पाहन पढ़ गई रेख रातदिन धोवहीं।
छाले पढ़ गये हाथ मूंड गहि रोबहीं।
जाको जोइ सुभाव जाइहै जीव सूं।
हरि हां, नीम न मीठी होइ सींच गुड़ घीव सूं॥