हरिजन बैठा होय तहां चल जाइये।
हिरदै उपजे ग्यान रामगुण गाइये॥
परिहरिये वह ठाम भगति नहिं राम की।
हरि हां, वाजिद बीन बिहूणी जान कहो किस काम की॥