पाहन पढ़ गई रेख रातदिन धोवहीं।

छाले पढ़ गये हाथ मूंड गहि रोबहीं।

जाको जोइ सुभाव जाइहै जीव सूं।

हरि हां, नीम मीठी होइ सींच गुड़ घीव सूं॥

स्रोत
  • पोथी : संत सुधा सार (अज्ञान कौ अंग से उद्धृत) ,
  • सिरजक : वाजिद ,
  • संपादक : वियोगी हरि ,
  • प्रकाशक : मार्तण्ड उपाध्याय, सस्ता साहित्य मंडल,नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
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