ता लघु भ्रात करी तपस्या, चतुरांनन पै वरदान सो पायौ।

ता सुत रांम रट्यौ निसवासर, धेख करे खल मारण धायौ।

होय नृसिंघ सिंघार निसाचर, कीध उधार पैलाद वचायौ।

'ईसरदास' की वेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : मूल पांडुलिपि में से चयनित ,
  • सिरजक : ईसरदास बोगसा ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : विश्वम्भरा पत्रिका, प्रकाशन स्थल-बीकानेर