के दो भाइयों झालीराम और प्रहलाद राम को माना जाता है। वे ख्याल स्वयं लिखते और इसे मंच पर भी खुद ही अभिनीत करते। इनके अलावा शेखावाटी में ख्याल लेखकों की लंबी परंपरा रही है जिनमें बक्सीराम, प्रेमसुख भोजक (फतेहपुर), नानूराम राणा, उजीरा तेली, गोविंदराम (तीनों चिड़ावा निवासी), बालूराम ‘बालकृष्ण’ (लक्ष्मणगढ़), भगवती प्रसाद दारूका (जसरासर), पं. लक्ष्मीनारायण पुरोहित (रामगढ़), गजानंद घोड़िया (बिसाऊ), बलदेव (नवलगढ़), अकबर मीर (सीकर) आदि प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त चिड़ावा के दूला राणा व बिलास डाकोत, जाखल का भैंरूराणा, इंद्रपुरा का अर्जुन, नवलगढ़ का मीरा सिक्का, ढिगाल का धन्ना, चिड़ावा का बिड़दू तथा घासी, सीकर के कज्जु तेली और गोविंद भाट आदि ख्याल नाट्यों के अच्छे अभिनेता रहे हैं। इन सभी ने शेखावाटी ख्यालों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
शेखावाटी ख्यालों का मंच शहर या गांव के खुले चौगान में बनाया जाता है जहां लकड़ी से बने दस-बारह तख्ते लगाकर उन पर दरियां बिछा दी जाती हैं। दर्शक इस मंच के चौतरफा बैठकर ख्याल का आनंद उठाते हैं। भरपूर रोशनी के बीच मंच पर बैठे साजिंदे अपने साजों नगाड़े, सारंगी, मंजीरे, हारमोनियम, ढोलक आदि बजाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इन्हीं साजिंदों के साथ बैठे टेरिये ऊंची आवाज में टेर लगाते हैं।
शेखावाटी ख्यालों में स्त्री पात्रों की भूमिका पुरुष ही निभाते हैं जो घूंघट में अपना चेहरा छुपाये रहते हैं। पुरुष पात्रों की वेशभूषा में चुस्त पायजामा और शेरवानी, रूमाल, अचकन, तलवार सजी रहती है। स्त्री के अभिनय वाले पात्र गोटा लगा कलीदार घाघरा, ओढ़नी, कब्जा और हाथों में चूड़ियां पहनते हैं। इस प्रकार ख्याल के पात्र अपनी भूमिका के अनुरूप वेशभूषा धारण करते हैं।
ख्यालों की शुरुआत करने से पहले सरस्वती पूजन करके मंच पर धार्मिक स्तुति की जाती है। इसके बाद सभी पात्र मंच पर क्रमवार प्रस्तुत होते हैं, फिर ख्याल शुरू होता है। ऐसा अनुमान है कि शेखावाटी के ख्यालों की संख्या तीन सौ से भी अधिक है। शेखावाटी ख्यालों में चकवा बैण, जगदेव कंकाली, मालदे, हाड़ी राणी, सुल्तान मरवण को भात, नरसी मेहता, सीलो-सतवंती, ढोला-मरवण, हीर-रांझा, विराट पर्व, इंद्रसभा, दूलो धाड़वी, सेठ रंगीलौ रसाणी, दयाराम धाड़वी, रूप वसंत, भगत पूर्णमल, डूंगजी-जवारजी आदि उल्लेखनीय हैं।
शेखावाटी ख्याल काव्य, संगीत और गायन की दृष्टि से उच्चस्तरीय होते हैं। ये शास्त्रीय राग-रागनियों पर आधारित होते हैं। इन रागों में भैरवी, सोरठ, देस, वृंदावनी, मारू, आसावरी, काफी, विहाग, मांड, पहाड़ी, कलिंगड़ा, कल्याण, पीलू धनाश्री, खमाच, केदार आदि मुख्य हैं। छंद की दृष्टि से इन ख्यालों में दूहा, चौपाई, सोरठा, लावणी, शेरझड़, कवित्त, छप्पय, दुबोला, चौबोला, झेला आदि का प्रयोग किया जाता है। भाव, रस, शब्द-विधान, छंद, अलंकार, नीति-वचन आदि से गुंफित ये ख्याल बेहद मनमोहक हैं।