सूर कमल वाजिंद न सुपने मेल है।
जैसे द्योस अरु रैण कड़ाई तेल है॥
हमहि में सब खोट दोष नहि स्याम कूं॥
हरि हां, वाजिद ऊंच नीच सो बंधे कहो किहि काम कूं॥