पूभरतपुर से 34 कि.मी. की दूरी पर बसा डीग भरतपुर की स्थापना से पहले जाट राजाओ की राजधानी था। दिल्ली, आगरा से इस नगर की निकटता और सम्भावित आक्रमणों से सुरक्षा के लिए राजा सूरजमल ने डीग के किले को एक छोटे किन्तु सुदृढ़ दुर्ग का स्वरूप प्रदान किया। इसी सुरक्षा व्यवस्था के कारण किले में प्रवेश पाना अथवा उसे जीत लेना बड़ा कठिन था। फिलवक्त डीग का जो स्वरुप है;उसके शिल्पी जाट राजा है। उसके बाद डीग का विस्तार राजा सूरजमल ने किया। किले की प्राचीर लगभग 20 मीटर ऊँची है और 12 सुदृढ़ बुर्ज इसपर निर्मित हैं।

इतिहास के अनुसार 1760 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने यहाँ घेरा किया, 4 माह तक चले इस घेरे के बाद भी डीग के किले को जीतने में वह असमर्थ रहा। किले के आसपास चौड़ी और गहरी खाई बनी है जो प्राय जलमग्न रहती है। वर्गाकार आकृति का यह किला ‘भूमि दुर्ग’ की श्रेणी मे आता है। किले में कुल 10 प्रवेश द्वार हैं। भीतरी भाग में अनेक तहखाने और उनमें तोपें रखी हैं। सतत जलधारा से के कारण आकर्षक फव्वारे यहाँ के सौन्दर्य में चार चाँद लगा देते हैं। पुराना महल राजप्रासाद का जनाना विभाग है जहाँ राजपरिवार की महिलाओं के निवास का सारा प्रबन्ध था।

भरतपुर के ख्यात राजा सूरजमल ने डीग के अधिकांश भव्य राजभवनों का निर्माण करवाया। सूरज भवन, गोपाल भवन और कृष्ण भवन अपने स्थापत्य कारण उल्लेखनीय हैं। राजमहलों की भव्यता और सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध डीग के कुछ महतवपूर्ण निर्माण बदनसिंह ने भी करवाए जो महाराजा सवाई जयसिंह के सामन्त थे। जयपुर में उनका आवास बास बदनपुरा कहलाता था। राजभवनों में गोपाल सागर, सावन-भादों कक्ष, नन्द भवन, कृष्ण भवन और केशव भवन अपने अनूठे शिल्प और स्थापत्य के कारण विख्यात हैं। इन राजमहलों में काँच और अराईश का बारीक और सुन्दर काम हुआ है।

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