राजस्थान का सिंहद्वार और पूर्वी सीमान्त का प्रहरी कहे जाने वाले भरतपुर का लोहागढ़ क़िला सुविख्यात है। भरतपुर के प्रसिद्ध शासक महाराजा सूरजमल द्वारा बनाये गए इस किले के साथ जाट राजाओं के रोमांचक आख्यान जुड़े हुए हैं। भरतपुर दुर्ग का निर्माण 1733 ई. में प्रारम्भ हुआ। भूमि दुर्ग की श्रेणी का यह क़िला, एक ऐसा क़िला है जिसकी बाहरी दीवार चौड़ी और मिट्टी की बनी होने के कारण यह लगभग अभेद्य रहा। ऐसा कहा जाता है कि इस किले को तैयार होने में लगभग 8 वर्ष का समय लगा। हालाँकि विस्तार का कामकाज सूरजमल के पौत्र के प्रपौत्र महाराजा जसवन्त सिंह (1853-93 ई.) के काल तक चलता रहा।

भारतीय दुर्ग स्थापत्य की मानकों के मुताबिक तराशे हुए पत्थरों से निर्मित भरतपुर किले का फैलाव 6.4 वर्ग कि.मी. क्षेत्र में है। भरतपुर दुर्ग पर तमाम आक्रमणकारियों के आक्रमण होते रहे, जिनमें मरहठे और अंत में अंग्रेज शामिल रहे। अंग्रेजों ने 1805 में यहाँ आक्रमण किया। आक्रमण की जो बड़ी वजह थी;वह यह कि अंग्रेजों के दुश्मन जसवन्तराव होल्कर को भरतपुर शासक ने अपने यहाँ शरण दी थी। अंग्रेजों के पास लगभग एक हजार की विशाल सेना थी। तमाम कोशिशों के बावजूद किले का पतन नहीं हो सका। अंततः अंग्रेजों को यहाँ संधि करनी पड़ी। इसी पराजय या कि समझौते को लेकर लोक में एक जनगीत बहुत लोकप्रिय है- गोरा हट जा रे राज भरतपुर को...’’ हालाँकि अंग्रेजों ने अपने साथ घटे इस अप्रिय प्रसंग का बदला तब लिया जब रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद भरतपुर राजघराने में आन्तरिक झगड़ा हुआ, इसी कलह का लाभ उठाकर 1826 ई. में जोरदार आक्रमण के उपरान्त भरतपुर दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया।

किले का स्थापत्य बहुत कमाल है। किले के चारों ओर खाई है जिसमें मोतीझील से सुजानगंगा नहर द्वारा पानी लाया गया है। बाढ़ के पानी के प्रबन्धन और अकाल राहत के लिए दो बाँध और दो जलाशय बनाये गये थे। दुर्ग की मजबूत प्राचीर में 8 विशाल बुर्जे, दो विशाल दरवाजे (अष्टधातु दरवाजा और लोहिया दरवाजा), 40 अर्द्धचन्द्राकार बुर्जे हैं। किले की दुसरे महत्वपूर्ण निर्माणों में बागरवाली बुर्ज, सिनसिनी बुर्ज, गोकालु बुर्ज, कालिका बुर्ज, और नवलसिंह बुर्ज, अटलबंदपोल, नीमपोल, अनाहपोल, मथुरापोल, वीरनारायणपोल आदि उल्लेखनीय हैं।पर्यटन और इतिहास की दृष्टि से यह क़िला विविध तरह के आकर्षण लिए हुए हैं।

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