गावत देव अदेव किते मुनि, जांन अजांन जिते निरधारे।

आवै पार वडे विसतार सुं, गावै अपार अपार विचारे।

याहि तैं हूं सुख पावत हूं जस, गावत हूं मत के अनुसारे।

पाव घरी टरौ मम चित्त तैं, पांव जलंधर पाव तिहारे॥

मन ही मन रावरौ रूप निहार, उछाह उमंग बढेबौ करौं।

जस राव रौ हीमत मेरी जथा, मुखतैं निस द्यौंस पढेबौ करौं।

मन हूंस यहै तप पूज में बैठ, नई नई रुस कढेबौ करौं।

रज पावन रावरे पांवन की, मन भावन सीस चढेबौ करौं॥

तूं रिझवार रिझवान तौहि, करे गुनगांन प्रमान सुभू पर।

नाथ जलंधर तेरौ ही नांम, रटों निस द्यौंस थटों मन धू पर।

व्है अल रूप वस्यौ मम चित्त सु, तेरे ही पंकज से पद ऊपर।

कीजै कपाल कृपा नितकी, इधकी इधकी इधकी जन ऊपर॥

स्रोत
  • पोथी : नाथ चंद्रिका ,
  • सिरजक : उत्तमचंद भंडारी ,
  • संपादक : नारायण सिंह भाटी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी, जोधपुर
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