हेला ख्याल एक प्रकार का दंगल ख्याल है। इसमें एक दल द्वारा प्रस्तुत गायन के बाद दूसरा दल उसके प्रत्युत्तर में उसी समय रची बंदिश पेश करके मुकाबले को जीतने का प्रयास करता है। इन दोनों समूहों की जबरदस्त प्रतिस्पर्धा होती है। हेला ख्याल अपनी विशेषताओं और लोक काव्य के नवीन प्रयोगों के कारण सबसे अधिक लोकप्रिय दंगल है। इन ख्यालों का सूत्रपात हेला जाति के कुछ शायरों ने किया था जिसके आधार पर यह दंगल हेला ख्याल नाम से जाना गया। पहले इनमें पौराणिक विषयों के कथानक पर ख्याल रचे जाते थे पर आजकल ये आधुनिक और राजनीतिक विषयों पर भी मंचित होने लगे हैं। इस बदलाव से इनकी लोकप्रियता भी बढ़ी है। दौसा जिले के लालसोट कस्बे में हर साल आयोजित होने वाला हेला दंगल की उतरोत्तर सफलता का प्रमाण है।
हेला ख्याल का आयोजन खुले मैदान में शामियाने तानकर किया जाता है। ख्याल शुरू होने से पहले सभी गायक ‘ख्यालीड़े’ घेरे में पंक्तिबद्ध खड़े हो जाते हैं। उनके बीच में नौपत रखी जाती है। इसे कुछ देर तक स्वतंत्र रूप से बजाया जाता है। इसके बाद देवी का स्मरण किया जाता है। इसके बाद गायक सामूहिक रूप से लंबी टेर के साथ ऊंची आवाज में ‘अजी ए हो!’ की टेर शुरू करके ख्याल को शुरू करते हैं। इसी के साथ हेला अपनी स्वाभाविक गति पकड़ लेता है।
हेला ख्याल रात और दिनभर चलते रहते हैं। विभिन्न राग-रागिनियों, लय, तालों एवं तोड़ों में पदों का गायन होता है। इन ख्यालों में गायकी की धुनें सरल और मनमोहक होती है। हेला ख्यालों में वाद्यों के रूप में नौपत, ढपली, चंग, चिमटा, नांद, तुरही आदि प्रयुक्त होते हैं। इस ख्याल के मंचन के क्षेत्र लालसोट, बयाना, खेड़िया, शुभनगर, बेराई, चैनपुर गंगापुर, बामनवास, वैर आदि हैं। हेला ख्यालों के प्रमुख कलाकारों में कजोड़ीमल शर्मा, परमानंद डोम, रमेशचंद्र शर्मा, सत्यनारायण, बाबूलाल शर्मा, कन्हैयालाल, हजारीलाल ग्रामीण, लक्ष्मण गूजर, नंदकुमार पांखला, किशनलाल सैनी आदि काफी लोकप्रिय रहे हैं।