ऊपर सुं मीठे मुख अंतर सुं राखत रोस।

देखन के सोभादार भादुं कैसी चीभ हैं।

गुनियनि के गुन ठारि, औगुन अधिक धारि,

जौलुं कहत कहुं तौलुं मन डीभ हैं।

तजि के भी प्राण आप और सुं करै संताप,

ऐसो खलको सुभाउ मच्छिका सनीभ हैं।

धर्मसी कहत यार मंड़ै जिण वासुं प्यार।

मानस के रूप मानुं दूसरो दुजीभ हैं॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम