चटक चांदणी रात बिछाया ढोलिया।

भर भादव की रैण पपीहा बोलिया।

कोयल सबद सुणाय रामरस लेत है।

हरि हां वाजिंद, दाव्यो ऊपर लूण पपीहा देत है॥

स्रोत
  • पोथी : संत सुधा सार (विरह कौ अंग से उद्धृत) ,
  • सिरजक : वाजिद ,
  • संपादक : वियोगी हरि ,
  • प्रकाशक : मार्तण्ड उपाध्याय, सस्ता साहित्य मंडल,नई दिल्ली ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै