चटक चांदणी रात बिछाया ढोलिया।
भर भादव की रैण पपीहा बोलिया।
कोयल सबद सुणाय रामरस लेत है।
हरि हां वाजिंद, दाव्यो ऊपर लूण पपीहा देत है॥