अलवर के मंडावर कस्बे के निवासी टीकावत राजपूत अलीबख्श ने इस ख्याल शैली का सूत्रपात लगभग डेढ़ सौ वर्षों पहले किया था। अलीबख्श के ख्याल रचनाकार बनने की कथा बड़ी दिलचस्प है। वे गीत-संगीत से बड़ा लगाव रखते थे। एक बार उनके पास के गांव पेहल में किसी तमाशे (सांग) का आयोजन हो रहा था। वे भी देखने पहुंचे और मंच पर जाकर बैठ गए। वहां की मंडली के मुखिया ने उन्हें ताना दिया कि ठाकुर साहब, यदि आपको मंच पर बैठने का इतना ही शौक है तो खुद की मंडली बना लें। इस ताने से वे बड़े आहत हुए और वहां से उठकर चले गए। उनके स्वाभिमान को बड़ी ठेस लगी और वे आत्महत्या करने के लिए पहाड़ी पर जा पहुंचे। जैसे ही वे पहाड़ी से छलांग लगाने लगे तो उनको किसी ने पीछे से पकड़ लिया। उन्हें पकड़ने वाले एक महात्मा थे। उन्होंने अलीबख्श से आत्महत्या करने का प्रयास करने का कारण पूछा तो ठाकुर ने पूरी व्यथा सुनाई। महात्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके कंठ में सरस्वती विराजने की आशीष दी। किवदंती के अनुसार इन महात्मा का नाम गरीबदास था। इसके बाद अलीबख्श ने अपने घर आकर लंगड़ी चौबोल, खकड़ी, बेहर, शिकस्त, गजल व भजन में ख्याल रचने शुरू कर दिए। उन्होंने एक ख्याल मंडली भी बनाई और अपने रचे गए ख्यालों का मंचन करने लगे। धीरे-धीरे उनके ख्याल लोकप्रिय होते चले गए और उन्हें अलीबख्शी ख्यालों के नाम से विशेष पहचान मिली।

अलीबख्शी ख्याल साधारण मंच पर अभिनीत किए जाते हैं। इनका मंच तख्तों से बना होता है जिस पर एक चंदोवा तान दिया जाता है। दर्शक इस मंच के चौतरफा बैठ जाते हैं। ये ख्याल भक्ति-भाव से ओतप्रोत, संगीत और नृत्य का अनूठा संगम कहे जा सकते हैं। इनका राग-विधान शास्त्रीय और ठुमरियों पर आधारित होता है। अलीबख्श ठुमरियों के बेजोड़ रचयिता थे। इस ख्याल के अभिनेता गीतों की पंक्तियों को भाव-मुद्राओं और नृत्य के माध्यम से बड़े मनमोहक ढंग से प्रस्तुत करते हैं। वाद्यों के रूप में तबला, ढोलक, सारंगी और नगाड़ों का प्रयोग किया जाता है। अलीबख्श भी यदा-कदा स्वयं मंच पर आकर अभिनय करते थे। उनके प्रमुख शागिर्दों में गोपाल, घीसा नाई, घीसा मोदी, घीसा बनिया, माणो कापड़ी, पिरमु ठाकुर, फइम मुजावर और लालजी पुजारी आदि प्रमुख थे।

अलीबख्श के लिखे सात ख्याल प्राप्त होते हैं जिनमें कृष्ण लीला, पदमावत, निहालदे, नलदमन छड़ाव, नलदमन बगदाव, फिसाने अजाइब एवं गुलबकावली आदि प्रमुख हैं। यह ख्याल अलवर के अलावा हरियाणा के रेवाड़ी, नारनौल, महेंद्रगढ़, गुड़गांव में भी प्रचलित है। इसे राजस्थानी और हरियाणवी संस्कृति की साझी धरोहर माना जा सकता है। हरियाणा में अलीबक्शी ख्याल ‘सांग’ नाम से प्रचलित हैं।

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