गोविंददेव जी मंदिर राजस्थान का एक प्रमुख मंदिर है। यह जयपुर शहर के केंद्र में सिटी पैलेस में स्थित है। यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है। चन्द्र महल के जय निवास बगीचे के बीच बना यह मंदिर जयपुर पूर्वराजपरिवार का आराध्य स्थल है। ऐसा कहा जाता है कि गोविंदजी की यह मुर्ति पहले वृंदावन के मंदिर में स्थापित थी। लगभग 450 साल पहले श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्रील रूप गोस्वामी ने वृंदावन में गोमा टीला से खुदाई करके निकाला था, जिसे बाद में तत्कालीन जयपुर महाराज सवाई जय सिंह द्वितीय जयपुर लाये। दंतकथाओं में यह उल्लेख आता है कि गोविंददेव जी की यह प्रतिमा भगवान कृष्ण के परपोते वज्रनाभ ने बनाई थी।

 

प्रतिमा जयपुर लाने के बाद इसे सूर्य महल में स्थापित किया गया था। महाराजा ने सूर्य महल में भगवान की मूर्ति स्थापित की और उन्होंने खुद अपने निवास को एक नए महल में स्थानांतरित कर दिया और इसका नाम चंद्र महल रखा। चंद्र महल को इस तरह से बनाया गया था कि गोविंद जी की मूर्ति महल से सीधे उनकी नज़र में रहे। बड़ी चौपड़ स्थित जलेब चौक के उत्तरी दरवाज़े से गोविंद देवजी मंदिर परिसर में प्रवेश होता है। यहाँ से एक रास्ता कंवर नगर की ओर निकलता है, जहाँ चैतन्य महाप्रभु का मंदिर है। यहाँ से विशाल त्रिपोलिया द्वार से मंदिर के मुख्य परिसर में जाने का रास्ता है।

 

यह प्रख्यात मंदिर बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना है। मंदिर की इमारत की वास्तुकला में राजपूती, मुस्लिम और शास्त्रीय वास्तुशैली का प्रयोग हुआ है। शाही निवास के समीप बने इस मंदिर में तमाम तरह की पेंटिंग्स लगी हुई हैं। मंदिर की छत सोने से मढ़ी गई है। जयपुर पूर्वराजपरिवार गोविंद देव जी को जयपुर का शासक मानता है। यहाँ मंदिर के अंदर दिन में 7 बार पूजा और आरती की जाती है। वैष्णव भक्त परम्परा के लोग गोविन्ददेव जी को अपना आराध्य मानते हैं। मंदिर के चारों ओर एक हरा-भरा बगीचा है। यह बगीचा 'तालकटोरा' कहलाता है। इस मंदिर में जन्माष्टमी के समय ख़ासतौर से भगवान कृष्ण के भक्तों का तांता लग जाता है।

 

गोविंददेव जी मंदिर का अब ‘गोविंदम’ नाम से एक आधिकारिक मोबाइल एप्लिकेशन भी है, जो मंदिर के बारे में लाइव दर्शन और लाइव इवेंट स्ट्रीम की जानकारी देता है। इसे प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता है। यह मंदिर प्रातः 5 बजे से दोपहर 12 बजे तक तथा शाम में 5 बजे से रात में 9 बजे तक खुला रहता है। जन्माष्टमी के समय दर्शन और आरती का समय परिवर्तित होता रहता है।

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