तानाशाह पर गीत
प्रतिरोध कविता का मूल
धर्म माना जाता है। आधुनिक राज-समाज में सत्ता की स्वेच्छाचारिता के ख़तरों के प्रति आगाह कराते रहने के कार्यभार को कविता ने अपने अपने मूल और केंद्रीय कर्तव्य की तरह धारण कर रखा है। इस आशय में आधुनिक कविताओं में ‘तानाशाह’ शब्द की आवाजाही उस प्रतिनायक के प्रकटीकरण के लिए बढ़ी है, जो आधुनिक राज-समाज के तमाम प्रगतिशील आदर्शों को चुनौती देने या उन्हें नष्ट करने की मंशा रखता हो।