भटनेर का यह प्राचीन दुर्ग भाटियों के पराक्रम के रोचक प्रसंगों का साक्षी है। मान्यता है कि इस दुर्ग का निर्माण भाटी राजा भूपत ने तीसरी शताब्दी के अंतिम चरण में करवाया था दुर्ग की अवस्थिति घग्घर नदी के मुहाने पर बसे हनुमानगढ़ शहर में है। हम इसे धान्वन दुर्ग की कोटि में रख सकते हैं। दुर्ग के घेरे में लगभग 52 बीघा भूमि है। विशाल बुर्जें और अथाह जल राशि वाले इस किले की विशालता और सुरक्षा इसके प्रमुख उदाहरण है। तत्कालीन दौर में भटनेर का बड़ा महत्त्व था। सिन्ध, काबुल, मध्य-एशिया के व्यापारी मुलतान से उत्तरी सीमा का प्रहरी कहे जाने वाले दुर्ग भटनेर होते हुए दिल्ली आगरा आते-जाते थे। यही बड़ा कारण रहा कि भटनेर को जितने आक्रमण झेलने पड़े;उतने शायद ही किसी क़िले को सहने पड़े हों। महमूद गजनवी, सुलतान बलवन आदि ने यहाँ संघर्ष किया। ऐसा उल्लेख है कि शेरखाँ ने भटिन्डा और भटनेर के किलों की मरम्मत करवायी थी। शेरखाँ की कब्र भटनेर के क़िले में बनी हुई है।

1398 ई. में तैमूर ने यहाँ आक्रमण किया और भटनेर को बहुत नुकसान झेलना पड़ा। भटनेर को बुरी तरह से लूटा गया और दुर्ग में बड़ी संख्या में कत्ल-ए-आम हुआ। बीकानेर के शासक राव जैतसिंह ने 1527 ई. में भटनेर पर आक्रमण कर सादा चायल को पराजित किया और यहाँ से भटनेर पर पहली बार राठौड़ों का आधिपत्य स्थापित हुआ। इसके बाद हुमायूँ के भाई कामरान ने भटनेर पर आक्रमण किया। हमें यह सब जानकारी वीठू सूजा द्वारा रचित छंद राउ जइतसी रउ’ (छंद राव जैतसी रो) में मिलती है 1549 ई. में बीकानेर के ठाकुरसी ने अहमद चायल से भटनेर का किला छीन लिया। ठाकुरसी लगभग 20 वर्ष तक भटनेर का हाकिम रहा। कुछ अरसे बाद ठाकुरसी के पुत्र बाघा ने भटनेर मिलने के बाद (अकबर से) वहाँ पर गोरखनाथ का एक मंदिर बनवाया। इसी क़िले में हाथीसिंह चांपावत दलपत को छुड़ाने के प्रयास में अपने 300 राठौड़ सवारों सहित काम आया और यह समाचार सुनने पर दलपत छः रानियाँ वहाँ सती हो गई।

बीकानेर महाराजा सूरतसिंह द्वारा मंगलवार के दिन इस दुर्ग को हस्तगत किये जाने के कारण इस दुर्ग का नाम भटनेर रख दिया गया। इसी समय यहाँ हनुमानजी के मंदिर का भी निर्माण करवाया गया। भटनेर का यह दुर्ग ‘उत्तर भड़ किंवाड़’ धारी भाटियों तथा राठौड़ों की अनेक गाथाओं को अपने में समेटे ऐतिहासिक- सांस्कृतिक धरोहर को संजोए थार के सुन्सान में आज भी खड़ा है।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थान के प्रमुख दुर्ग ,
  • सिरजक : अज्ञात ,
  • प्रकाशक : राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी जयपु ,
  • संस्करण : 14वाँ संशोधित संस्करण
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