तेरहताली नृत्य राजस्थान का प्रसिद्ध धार्मिक लोक नृत्य है। रामदेवजी के भोपे जो कामड़ जाति के होते हैं और यह नृत्य कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाता है। नृत्य के दौरान नृत्यांगनाएँ अपने शरीर के विभिन्न अंगों पर तेरह मंजीरे बाँधकर कर इस नृत्य को करती है। पुरुष पीछे बैठकर ढोलक, तंदूरा, इकतारा आदि वाद्य-यत्रों की संगत के साथ रामदेवजी के भजन गाते हैं। नर्तकी के दाहिने पैर पर नौ मंजीरे, कोहनी पर दो तथा दो मंजीरे हाथों मे बाँधे जाते हैं। ये मंजीरे लोहे या पीतल के बने होते हैं और नृत्य करते समय ढोलक की ताल के साथ शरीर के विभिन्न अंगों पर बंधे इन मंजीरों को आपस में टकराया जाता है, जिससे मधुर ध्वनि निकलती है। इस नृत्य के दौरान नृत्यांगना के मुँह में नंगी तलवार और सिर पर घड़ा रखकर उनका संतुलन भी स्थापित करती है। इस नृत्य को करते हुए तेरहताली की नृत्यांगनाएँ विविध प्रकार की भाव-भंगिमायें प्रदर्शित करती हैं। यह चंचल नृत्य है।

यह राजस्थान का एकमात्र नृत्य है जो बैठकर किया जाता है। इस नृत्य का गायन पक्ष पुरुष संभालते हैं और रामदेवजी का प्रसिद्ध भजन ‘म्हारो हेलो सुणज्यो रामा पीर’ गाते हैं। यह बहुत तेज़ चाल का गीत है। इस गीत पर नृत्य करने के लिए शरीर में चुस्ती और फुर्ती चाहिए होती है। इस नृत्य में शरीर की लचकता, थाली में जलता दीपक रखकर महिला थाली को सिर पर रखकर नृत्य करती है। इस नृत्य का उद्भव पादरला गाँव (पाली) से माना जाता है। यह रामदेवरा, पोकरण, डीडवाना आदि का प्रसिद्ध है। मांगी बाई इस नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यांगना थी। इसके अलावा मोहिनी, नारायणी, कमलदास, लक्ष्मण दास कामड़ आदि इसके अच्छे कलाकार रहे हैं।

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