राजस्थानी लोकनाट्यों में ‘ख्याल’ बेहद लोकप्रिय, लोकप्रचलित और विविधता से भरी नाट्य शैली है। यह लोकनाट्य का ऐसा प्रकार है जिसका सामान्य जनजीवन से सीधा जुड़ाव होता है। लोकमानस के सहज-सरस भावों का प्रकटीकरण करने वाला और जनमानस की काव्यनुभूति को उजागर करने वाला लोकनाट्य ख्याल लोकानुरंजन का मनमोहक साधन है। राजस्थानी ख्याल परंपरा काफी प्राचीन एवं समृद्ध है। ये ख्याल सप्त सिंधु से संबंधित क्षेत्र की पुरातन परंपरा से विकसित हुए माने जाते हैं। राजस्थानी ख्यालों में उन्नीसवीं शताब्दी के उतरार्द्ध में लोक प्रचलित ऐतिहासिक और परंपरागत कथाओं के नाट्य प्रस्तुतीकरण की परंपरा विकसित हुई थी। शुरुआत में इन पर आगरा के निकट प्रचलित ख्यालों की शैली का गहरा असर था। राजस्थानी ख्याल नाट्यों का उद्भव लगभग तीन सौ वर्ष पहले हुआ था। ख्याल वस्तुत: काव्य रचनाओं का नाट्य रूपांतरण करके उन्हें प्रस्तुत करने की लोकप्रिय विधा का द्योतक है।
ख्याल मंचीय नाट्य है जिसमें संगीत, नृत्य और गायकी का ऐसा अनूठा मेल होता है कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठते हैं। इन ख्यालों में पात्रों के कायिक-वाचिक अभिनय पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता, जितना गायकी और संगीत पर रहता है। इन ख्यालों के मंच प्राय: त्रिदिशीय होते हैं जिसके सामने व दायें-बायें बैठकर दर्शक ख्यालों का आनंद उठाते हैं। कुछेक ख्यालों में सर्वदिशीय मंच होते हैं जिसके चौतरफा बैठकर दर्शक मंचन देखते हैं। ख्याल नाट्य मुख्यत: ऐतिहासिक और पौराणिक कथानकों पर आधारित होते हैं पर आजकल सामाजिक एवं सामयिक कथानकों पर भी इनकी रचना होने लगी है।
राजस्थान में ख्यालों के विविध रूप यथा शेखावाटी ख्याल, चिड़ावी ख्याल, कुचामणी ख्याल, तुर्रा-कलंगी ख्याल, अलीबख्शी ख्याल, हेला ख्याल और जयपुरी ख्याल आदि प्रचलित हैं। ख्यालों में खेलने की क्रिया प्रधान होने के कारण इन्हें ‘ख्याल’ कहा जाता है। ख्यालों का मंचन परंपरागत बंधी-बंधाई रंग शैली में किया जाता है। इसमें रंग से अभिप्राय राग, रंगत धुन एवं गायकी तथा शैली से अर्थ रूप, प्रकार, चाल, छंद योजना और तंत्र से होता है। ख्याल के वर्ण्य विषय लोकप्रचलित कथा आख्यान होते हैं। ये लोक परंपरा से निकले पद्य बद्ध नाटक हैं जिनका कथानक ऐतिहासिक, पौराणिक, बलिदानी या धार्मिक व्यक्ति के चरित्र पर आधारित होता है। ख्याल वस्तुत: कथानक का गीत-संगीत, नृत्य के सहारे प्रस्तुतीकरण करने वाली विधा है। दूसरे शब्दों में कहें तो संगीत, नृत्य और अभिनय के गुणों से युक्त, लौकिक वातावरण से पोषित, संवादों से भरपूर, समाज की रागात्मक वृत्ति का प्रतीक, जनसाधारण के काव्यबोध के उद्घाटक, दृश्य श्रेणी के इन लोकनाट्यों को ख्याल कहा जाता है।
वर्तमान में ख्याल ही राजस्थानी लोकनाट्यों व रंगमंच की वह विधा है जो तमाम प्रतिकूल हालातों के उपरांत भी अपने मूल स्वरूप को सुरक्षित रखे हुए है। राजस्थानी ख्यालों में मंच, वाद्य, कथावाचन, अभिनय, क्षेत्र, लेखक, गुणधर्म, शैली, रंगत, सरंचना और प्रस्तुतीकरण की विविधता पायी जाती है। ख्यालों का मंचन लोकजीवन में उल्लास का संचार करता है।