सौलह सिनगारं, सजि अनुसारं, अधिक अपारं उद्धारं।

कौरे चख कज्जळ, अति जिहिं लज्जळ, दुति विज्जळ, सुभकारं॥

इन रीत अभीतं, प्रमुद प्रतीतं, रूचि रम रीतं, रिझवारं।

चोटी जिम नागिनि, है बड़ भागिनि, सरब सुहागिनि, सुखसारं॥

लहि रूप ललाटं, सोम सुघाट भौंह भलाटं, धनु जैसे।

मृग खंजन मीनं नैन नवीनं (सरस) सुदीनं, जल कैसे॥

नासा सुक नेमं, ओपम एमं, नथ पर नेमं, अति सोभा।

छंद वयंव समानं, अति अरूणनं, दाडिम दानं, रह लोभा॥

अति ही उदमादं कोकिल सादं, बरण बिभादं, चंद्रकला।

कल कंठ कपोतं पोत उदोतं, जगमग जोतं दरस भला॥

कुच बोहोत कठोरं, गोरम गौरं, कंज कल्होरं, जानि कळी।

सुभ नाभि सुरंगनि, फूल गुलाबिनी, रूप तरंगनि, ज्यों त्रिवळी॥

कटि केहरी कैसी, जानहु जैसी, यह अनैसी, बात गनौं।

कदली जिमि जंघा, उलटि उलघां, पीकर भंगा, मसत मनौं॥

गावति गज गामिनी, भाग सुभामनि, सौलह सामनि, वरख वयं।

भासति अति भू पर, धऱि पटद्दर पर, बाजत नूपर, नाद पयं॥

निकसी बहु नारिय, सहर संगारिय, लागत प्यारिय, सहज सबै।

मिलि झुंड इकट्ठै, बनि बनि लट्ठै, धरि पग मट्ठै तुरति तबै॥

अति भीर अपारं, परि अनपारं, गलि मझारं निकसी गई।

सब समटि सहेली, कुंड रुकेली, जहां सब भेली, जाई भई॥

अब करि असवारी, चढी छत्रधारी, मूरति मुरारि, मदन जसी।

हैमर चढइ हाड़ौ, महमति माड़ौ, गाहड़ गाड़ौ, ओप असी॥

स्रोत
  • पोथी : राम रंजाट ,
  • सिरजक : महाकवि सूर्यमल्ल मिश्रण ,
  • संपादक : उषा कंवर राठौड़ ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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